भारत के स्वतंत्रता आंदोलनों में संतों की भी रही अहम भूमिका

अन्तर्द्वन्द

लम्बा इतिहास रहा है धर्म संघर्ष का

हमारे सनातन धर्मावलम्बियों का तो देश की पराधीनता से मुक्ति दिलाने का लम्बा इतिहास है। समय, मान्यतायें एवं दुश्मनों का स्वरूप बदलता गया, पर इनके संघर्ष में शिथिलता कभी नहीं आयी। यहां के प्राचीन व आदिकालीन राष्ट्रीय आंदोलन को धर्म युद्ध की संज्ञा दी गयी, राक्षस व देवताओं के बीच चले संग्राम को देवासुर संग्राम कहा गया, पर ये सभी राष्ट्र को सशक्त करने वाले युद्ध ही तो थे। समय के साथ मंगोल, मुगल, डच, अंग्रेज आदि रूपों में आततायियों का स्वरूप बदलता रहा, तद्नुरूप इन संतों ने देश की जनता को शारीरिक-मानसिक-भवनात्मक दृष्टि से सशक्त किया और उस शक्ति को राष्ट्र निर्माण में नियोजित किया।

असंख्य संत प्रकृति लोगों ने देश के लिए रणनीति बनाई

असीमित मुगलों के आक्रमण से त्रस्त जनता को शक्ति देने के लिए समर्थ गुरु रामदास ने वीर शिवाजी जैसे योद्धाओं को गढ़ा और जनता में शारीरिक-वैचारिक शक्ति, आत्मबल जगाने के लिए जगह-जगह हनुमान मंदिरों व अखाड़ों की स्थापना की गयी और सबको युग संग्राम में खड़ा किया। गुरु गोविन्द सिंह, बंदा वैरागी जैसे संतों की लम्बी सूची है। आचार्य शंकर से लेकर गुरुगोरक्ष नाथ, मत्सेन्द्र नाथ, स्वामी रामानुज, माधवाचार्य, कबीर, तुलसी, सुरदास, नामादास, संत रविदास की एक लम्बी श्रृंखला है।

अर्थात देश का नेतृत्व सदैव संतों के हाथ रहा। निम्बार्काचार्य, वल्लभाचार्य, रामानन्दाचार्य, चैतन्य महाप्रभु, मीराबाई, तुलसी दास, नरसी आदि समय-देशकाल के अनुरूप अलख ही तो जगाते रहे। कभी राम ने रावण से, तो महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण ने अनीति-अत्याचार से मुक्ति दिलाई। यूनानी सेनापति अलक्जेंडर के भारत में पैर न जमने पायें, इसके लिए चाणक्य ने चंद्रगुप्त जैसे व्यक्तित्व गढ़े और पूरी युवापीढ़ी को देश बचाने में लगा दिया। डचों से लेकर अंग्रजों तक के लिए महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद महात्मा गांधी, विनोवा भावे, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, महामना मालवीय सहित असंख्य संत प्रकृति लोगों व देश के संतों ने रणनीति बनाई।

नकारात्मकता के दायरे में फंसती जनता में सकारात्मक चिंतन-चेतना एवं आत्मबल जगाना

आज विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश बनकर भारत खड़ा है। इसे सम्हालने में जितनी संविधान, सरकार, सेना, शासन-प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण है। उससे कहीं अधिक संवैधानिक दायरे में रहकर जन-जागरण कर रहे हमारे देश के संतों का योगदान महत्वपूर्ण है। संतों की वर्तमान भूमिका तो और भी बढ़ गयी है। उन्हें समय के साथ अत्याधुनिक पीढ़ी से तालमेल बैठाने के साथ देश के आम जनमानस में सेवा, संवेदना, ईश्वर भक्ति के सहारे राष्ट्रभक्ति को जगाने जैसे प्रमुख कर्तव्य निभाने हैं। नकारात्मकता के दायरे में फंसती जनता में सकारात्मक चिंतन-चेतना एवं आत्मबल जगाकर उसे भारत की संवैधानिक प्रस्तावना के अनुरूप एकजुट रखना कोई सामान्य कार्य नहीं है।

अतिमानस के अवतरण का वर्ष क्या है ?

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था भारत में जब भी आध्यात्मिक चेतना के साथ सेवा अभियान की झलक जगेगी, देश आत्म स्वाभिमान से भर उठेगा, पर उसे जनव्यापी होने में अभी 100 वर्ष लगेंगे। सन् 1926 को एक तरफ महर्षि अरविन्द ने ‘‘अतिमानस के अवतरण का वर्ष’’ घोषित किया, तो दूसरी ओर धर्म-अध्यात्म की दिशा में कार्य कर रहे संतों, महापुरुषों, ट्टषि स्तर के व्यक्तियों में सनातन संस्कृति एवं हिन्दू मूल्यों, भारतीय ट्टषि प्रणीत आध्यात्मिक चेतना को लेकर नई दृष्टि पैदा हुई और इसी के साथ जागृत आध्यात्मविदों, जागृत आत्माओं एवं देश में धर्म संस्कृति सेवा में समर्पित तंत्र आगामी 100 वर्षों को केन्द्र में लेकर चरणवद्ध अपनी योजनायें निर्धारण में जुट गये।

विश्व जागृति मिशन के प्रणेता ने भी इक्कीसवीं सदी में प्रवेश के दौर में 2026 को केन्द्र में लेकर एक युवा भारत-सशक्त भारत की परिकल्पना तैयार की और तद्अनुरूप उस लक्ष्य को पाने के लिए अपने मिशन द्वारा चरणवद्ध कार्ययोजनाओं का निर्धारण किया।

विश्व जागृति मिशन ने किया है और कर रहा है युवा शक्ति के लिए कार्य

पूज्यश्री सुधांशु जी महाराज कहते हैं–2026 में महर्षि अरविंद द्वारा अतिमानस की स्थापना वर्ष घोषित किये 100 वर्ष हो जायेंगे, 2026 में ही इक्कीसवीं सदी 25 वर्ष पूर्ण करके यौवनावस्था में पहुंच चुकेगी और भारत विश्व को नेतृत्व दे सकने का संकल्प ले रहा होगा। हमें भी अपने मिशन द्वारा इन संकल्पों के अनुरूप आज जनमानस के साथ-साथ युवा गढ़ने हैं, जिससे देश को शहीदों के स्वप्नों के अनुरूप खड़ा किया जा सके।

इसी कड़ी में विश्व जागृति मिशन ने परम पूज्य सद्गुरु श्री सुधांशु जी महाराज एवं डॉ- अर्चिका दीदी के मार्गदर्शन में अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस के अवसर पर युवा हो रही इक्कीसवीं सदी के अनुरूप आम जनमानस सहित देश के युवाओं, भावीपीढ़ी के युवक-युवतियों के बहुमुखी विकास की संकल्पना प्रस्तुत की तथा मिशन की नवकार्ययोजना का शुभारम्भ भी किया। 21 जून को ही आनन्दधाम मुख्यालय में ‘‘विश्व जागृति मिशन इण्टरनेशनल योग स्कूल’’ की स्थापना इसी संकल्प का महत्वपूर्ण कदम है।

शहीदों के स्वप्नों के अनुरूप भारत को गढ़ने एवं लोकतंत्र को बनाये रखने में सफलता मिलेगी

वैसे देश के जनमानस को हर स्तर पर सशक्त करने के लिए मिशन के अनेक प्रयोग चल रहे हैं, अनेक प्रशिक्षण चल रहे हैं। साथ ही युवा शक्ति की अंतः ऊर्जा को देशहित में समुचित ढंग से नियोजित करने हेतु युवा शक्ति के चरित्र-चिंतन गढ़ने सम्बन्धित जरूरत की पूर्ति यह मिशन आगे बढ़कर करने को संकल्पित है। हम आप सभी इस अभियान से जुड़कर अपना सौभाग्य जगा रहे हैं। इसी के साथ जरूरत है देश के गुरु-संत एवं धर्म तंत्र की विभूतियां अपनी समीक्षा करते हुए इस दिशा में तीव्र गति से आगे बढ़ें, तभी देश का भला होगा और स्वतंत्रता का उद्देश्य पूरा होगा। तभी वीर शहीदों के स्वप्नों के अनुरूप भारत को गढ़ने एवं लोकतंत्र को बनाये रखने में सफलता मिलेगी। देश यही पुकार-पुकार कर कह रहा है।

-एजेंसी


Discover more from Up18 News

Subscribe to get the latest posts sent to your email.