सत्य एक ही रहता है हमेशा वही रहता है बदलता नही है चाहे कोई भी परिस्तिथि हो कोई भी वातावरण हो। उदाहरण सिखों के गुरु हरी राय के बड़े बेटे राम राय ने औरंगजेब को मुस्लिम धर्म के अनुसार सिखी के उपदेस समझाए, तो राम राय को गुरु हरि राय ने सिखी से बाहर कर दिया। यह होते हैं संत जिनके लिए बेटा परिवार व समाज से ऊपर नहीं जनकल्याण से बड़ा नही। सत्य को ही अपनाना है समझकर।
अपने जीवन में सांई बाबा कोई लोकप्रिय या महान संत न थे। न ही उनके बहुत अनुयायी थे। वे एक किसी छोटे से गांव में रहते थे महाराष्ट्र में। वहां पर हर 50 साल में हर 50 कोस पर एक महान संत बाबा महात्मा की प्रसिद्धि होती है अनेक मूर्तियां हैं। जैसे गजानन बाबा, तत्ज बाबा आदि ऐसे ही थे सांई बाबा। मेरी मान्यता है कि यह सब पाप लीला है और पाखंड है। बहुत से लोग बिना काम किये इसी तरह जीवन यापन करते हैं, अब भी कर रहे हैं। इन संतों और बाबाओं की सूची बहुत लंबी है।
जनहित व देशहित में सांई बाबा के योगदान पर नजर डालिए तो आंखें खुल जयेंगी। कोई योगदान नहीं मिलेगा बल्कि परिवार को खोजोगे तो विकिपीडिया पर बड़ी गलत बातें भी इनके संबंध में लिखी हैं। हो सकता है वह द्वेष पूर्ण हो । प्रतिद्वंदियों का दुष्प्रचार हो। असल में उनका पूरा जीवन एक छोटे से साधारण से गांव के आसपास ही कट गया और उस गांव में ऐसा क्या किया बाबा ने कि जो अन्य गांवों में नहीं था। क्या लोग गरीबी से निकल कर समृद्ध हो गए या भूमि अधिक उर्वरा हो गयी या कोई विशेष चमत्कार हो गया जैसे गाय अधिक दुधारी हो गयी, पशुओं में बीमारी खत्म हो गयी या मनुष्यों में अधिक शक्ति हो गयी या अन्य कोई विशेष बात हुई हो। ऐसा कुछ भी नही समझ में आता जिससे जनता के जीवन के दुख कम हो गए और समृद्धि आयी हो। सांई बाबा पर धारावाहिक भी आया था उसे देखकर उसके सब पात्र जोकर अधिक दिखते थे। फिर भी बाबा में कुछ शक्ति रही होगी जो आज इतना चमत्कार है और उस गांव के लोग भी बाबा से जुड़े रहे। यह गांव शिरडी था। बाबा मस्जिद में या पेड़ के नीचे रहते थे।
इसके अलावा अगर चमत्कारी साईंबाबा शुरू से इतने लोकप्रिय थे, तो उनकी किसी ने ज्यादा फोटो क्यों नहीं खींची, जबकि वे गाँधीजी के ज़माने के थे जिनकी सैकड़ों तस्वीरें उपलब्ध हैं?
गांधी जी के फोटो इसलिये है क्योंकि उन्होंने जनमानस में नवः चेतना राजनीतिक सोच विकसित की और लोगों को एकजुट होकर अत्याचार का अन्याय का बिरोध करने की हिम्मत दी। राष्ट्रीय पटल पर उभरे। योग्य व्यक्ति थे। राजनीति को नई दिशा दी। अहिंसा और सद्भावना से कम लियाँ। उपद्रव नही कोय बल्कि असहयोग आंदोलन किये।
सांई बाबा उंस गांव से ही नही निकले न कुछ विशेष चमत्कार सेवा सहयोग किया बल्कि साधारण बाबा की तरह संतोष और विश्वास बनॉय रखने का उपदेश ही देते रहे। खुद क्या जिंदगी जीई। अगर इनके भक्त धनवान होते या बाबा में चमत्कार होता तो 2 चार कैमरे खरीदवा देते और खूब फ़ोटो खिंचती तथा अब मिलती। भक्त भी अशिक्षित और पुरातनपंथी ही रहे होंगे ,उनका वास्ता विकसित जिंदगी से न था इसलिये उनके पास कैमरा भी नहीं था और फ़ोटो भी नहीं खींचे।
कभी सुना कि बाबा का भक्त फलां अंग्रेज था या फ्रांसीसी था या मंत्री था या समाज का प्रतिष्ठित बड़ा रईस धनवान व्यक्ति था जैसे टाटा बिरला डालमिया या जगत सेठ आदि। कभी नहीं , क्यों सोचिए इस बात को। गरीब, अशिक्षित व गांव के लोग ही क्यों भक्त थे। कारण यह था कि बाबा निठल्ले थे लोग समय काटने उनके साथ बैठ लेते थे और वहां बाबा से आपनी समाज की साधारण समस्याएं विचार विमर्श कर लेते थे।
बाबा का खाना पीना सब इन ही लोगों से चलता था। अत: बाबा सब को तसल्ली शांत धैर्य और श्रद्धा सब्र करने का उपदेस देते थे। सबको ठीक लगता था। समय से समस्याएं भी स्वतः ही हल हो जाती है। अतः बाबा की बल्ले 2 होने लगी और अब बाबा भी खुश तथा भक्त भी। चमत्कारी भी हो गए बाबा, सबको खुशी , सब्र , श्रद्धा, संतोष का उपदेश कारगर रहा। बाबा ने खुद एक ही लिबास में, एक ही कपड़े में जीवन जी लिया। अब भक्त उनका महिमा मंडन कर भगवान बताते हैं। यही साधन है भक्ति से शक्ति और कमाई का। इसे ही स्वामी दयानंद सरस्वती पोपलीला कहते है। बहुत से हिन्दू इन्हें भगवान नही मानते और जिनके काम बन जाते है वे भगवान मान कर पूज रहे है। कहते है सांई बाबा मुस्लम्सन फकीर थे लेकिन कोई मुस्लिम इन्हें नही पूजता। इस्लाम मे मजार की पूजा मजहव के अनुसार निषेध है लेकिन जमीन कब्जाने हेतु इसका खूब उपयोग हो रहा है। आजकल उत्तराखण्ड में खूब बुलडोजर चल रहा है और मजारों का कब्रो का अवैध अतिक्रमण हटाया जा रहा है। खास बात इनमें दफनाए गए मुर्दे की हड्डियां भी नही मिल रही है। अधिकतर सनातनी बाबा पंडित पुजारी व्यास शंकराचार्य इनको कोई मान्यता नहीं देते न भगवान क्या देव भी नहीं मानते। इनके ट्रस्ट के लोग सांई मन्दिर में इन्हें सबसे ऊपर रखते है। शंकर विष्णु आदि को इनके आजू बाजू रखकर इन्हें महान बड़ा और अधिक तेजस्वी बताते हैं।
दोनों पंथों में टकराव पूजा की आमदनी को लेकर है। श्रद्धा बिश्वास आस्था को लेकर मखौल बना रखा है। यह मतभेद धर्म के व्यापार में हो रहे कमाई के नुकसान के कारण है जबकि बाबा अपने जीवन में भगवान न थे मरने पर भक्तों ने भगवान बना दिया। और अब मोज़ कर रहे है। संगठन में शक्ति है। सब मिलकर भगवान की कृपा से मोज़ ले रहे है। मुझे भगवान या संत जैसा साँई बाबा में कुछ नहीं दिखता।
(इस आर्टिकल में लिखे विचार लेखक के निजी विचार है)
Compiled: up18 News
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