अगर हम इतिहास के पन्नों को उठा कर देखें तो विश्व के सामने पश्चिमी मीडिया द्वारा युद्ध से पहले यह नायक और खलनायक वाली जो छवि गढ़ दी जाती है, यही युद्ध का प्रमुख कारण भी बनती है या इसी की आड़ में युद्ध लड़ा जाता है।
नायक और खलनायक के बीच हमेशा युद्ध होता है, इस बात से कोई इंकार नही किया जा सकता। जंग को बेचकर उससे लाभ उठाने की पुरानी परंपरा रही है।
I completely forgot that George HW Bush said Saddam was in some ways worse than Hitler.https://t.co/87iQzIGGRn pic.twitter.com/2N5RTXfoqZ
— Michael Malice (@michaelmalice) February 25, 2022
नब्बे के दशक में अमेरिकी मीडिया द्वारा इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन की छवि हिटलर से भी बुरी बना दी गई थी, उनके राष्ट्रपति जॉर्ज बुश सीनियर ने खुद सद्दाम की यह छवि गड़ी थी।
बाद में अमेरिका ने सामूहिक विनाश के हथियार रखने का आरोप लगा इराक़ पर हमला कर दिया था।
https://www.theguardian.com/world/2004/oct/07/usa.iraq1
लेकिन जांच के बाद यह सामने आया कि इराक के पास ऐसे कोई हथियार नही थे।
युद्ध के बीच संचार और दुष्प्रचार के इस खेल को समझना जरूरी
संचार के बारे में अगर बात की जाए तो यह सूचना देता है, यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मज़बूत बनाता है। रूस हो या अमेरिका, युद्ध हो या शांति, संचार ईमानदारी से हो यह आवश्यक है।
प्रचार भी संचार के ज़रिए ही किया जाता है पर इसका सदुपयोग और दुरुपयोग हमारे हाथों में होता है।
दुष्प्रचार अलोकतांत्रिक तरीके से कार्य करता है, इसमें रणनीतियों का प्रयोग कर लोकतंत्र को प्रभावित किया जाता है। युद्ध में इस तरह के दुष्प्रचार का जमकर प्रयोग किया जाता है।
इंटरनेशनल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ द फर्स्ट वर्ल्ड वॉर की स्टीफन बैडसे द्वारा लिखी एक रिपोर्ट के अनुसार दुष्प्रचार तकनीक का प्रयोग प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। इसमें पोस्टर ,फोटो, मूवी शामिल थी।
इसी का उन्नत रूप आज हम ट्विटर, फेसबुक में भी देख रहे हैं। जिसमें फ़ोटो, वीडियो सब एक ही प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है।
इनको रीट्वीट, साझा कर हम सब भी उस दुष्प्रचार तंत्र का हिस्सा बन जाते हैं और यही कारण रहा कि इस युद्ध में रूस ने फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
जनता के दुष्प्रचार तंत्र का हिस्सा बनने का उदाहरण हम अमेरिकियों द्वारा अमेरिका की राजधानी में किए गए हमले से ले सकते हैं। ट्रम्प के समर्थकों ने सोशल मीडिया की मदद से जनता के मन में चुनाव के बारे में संदेह बढ़ाया था, जिसके प्रभाव में आकर अमेरिकी स्वतंत्रता की रक्षा के नाम पर हिंसा करने व्हाइट हाउस पहुंच गए थे।
शीत युद्ध की अवधारणा को पेश करने वाले पहले व्यक्तियों में से एक वाल्टर लिपमान कहते हैं कि हमें यह याद रखना चाहिए कि युद्ध के समय दुश्मन की तरफ़ से जो कहा जाता है वह हमेशा प्रचार होता है और हमारे मोर्चे पर जो कहा जाता है वह सत्य और धार्मिकता, मानवता का कारण और अशांति के लिए धर्मयुद्ध है।
इसे हम अभी चल रहे यूक्रेन-रूस युद्ध में रूस की तरफ़ से जारी बयान को पढ़ समझ सकते हैं। पुतिन अपने मोर्चे पर युद्ध को अशांति के लिए धर्मयुद्ध साबित करते कहते हैं इस ऑपरेशन को यूक्रेन में सैन्यीकरण और नाजीकरण ख़त्म करने के लिए शुरू किया जा रहा है।
पश्चिमी मीडिया अपने वास्तविक कार्य में विफ़ल रही है
‘ द गार्जियन’ की दुष्प्रचार अभियान पर साल 2001में लिखी रिपोर्ट ‘दुष्प्रचार अभियान’ को समझने में मददगार है।
इसमें लिखा है कि जब किसी संघर्ष के लिए तैयारी की बात आती है तब पश्चिमी मीडिया निराशाजनक रूप से ‘दुष्प्रचार अभियान’ का सहारा लेती है।
इसके पहले चरण में संकट पर बात की जाती है, दूसरे चरण में वह दुश्मन देश के नेता का चरित्र हनन करते हैं, तीसरे चरण में वह शत्रु का दानवीकरण करते हैं और चौथे चरण में अत्याचार पर बात करी जाती है।
How to understand Putin's war in Ukraine.
1. It is not about Nato, EU, USSR or even Ukraine. Putin needs a war to justify his rule & his swiftly increasing domestic repression.
2. Putin is today's Hitler & 24 Feb 2022 should be seen as 1 Sep 1939. Ukraine is Putin's Poland.— Anders Åslund (@anders_aslund) March 4, 2022
दूसरे चरण में आम तौर पर दुश्मन की तुलना हिटलर से करना आसान रहता है। सद्दाम हुसैन के बारे में आप पढ़ ही चुके हैं और अब पुतिन को भी हिटलर की तरह दिखाया जा रहा है।
अमेरिकी मीडिया कैसे अपने देश का बचाव करती है ये आप इन खबरों से समझ सकते हैं।
Iraq War hero Alwyn Cashe is closer to being awarded the Medal of Honor – CNNPolitics https://t.co/tRyQijXtf5
— Jake Tapper (@jaketapper) December 5, 2020
अमेरिकी समाचार चैनल सीएनएन की इस ख़बर को देखें तो पता चलता है कि इराक और अफगानिस्तान में (घुसपैठिया) बने एक अमेरिकी सैनिक को अमेरिकी मीडिया इराक वार हीरो की पदवी से नवाज़ रही है।
Video shows captured Russian soldier drinking tea, calling mom in tears https://t.co/KEqRuW36pO pic.twitter.com/u9INK6vuxR
— New York Post (@nypost) March 4, 2022
वहीं रूसी सैनिकों के लिए पश्चिमी मीडिया ने पुतिन के जुल्मों से परेशान होने वाली छवि बनाई है।
आखिर पाठक करें क्या
हमारी मीडिया की पश्चिमी मीडिया पर अत्यधिक निर्भरता ने हम भारतीयों की सोच को भी काफ़ी हद तक प्रभावित किया है।
इसलिए सवाल यह उठता है कि भारतीय दर्शक सही सूचना के लिए भरोसा किस पर करें। ट्विटर, फेसबुक, यूट्यूब व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सम्बंध भी पश्चिम से है तो यहां पर सूचना के साथ छेड़छाड़ की संभावना बन सकती है। यह मुमकिन है कि आप तक सही सूचना न पहुंचे या सही सूचना की पहुंच कम कर दी जाए।
एक सुधि पाठक,दर्शक को सही ख़बर समझने की क्षमता विकसित करनी सीखनी होगी। जैसे किसी देश की सेना के जवान से जुड़ी ख़बर की वास्तविकता जानने के लिए उस देश के सैनिकों की वर्दी जानना जरूरी है।
ऐसे ही किसी मीडिया की ख़बर पर विश्वास करने से पहले उसके स्वामित्व के बारे में जानना जरूरी है, जिससे पता चल सके कि ख़बर का फायदा किसे है। ख़बर सिर्फ़ पाठकों के लिए है या किसी दुष्प्रचार का हिस्सा होकर अपने स्वामी को लाभ पहुंचा रही है।
-हिमांशु जोशी