सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन बी. लोकुर ने हेट स्पीच को लेकर राजनेताओं पर परोक्ष रूप से निशाना साधा है। जस्टिस लोकुर ने कहा कि एक मंत्री जो लिंचिंग के आरोपी लोगों को माला पहनाते हैं। क्या वह एक उचित व्यक्ति हैं?
यदि ये उचित व्यक्ति हैं तो उचित होने का एक पूरी तरह से अलग ही अर्थ है। कम से कम, कानून के छात्र के रूप में जो मैं समझता हूं। उन्होंने कहा कि हमने दिल्ली में एक मंत्री को “गोली मारो” कहते सुना। यह मारने के लिए उकसाना नहीं तो क्या है? तो, ये ऐसी चीजें हैं जो हाल के दिनों में होती रही हैं। अदालतों ने इस पर कैसे प्रतिक्रिया दी है? हेट स्पीच का परिणाम हिंसा हो भी सकता है, नहीं भी।
हमें पहले समझना होगा कि हेट स्पीच है क्या?
उन्होंने कहा कि जब आप किसी पत्रकार को कुछ कहने या कुछ लिखने के लिए जेल में डालते हैं तो अन्य पत्रकारों पर आपका प्रभाव पड़ता है। जब आप किसी एनजीओ पर छापेमारी करते हैं तो अन्य एनजीओ पर इसका प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि जब आप हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो इसका परिणाम हिंसा हो भी सकता है, और नहीं भी। इसमें यह महत्वपूर्ण है, और यही हेट क्राइम का आधार बनता है।
सुल्ली डील्स, बुल्ली बाई हेट स्पीच नहीं है?
जस्टिस लोकुर ने कहा कि मैं आपको अभद्र भाषा के प्रभाव के कुछ उदाहरण देता हूं। उन्होंने कहा कि आपको याद होगा 2012 में म्यांमार में हुई हिंसा की ये तस्वीरें थीं। उन्हें असम में हिंसा के सबूत के तौर पर बांटा जा रहा था। इसके परिणाम स्वरूप हमारे देश के उत्तर-पूर्व के कुछ नागरिक हिंसा के शिकार हो गए। ऐसा अनुमान है कि उत्तर-पूर्व से लगभग 50,000 लोग अपने गृह राज्यों को वापस चले गए।
जस्टिस लोकुर ने कहा कि हाल के दिनों में आपने #SulliDeals और #BulliBai ऐप पर मुस्लिम महिलाओं की नीलामी का मामला आया था। इसमें कोई हिंसा नहीं है, लेकिन क्या यह हेट स्पीच नहीं है? क्या आप कह सकते हैं, “ठीक है! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।” यह हेट स्पीच है!
हेट स्पीच की कोई कानूनी परिभाषा नहीं
जस्टिस लोकुर ने आगे कहा कि वर्तमान में हमारे पास हेट स्पीच की कोई कानूनी परिभाषा नहीं है। लेकिन मुझे लगता है कि हमें इसकी जरूरत है। जस्टिस लोकुर ने कहा कि कुछ समय पहले, 1969 में इंडियन पीनल कोड में संशोधन किया गया था। साथ ही S153A में हेट स्पीच का कंसेप्ट रखा था। उन्होंने कहा कि भारत में अदालतें क्या कर रही हैं? मुझे यह कहते हुए खेद है, लेकिन हमने हिंसा की अवधारणा को हेट स्पीच में लाने की कोशिश की है।
सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वालों में थे शामिल
जस्टिस मदन बी लोकुर अपनी साफगोई के लिए जाने जाते हैं। जस्टिस लोकुर ने 1977 में वकालत की शुरुआत की थी। जस्टिस लोकुर 12 जनवरी 2018 में सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वालों चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल थे। वह 31 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए थे। जस्टिस लोकुर कश्मीरी पंडितों, निराश्रित विधवाओं, मृत्युदंड, फेक एनकाउंटर, जैसे मामलों में महत्वपूर्ण फैसले सुना चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट से रिटायर्ड होने के बाद जस्टिस लोकुर फिजी की सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त हुए थे।
-एजेंसियां
Discover more from Up18 News
Subscribe to get the latest posts sent to your email.