थोक महंगाई कम होने से भारतीय उपभोक्ताओं को राहत जरूर मिली है, लेकिन खुदरा की दर क्या होगी, इस पर सस्पेंस कायम है। सीपीआई अब भी आरबीआई द्वारा निर्धारित महंगाई के बैंड 2-6 फीसदी से कहीं ऊपर है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में थोक महंगाई दर और खुदरा महंगाई दर में एक साथ गिरावट कम ही देखी गई है। लंबी समयावधि की बात करें तो ज्यादातर समय थोक महंगाई दर और खुदरा महंगाई दर का विपरीत संबंध रहा है। विश्लेषक इसकी वजह कीमत तय करने की क्षमता कंपनियों के हाथ में होने को मानते हैं।
क्या कहता है आंकड़ों का गणित
10 सितंबर तक अर्थशास्त्रियों के बीच किए गए ब्लूमबर्ग सर्वे के मुताबिक आज जारी होने वाले डाटा में खुदरा महंगाई दर 6.9 प्रतिशत तक जा सकती है। दूसरी तरफ थोक महंगाई दर लगातार तीसरे महीने गिरकर 12.9 प्रतिशत पर आ सकती है। थोक महंगाई के आंकड़े बुधवार को जारी किए जा सकते हैं।
कंपनियों ने किया कीमतों में इजाफा
कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि होने के कारण पिछले कुछ महीनों में देश की बड़ी कंपनियां जैसे हिंदुस्तान यूनिलीवर, आईटीसी, मारुती सुजुकी लिमिटेड समेत कई कंपनियां अपने उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी कर चुकी हैं। हालांकि इसके बाद भी कई कंपनियां बढ़ी हुई लागत को इस मूल्यवृद्धि से पूरा नहीं सकी थीं। इसके कारण अप्रैल- जून तिमाही में कंपनियों के मुनाफे में कमी देखने को मिली थी।
डबल्यूपीआई और सीपीआई में अंतर कम होने के बाद भी कंपनियां कमोडिटी की कीमत आ रही कमी को रिटेल ग्राहकों को हस्तांतरित नहीं कर रही है, बल्कि उसे अपने मार्जिन को बढ़ाने में उपयोग कर रही है।
महंगाई को कम होने में समय लगेगा
जानकारों का मानना है कि महंगाई के आरबीआई द्वारा तय किए गए बैंड में आने में अभी समय लगेगा।आरबीआई इस महीने के अंत में होने वाली मॉनेटरी पॉलिसी की बैठक के बाद एक बार फिर ब्याज दर बढ़ाने पर फैसला ले सकता है। मई के बाद से आरबीआई अब तक 1.40 प्रतिशत रेपो रेट बढ़ा चुका है। महंगाई इस साल औसत 6.7 प्रतिशत पर रह सकती है।
-एजेंसी