राजभवन की गरिमा राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल द्वारा डॉ भानु प्रताप सिंह की पुस्तक “अयोध्या” का लोकार्पण

विविध

24 अगस्त 2025 का दिन मेरे जीवन में अविस्मरणीय बन गया। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के राजभवन में महामहिम राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ल जी से आत्मीय भेंट हुई। स्वागत का जो वातावरण वहाँ निर्मित हुआ, वह किसी राजसी ठाठ-बाट से अधिक आत्मीयता और भारतीय परंपरा की गरिमा से परिपूर्ण था। जलपान की विनम्रता और फिर निजी कक्ष में हुई बातचीत ने इस भेंट को और भी स्मरणीय बना दिया।

महामहिम का स्नेह और व्यक्तित्व

राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ल जी का व्यक्तित्व शिष्टाचार, सरलता और सौम्यता का अद्वितीय संगम है। उनके सान्निध्य में औपचारिकता विलीन हो जाती है और आत्मीयता का भाव मन को छू लेता है। उन्होंने मेरे द्वारा लिखित पुस्तक “अयोध्या” का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उनका प्रोत्साहन और मधुर वचन लेखक के लिए किसी अमूल्य धरोहर से कम नहीं थे। उनके व्यवहार से यह अनुभूति हुई कि वे केवल राज्य के संवैधानिक प्रमुख नहीं, अपितु संस्कृति और साहित्य के भी सच्चे संरक्षक हैं।

कर्मचारियों का अनुकरणीय व्यवहार

राजभवन में जिस बात ने मेरे हृदय को सबसे अधिक प्रभावित किया, वह था वहाँ के कर्मचारियों का अद्वितीय व्यवहार। इतनी विनम्रता, सौजन्य और सेवा-भाव मैंने आज तक किसी सरकारी संस्थान में अनुभव नहीं किया। उनके मृदुल आचरण ने राजभवन की गरिमा को और भी ऊँचा कर दिया। हर कर्मचारी का आत्मीय स्वागत और मुस्कुराता चेहरा, आगंतुक को यह महसूस कराता है कि वह अतिथि नहीं, परिवार का ही सदस्य है।

शिमला का अनुपम सौंदर्य

राजभवन से शिमला का दृश्य अपने आप में एक अद्भुत काव्य प्रतीत होता है। बादल कभी सिर के ऊपर ठहर जाते हैं, कभी वर्षा की बूँदें टपकने लगती हैं और कभी अचानक धूप निकल आती है। इस बदलते मौसम में प्रकृति मानो अपने विविध रूपों की छटा बिखेर देती है। शिमला मैं पहले भी आ चुका हूँ, किंतु राजभवन की यह पहली यात्रा थी। यहाँ खड़े होकर ऐसा प्रतीत होता है मानो हम आकाश और पृथ्वी के संगम पर खड़े हों।

सहयोगियों के प्रति आभार

इस अवसर पर भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. राकेश गुप्ता जी की उपस्थिति विशेष महत्व की रही। उनके मार्गदर्शन और सहयोग से यह अवसर और भी स्मरणीय बन गया। मैं हृदय से उनका आभारी हूँ।

महामहिम राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल जी का स्नेहिल स्वभाव और राजभवन का आत्मीय वातावरण यह संदेश देता है कि जहाँ शालीनता और सौजन्य हो, वहाँ औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्मीयता ही सबसे बड़ा सम्मान है। उनकी साहित्य के प्रति संवेदनशीलता और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता यह दर्शाती है कि भारत की राजनीति में भी एक साहित्यिक और मानवीय हृदय की धड़कन अब भी जीवित है।