जापान की विरासत और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं वहां के सार्वजनिक स्नानघर

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जापान का पारंपरिक स्नानघर जिसे ‘सेंटो’ के नाम से जाना जाता है, वहां के समुदाय का अभिन्न अंग रहा है. 1960 के दशक तक अधिकांश जापानी घरों में बाथरूम नहीं हुआ करता था और लोग पड़ोस के सार्वजनिक स्नानघर में स्नान के लिए इकट्ठा होते थे. मिल-जुलकर स्नान करना सामाजिक कार्यक्रम बन गया था. बदलते समय के साथ देश में आज लगभग हर घर में बाथरूम बन गया है, लेकिन इसके बावजूद कुछ सार्वजनिक स्नानघर अब भी मौजूद हैं. हालांकि, अब इन सार्वजनिक स्नानघर की लोकप्रियता कम हो चुकी है.

राजधानी टोक्यो में सेंटो की संख्या में विशेष तौर पर गिरावट हुई है. हाल के वर्षों में इन सामुदायिक स्नानघरों को चलाने वाले ऑपरेटरों के सामने मुश्किल हालात पैदा हो गए हैं. कोरोना महामारी ने विशेष तौर पर इन ऑपरेटरों को चोट पहुंचायी, क्योंकि लोग एक-दूसरे से दूरी बनाकर रहने लगे. अब इन स्नानघरों को चलाना मुश्किल काम हो गया है.

सामुदायिक स्नानघर लोगों को स्नान करने के लिए काफी ज्यादा प्रोत्साहित करते थे. अब सरकार ने सेंटो संस्कृति को बचाने के लिए कूपन योजना शुरू की है, ताकि लोग अपने आस-पास मौजूद सार्वजनिक स्नानघर में आने के लिए प्रोत्साहित हो सकें.

टोक्यो शहर में स्थानीय सरकार के सेफ्टी एंड लिविंग सेक्शन के निदेशक केंटा ओरिहारा ने डीडब्ल्यू को बताया, “टोक्यो में सेंटो की संख्या कम हो रही है क्योंकि काफी कम लोग उनका इस्तेमाल करते हैं. ऐसे हालात में सेंटो ऑपरेटरों की सहायता करना जरूरी हो गया है, क्योंकि वे हमारी विरासत और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.”

ओरिहारा ने कहा, “हाल के वर्षों में महामारी के कारण स्थिति और खराब हो गई है. अब ईंधन, बिजली और अन्य सभी चीजों की कीमतें बढ़ रही है, जिससे ऑपरेटरों के लिए सेंटो का संचालन करना मुश्किल हो गया है. हम टोक्यो में अधिक से अधिक सेंटो को संरक्षित करने में उनकी मदद करना चाहते हैं.”

हालांकि, यह एक बड़ी चुनौती है. दिसंबर 1968 में, अधिकारियों ने टोक्यो में 2,687 सार्वजनिक स्नानघर को पंजीकृत किया था. जबकि, उस समय शहर की आबादी करीब 2.2 करोड़ थी. दिसंबर 2020 में, टोक्यो पब्लिक बाथहाउस एसोसिएशन ने बताया कि अब शहर में सिर्फ 500 सार्वजनिक स्नानघर बच गए हैं. इस साल के अप्रैल महीने तक यह आंकड़ा 476 पर पहुंच गया. इस बीच, टोक्यो की आबादी बढ़कर 3.73 करोड़ पर पहुंच गई है.

ओरिहारा ने कहा, “पहले कुछ घरों में ही बाथरूम हुआ करता था, इसलिए लोग स्थानीय सेंटो में जाते थे. यह यहां के समुदाय की जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा था. यह लोगों के मिलने और बात करने की भी जगह थी. इससे उन्हें पता चलता था कि आस-पड़ोस में क्या चल रहा है. अब समय बदल गया है और शहर के सभी घरों में अपना बाथरूम है. इसलिए, सार्वजनिक स्नानघर की जरूरत कम हो गई है.”

सेंटो में आने वाले लोगों की संख्या में गिरावट को देखते हुए, स्थानीय प्रशासन ने जुलाई महीने में टोक्यो 1010 योजना की शुरुआत की. इसके तहत, क्यू-कोड कूपन उपलब्ध कराया गया, जिससे लोग मुफ्त में इन सेंटो का इस्तेमाल कर सकें. आमतौर पर, एक बार सेंटो का इस्तेमाल करने के लिए लोगों को करीब 500 येन चुकाने पड़ते थे.

पारंपरिक शैली

कई स्नानघर पुराने युग की याद दिलाते हैं. वे लकड़ी से बने हैं. इनकी वास्तुकला द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत के बाद के वर्षों की है. कई जगह दीवारों पर माउंट फूजी की बड़ी और शैलीबद्ध पेंटिंग हैं.

इन सेंटो में महिलाओं और पुरुषों के स्नान करने के लिए अलग-अलग जगहें बनी होती हैं. यहां पानी का तापमान आमतौर पर लगभग 42 डिग्री सेल्सियस (107.6 डिग्री फॉरेनहाइट) रखा जाता है. हालांकि, यह थोड़ा गर्म लग सकता है, लेकिन जापान स्नान करने वालों का देश है. वे जोर देकर कहते हैं कि लंबे समय तक खुद को गर्म पानी में रखना शरीर के लिए लाभकारी होता है.

गर्म पानी में स्नान करने वाले लोग कहते हैं कि पहला लाभ शरीर के तापमान को बढ़ाने से होता है. गर्म पानी में डूबने से धमनियों को आराम मिलता है और वो फैलती हैं जिससे खून का बहाव बेहतर होता है. इससे शरीर को ऑक्सीजन और पोषण मिलता है. साथ ही, कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरे गंदे पदार्थ शरीर से बाहर निकलते हैं.

गर्मी दर्द को भी कम करती है, जबकि शरीर को गर्म करने से तंत्रिकाओं की संवेदनशीलता कम हो जाती है. इससे पीठ दर्द, कड़े कंधे और अन्य दर्द कम होते हैं. गर्मी हड्डियों में जोड़ों के बीच मौजूद लिगामेंट को भी नरम बनाती है और इससे जोड़ों के दर्द से राहत मिलती है.

बाथहाउस एसोसिएशन जोर देकर कहते हैं कि इन सब के अलावा सेंटो में जाने सेएक-दूसरे के प्रति सम्मान को बढ़ावा मिलता है. कई देशों में सामुदायिक स्नान की परंपराएं हैं, लेकिन जापानी सेंटो में कुछ खास बात है.”

टोक्यो में सेंटो को बचाने के लिए शुरू की गई पहल को व्यापक समर्थन मिल रहा है. जापान के अन्य शहरों में इसी तरह की पहल शुरू की जा सकती है. हालांकि, एक डर यह भी है कि सार्वजनिक स्नानघर समय की मांग के मुताबिक शुरू किया गया कार्यक्रम था जो जल्दी या बाद में पूरी तरह खत्म हो सकते हैं.

अलग पीढ़ी

सप्पोरो शहर में रहने वाली शिक्षक योको सुकामोतो का कहना है, “मुझे लगता है कि यह एक अच्छा विचार है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि महामारी और बढ़ती लागत ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत सारे कारोबारों के लिए मुश्किल हालात पैदा कर दिए हैं.”

उन्होंने कहा, “मेरे हिसाब से बड़ी समस्या यह है कि मेरी पीढ़ी के लोग, 40 या उससे कम उम्र का कोई व्यक्ति सेंटो में नहीं जाता. मुझे स्पा जाना पसंद है, जो ज्यादा आनंददायक होता है. हालांकि, ‘ऑनसेन’ गर्म सोते (हॉट स्प्रिंग्स) अभी भी लोकप्रिय हैं, लेकिन अब सेंटो में जाने की कोई जरूरत नहीं है.”

जापान में करीब 27,000 प्राकृतिक गर्म सोते हैं जो प्राचीन काल में लगभग सभी के लिए गर्म पानी का स्रोत थे. इसके साथ ही स्नान देश की राष्ट्रीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया. इसमें धर्म ने भी एक भूमिका निभाई. कई मंदिर स्थानीय लोगों को मुफ्त स्नान की सुविधा प्रदान करते थे. कई बौद्ध सूत्रों में भी नियमित स्नान की सिफारिश की गई है.

सुकामोतो आगे कहती हैं, “पुराने समय में वे हर समुदाय के लिए वाकई में मायने रखते थे, लेकिन तब से लेकर आज तक जापानी समाज काफी बदल गया है. मुझे लगता है कि पुरानी पीढ़ी सेंटो जाना जारी रखेगी, क्योंकि यह उनकी बचपन की आदत है. शायद यह जरूरी भी है कि ये लोग घर से बाहर निकलें, अपने दोस्तों से बात करें और सेंटो को सामुदायिक केंद्र के रूप में इस्तेमाल करें. हालांकि, इस पीढ़ी के गुजरने के बाद मुझे नहीं लगता कि नई पीढ़ी सेंटो जाएगी, लेकिन यह दुख की बात है.”

– जूलियान रायल, टोक्यो से डीडब्ल्यू