खबरदार! व्यासपीठ से ‘विनाशकाल विपरीत बुद्धि’ की कथा: महिला आयोग अध्यक्ष हुई नाराज, नोटिस भेजने की तैयारी

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देश में कथावाचकों की कमी नहीं है, लेकिन जो ‘कथा’ अब मथुरा की पावन भूमि से निकली है, वह किसी भी पुराण में नहीं मिलेगी. जी हां, वृंदावन के गौरी गोपाल आश्रम से स्वामी अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने कथित तौर पर एक ऐसा ‘ज्ञान’ बांटा है, जिसने पूरे देश को सकते में डाल दिया है. सवाल यह नहीं कि उन्होंने क्या कहा, सवाल यह है कि क्यों कहा?

तो क्या 25 पार युवतियों का ‘चरित्र’ संदिग्ध है?

स्वामी अनिरुद्धाचार्य ने अपने कथित प्रवचन में फरमाया है कि “25 वर्ष की अविवाहित लड़कियों का चरित्र ठीक नहीं होता.” इतना ही नहीं, उन्होंने तो लड़कियों की शादी की ‘सही उम्र’ भी तय कर दी – 14 वर्ष! उनका तर्क है कि इससे वे परिवार में अच्छे से घुलमिल जाएंगी. अब कोई इन महाराज से पूछे कि किस शास्त्र में लिखा है कि 14 साल में शादी करने से चरित्र प्रमाण पत्र मिल जाता है? और 25 साल की अविवाहित लड़की अगर अपने पैरों पर खड़ी है, अपना जीवन अपनी शर्तों पर जी रही है, तो उसका चरित्र ‘खराब’ कैसे हो गया? क्या ‘अच्छे चरित्र’ का सर्टिफिकेट सिर्फ शादीशुदा और कम उम्र की महिलाओं के लिए आरक्षित है?

यह बयान उस देश में आया है, जहां ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा गूंज रहा है. क्या अब हमें ‘बेटी की शादी कराओ, चरित्र बचाओ’ का नया नारा लगाना चाहिए?

विनाशकाल विपरीत बुद्धि’ या शोहरत का साइड इफेक्ट?

स्वाभाविक रूप से, इस ‘दिव्य ज्ञान’ पर बवाल मच गया है. उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष बबीता चौहान ने इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने साफ-साफ कहा है कि या तो कथावाचक में बुद्धि नहीं है, या फिर उन्हें कम उम्र में इतनी शोहरत मिल गई है कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि इसका इस्तेमाल कैसे करें. चौहान जी ने तो यहां तक कह दिया कि यह ‘विनाशकाल विपरीत बुद्धि’ का मामला है.

अब यहां सवाल यह उठता है कि क्या व्यासपीठ, जो सदियों से ज्ञान और नैतिकता का प्रतीक रही है, अब ऐसे बयानों का मंच बन गई है? हजारों की भीड़, जिसमें 80% महिलाएं होती हैं, उनके सामने एक तथाकथित धर्मगुरु महिलाओं और बेटियों के लिए इतनी ‘हल्की और गंदी बात’ कैसे कर सकता है? क्या यह सिर्फ बयान है या समाज में महिलाओं के प्रति घटती संवेदनशीलता का एक और उदाहरण?

माफी कोई समाधान नहीं, कार्रवाई कब होगी?

बबीता चौहान ने यह भी साफ किया है कि आयोग इस मामले का संज्ञान लेगा और कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ माफी मांग लेना इस तरह के बयानों का कोई समाधान नहीं है. वाकई, माफी तो वो शब्द है जो अक्सर बड़ी गलतियों को ढंकने के लिए इस्तेमाल होता है. लेकिन क्या इस तरह के बयान समाज में महिलाओं के प्रति सोच को और विकृत नहीं करेंगे?

यह विडंबना ही है कि एक तरफ हम नारी शक्ति की बात करते हैं, महिला सशक्तिकरण के नारे लगाते हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ तथाकथित धर्मगुरु व्यासपीठ से बैठकर महिलाओं के चरित्र पर सवाल उठाते हैं और उनकी आजादी को चौदह साल की उम्र में विवाह के बंधन में बांधने की सलाह देते हैं.

सवाल अभी भी कायम है: क्या ‘धर्म’ के नाम पर कुछ भी बोल देने की आजादी है? और क्या ऐसे बयानों पर समाज खामोश रहेगा, या फिर अब हमें यह भी सिखाना पड़ेगा कि ‘अविवाहित’ होना कोई ‘अपराध’ नहीं है और 25 साल की उम्र में भी लड़कियां चरित्रवान और आत्मनिर्भर हो सकती हैं? आखिर यह कैसा ‘कथाकाल’ आ गया है, जहां ज्ञान कम और विवाद ज्यादा सुनने को मिलते हैं?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से