आगरा जिला अस्पताल में इस समय एक चिकित्सक और एक कर्मचारी की कार्यगुज़ारी के चलते जहां एक तरफ मरीजों की जान पर बन रही है तो वहीं दूसरी तरफ मेडिकल स्टूडेंट का शोषण किया जा रहा है। जिला अस्पताल के इस चिकित्सक से उससे संबंधित बीमारियों का ऑपरेशन कराने में खुद जिला अस्पताल प्रशासन के कर्मचारी घबराते हैं। क्योंकि अक्सर इस चिकित्सक के ऑपरेशन सफल नहीं होते और मरीज की जान पर बन आती है। अस्पताल प्रशासन इन मामलों को अभी तक दबाता रहा है।
वहीँ एक कर्मचारी भी सामने आया है। भ्रष्टाचार इससे बिल्कुल अछूता नहीं हैं। ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट भी लेना है तो राजी या ग़ैरराजी पैसा तो आपको देना ही पड़ेगा। तब जाकर आपको सर्टिफिकेट मिलेगा। जिला अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी से इस खबर के सिलसिले में बातचीत करने के दौरान ये दोनों मामले सामने आए।
ऑपरेशन बिगड़ने पर मरीज को किया ट्रांसफर
जिला अस्पताल में एक चिकित्सक ने हाल ही में अस्पताल में भर्ती हुए एक मरीज का ऑपरेशन किया था। इस मरीज के पेट में पस हो गया था। चिकित्सक ने ऑपरेशन कर दिया लेकिन कुछ समय बाद ही उस मरीज की तबीयत बिगड़ने लगी। परिजनों ने हंगामा काटा तो जिला अस्पताल प्रशासन सकते में आ गया। आनन-फानन में विचार विमर्श हुआ और फिर मरीज को गंभीर अवस्था में एसएन अस्पताल में शिफ्ट कराया गया।
मरीज की हुई मौत
इस मरीज को एसएन में शिफ्ट कराने के लिए जिला अस्पताल के दो चिकित्सक भी साथ में पहुंचे। चिकित्सकों के रेफरेंस पर इस मरीज को भर्ती तो कर लिया गया लेकिन सूत्रों की माने तो कुछ ही घंटों बाद उस मरीज ने दम तोड़ दिया। इस घटना को लेकर जिला अस्पताल के चिकित्सक अधिकारी ने मरीज का ऑपरेशन करने वाले चिकित्सक को जमकर फटकार लगाई।
ऑपरेशन के लिए चिकित्सक को मनाही
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी इसी चिकित्सक द्वारा किए गए कई ऑपरेशन बिगड़ चुके हैं, मरीजों की जान पर बन आती है। इस समस्या को देखते हुए जिला अस्पताल प्रशासन ने कई बार इस चिकित्सक को अपने रूम में बुलाकर फटकार लगाई और ऑपरेशन न करने की भी हिदायत दी है लेकिन इसके बावजूद यह चिकित्सक ऑपरेशन करता है। क्योंकि जिस फील्ड से यह चिकित्सक जुड़ा है उसका दूसरा ऑप्शन इस समय जिला अस्पताल में मौजूद नहीं है।
भ्रष्ट कर्मचारी की भूमिका आई सामने
इस मामले की तफ्तीश के लिए जब जिला अस्पताल के चिकित्सक अधिकारी के पास पत्रकारों की टीम बैठी हुई थी। तभी मेडिकल फील्ड से जुड़ी हुई एक छात्रा आई। उसने शिकायत की कि उसकी ट्रेनिंग हुई लेकिन उसका सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है। काफी समय से उसे घुमाया जा रहा है। जब पूछा गया कि सर्टिफिकेट किसे देना है। जैसे ही उस छात्रा ने उस कर्मचारी का नाम बताया तो चिकित्सक अधिकारी ने अपना सिर पकड़ लिया। फिर उससे पूछा क्या कोई सुविधा शुल्क लिया गया। पहले तो छात्रा सहम गई लेकिन फिर उसने खुलकर बताया कि उससे सुविधा शुल्क भी लिया गया लेकिन अभी तक सर्टिफिकेट नहीं दिया। चिकित्सा अधिकारी ने उस छात्रा को आश्वासन दिया कि जल्द ही उसका सर्टिफिकेट उसे मिल जाएगा।
जैसे तैसे इस छात्रा को रवाना किया गया, उसके कुछ देर बाद ही एक और मेडिकल स्टूडेंट पहुंच गई। उससे पूछा कैसे आना हुआ तो उसने भी जवाब दिया कि उसकी ट्रेनिंग को पूरा हुए लगभग 5 से 6 महीने पूरे हो चुके हैं लेकिन उसे ट्रेनिंग का सर्टिफिकेट नहीं दिया जा रहा है। जानकारी पर पता चला कि उसी कर्मचारी को सर्टिफिकेट देना है।
इतना जानते ही जिला अस्पताल के चिकित्सक अधिकारी ने अपने अधीनस्थ से कहा कि ‘बस अब बहुत हो गया, आप भी गंभीर हो जाइए। मामले बिगड़ रहे हैं। ऐसा ना हो कि जिला अस्पताल में मरीज के साथ साथ ट्रेनी स्टूडेंट भी आना बंद कर दें।’
चिकित्सक अधिकारी ने पकड़ा अपना सिर
ये दोनों मामले उस समय आए जब पत्रकार वहां मौजूद थे। पत्रकारों के सामने जब ये सब मामले खुले तो चिकित्सक अधिकारी अपना सिर पकड़ बैठे और कहने लगे कि इनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं करता, इसलिए इन लोगों की हिम्मत बढ़ती चली जा रही हैं।
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