पाकिस्‍तानी सेना ने आतंकी संगठन TTP के सामने किया आत्‍मसमर्पण, समझौता जल्‍द

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पाकिस्‍तान की सेना पेशावर के सैन्‍य स्‍कूल में सैंकड़ों बच्‍चों की जान लेने वाले आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्‍तान (TTP) के सामने आत्‍मसमर्पण करने जा रही है। तालिबान की मध्‍यस्‍थता के बाद पाकिस्‍तानी सेना और टीटीपी के बीच स्‍थायी संघर्ष विराम हो गया है और जल्‍द ही एक समझौते पर हस्‍ताक्षर होने जा रहा है। इसके तहत पाकिस्‍तानी सेना बड़ी संख्‍या में टीटीपी आतंकियों को छोड़ेगी, कबायली इलाके में हजारों की तादाद में तैनात पाकिस्‍तानी सैनिक हटाए जाएंगे। इसके अलावा खैबर पख्‍तूनख्‍वा प्रांत के मलकंद इलाके में शरिया कानून लागू किया जाएगा।

पाकिस्‍तान के कबायली इलाके में ही पहली बार साल 2007 में टीटीपी का गठन हुआ था। हालांकि अभी तक यह फैसला नहीं हो पाया है कि कबायली इलाके का खैबर पख्‍तूनख्‍वा में मर्जर किया जाएगा या नहीं। इसके अलावा टीटीपी आतंकियों के हथियारों के साथ लौटने और आतंकी संगठन के बने रहने पर भी कोई फैसला नहीं हो पाया है। पाकिस्‍तानी मीडिया के मुताबिक जनरल बाजवा और शहबाज शरीफ सरकार हजारों की तादाद में टीटीपी आतंकियों को छोड़ने और उनके खिलाफ कोर्ट में चल रहे मामले वापस लेने पर सहमत हो गए हैं।

पाकिस्‍तान में तेज हुआ टीटीपी के साथ समझौते का विरोध

पाकिस्‍तान सरकार के टीटीपी के सामने सरेंडर करने से पेशावर स्‍कूल में मारे गए बच्‍चों के माता-पिता ठगा सा महसूस कर रहे हैं और बहुत नाराज हैं। पेशावर आर्मी पब्लिक स्‍कूल पर साल 2014 में हुए इस हमले में 132 से ज्‍यादा बच्‍चे मारे गए थे। ये सभी बच्‍चे पाकिस्‍तानी सैनिकों के थे। उनका कहना है कि टीटीपी के साथ डील करके जले नमक छिड़का जा रहा है। उधर, पाकिस्‍तानी अधिकारियों का कहना है कि वे 14 साल से चल रहे उग्रवाद का खात्‍मा करना चाहते हैं।

इस बीच पाकिस्‍तान में इस समझौते का विरोध तेज होता जा रहा है। टीटीपी की हिंसा को देखते हुए डील के महत्‍व को लेकर सवाल उठ रहे हैं। वहीं लोग इसे तालिबान के साथ जोड़कर देख रहे हैं जो इस्‍लामाबाद की मदद से सत्‍ता में आए हैं। कई विश्‍लेषक इस डील के गंभीर परिणाम होने की चेतावनी दे रहे हैं। वहीं सरकार के वरिष्‍ठ अधिकारियों ने माना है कि इस बातचीत को सरकार सेना की मदद से अंजाम दे रही है। पाकिस्‍तान के पूर्व सांसद अफ्रासाइब खटक कहते हैं,

‘अफगानिस्‍तान में तालिबान को थोपने के बाद पाकिस्‍तानी सेना कबायली इलाके को उन्‍हें सौंपना चाहती है जिससे पश्‍तून नवउपनिवेशवादी क्रूर शर्तों के तहत जीने के लिए मजबूर हो जाएंगे।’

पश्‍तूनों को टीटीपी के क्रूर शासन का सता रहा डर

खटक का मानना है कि पाकिस्‍तानी सेना का इस्‍लामिक तालिबान को मदद उनकी रणनीति का हिस्‍सा है ताकि अफगानिस्‍तान की राजनीति को दिशा देना है। साथ पश्तून इलाके को नियंत्रित करना है जो दोनों देशों में मौजूद है।

पश्‍तून पाकिस्‍तान के खैबर पख्‍तूनख्‍वा प्रांत में सबसे बड़ा जातीय अल्‍पसंख्‍यक समूह है। इनकी आबादी करीब 4 करोड़ है। खटक पर साल 2008 में तालिबान ने आत्‍मघाती हमला किया था जिसमें वह बाल-बाल बचे थे। इसके बाद उन्‍होंने कई बार तालिबान के साथ बातचीत की थी। इससे पहले भी टीटीपी के साथ साल 2008 और साल 2009 में समझौते हुए थे लेकिन वह बाद में पलट गया और पाकिस्‍तानी सेना को स्‍वात घाटी में सैन्‍य अभियान चलाना पड़ा था। स्‍वात घाटी मलकंद इलाके के 7 जिलों में से एक है। अब पश्‍तूनों को टीटीपी के क्रूर शासन का डर सता रहा है।

-एजेंसियां


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