हमारी सोच का बड़ा असर पड़ता है शरीर और उसकी सेहत पर

Life Style

मिर्ज़ा गालिब का शेर है कि-

उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है…

जी हां , चेहरा यानि शरीर का अहम हिस्‍सा और मन एक दूसरे के बायस होते हैं। हमारे दिमाग़ से जुड़ा होता है हमारा शरीर। इसलिए हम जो भी सोचते हैं या मस्तिष्क जैसा महसूस करता है, शरीर और उसकी सेहत पर उसका वैसा ही असर होता है। अगर हम ख़ुश हैं तो स्वस्थ रहेंगे, लेकिन अगर ग़ुस्से में हैं या दुखी हैं तो शरीर पर उसका नकारात्मक असर देखने को मिलता है। यानी हर मनोभाव का असर शरीर पर अलग-अलग नज़र आता है।

मन में बैठा क्रोध

यदि किसी कारण आप में क्रोध है, उसे मन में दबाकर रखा है और अंदर ही अंदर घुट रहे हैं तो आपके लिए यह कई रोग उत्पन्न कर सकता है। इससे सिरदर्द, तनाव, माइग्रेन, क्रॉनिक बैक पेन, फाइब्रोमायल्जिया जैसे रोग हो सकते हैं। फाइब्रोमायल्जिया में मांसपेशियों और हड्डियों में दर्द होता है, थकान महसूस होती है, जिससे नींद से संबंधित कई मुश्किलें आनी शुरू हो जाती हैं।

— इसलिए आपके मन में जो भी क्रोध है उसे मन में नहीं रखना चाहिए। इससे आप मन ही मन घुटते रहते हैं और कई प्रकार के रोगों को आमंत्रित करते हैं। क्रोध का हल ढूंढे। कारण समझें और उसे दूर करने की कोशिश करें। कारण समझना आईंदा भी क्रोध से दूरी बनाने में भी मदद करेगा।

— अच्छा संगीत सुनें, व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर मेडिटेशन ज़रूर करें और योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करें। अंदरूनी क्रोध व्यक्ति के कारण हो, उसे कहना संभव न हो, तो सिरदर्द, तनाव, माइग्रेन जैसी समस्याएं हो सकती हैं। मनो-सलाहकार की मदद लें।

तुनकमिज़ाजी

यदि आप अपनी नाराज़गी पर नियंत्रण नहीं करते तो यह आपके शरीर को कई प्रकार से नुक़सान पहुंचा सकती है। इससे उच्च रक्तचाप और हृदय से संबन्धित कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ग़ुस्से की स्थिति में दांत किटकिटाने लगते हैं। शरीर में थरथराहट होने लगती है, रक्तचाप बढ़ जाता है, पसीना छूटने लगता है और सांस फूलने लगती है। इसलिए हृदय को स्वस्थ रखने के लिए आपको चिढ़ जाने पर नियंत्रण करना होगा। जब कुछ नापसंद घटे तो लंबी गहरी सांस लें और कुछ देर के लिए शांत रहें। मेडिटेशन करें, मनपसंद संगीत सुनें, पसंदीदा काम करें, जिससे मन शांत रहेगा और चिढ़ पर जल्द ही नियंत्रण पा सकेंगे।

चिंता होना

चिंता की स्थिति में पेट और हृदय पर ज़ोर पड़ता है। इसमें घबराहट होती है जिससे हार्ट पैल्पिटेशन भी हो जाता है। इस स्थिति में कुछ देर के लिए दिल की धड़कन अनियंत्रित हो जाती हैं और गले व गर्दन में भी दर्द शुरू हो जाता है। इस दौरान माइट्रल वॉल्व प्रोलैप्स (दिल का एक वॉल्व ख़राब होना) की समस्या हो सकती है। इससे थकान और सांस की तकलीफ़ जैसी दिक़्क़तें पैदा हो सकती हैं। इसलिए चिंता से बचाव के लिए स्वयं प्रयास करें। वर्तमान में जिएं, ख़ुद पर विश्वास रखें, सांस से संबंधित व्यायाम करें और विश्वसनीय परिजन या दोस्त के साथ अपनी समस्या साझा करें। अगर आपको लग रहा है कि आप अधिक चिंता में हैं जिस पर आप क़ाबू नहीं पा रहे हैं तो मनोचिकित्सक या मनोविशेषज्ञ की सलाह लें। किसी भी प्रकार की चिंता से दूरी बनाए रखने की कोशिश करें।

तनाव और उदासी

तनाव और उदासी होने पर मस्तिष्क में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जैसे नींद नहीं आती, सिर दर्द होता है और सिर में भारीपन रहता है। तनाव के कारण शरीर में कई तरह के हॉर्मोन का स्तर बढ़ता जाता है, लगातार तनाव के कारण अवसाद की स्थिति बनती रहती है। वहीं हमेशा दुखी रहने से लिवर, फेफड़े, हृदय और इनसे जुड़े अंगों की क्रियाओं पर असर होता है। इसलिए तनाव से दूर रहने का प्रयास करें। परंतु व्यक्ति अपनी परेशानियों में इतना घिरा रहता है कि वह तनाव की स्थिति में चला जाता है। कभी-कभी तनाव इतनी गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है कि उससे अवसाद की समस्या पैदा हो जाती है। इसलिए परेशानियां किसी नज़दीकी व्यक्ति से साझा करें। तनाव और उदासी दूर करने के लिए ध्यान लगाएं और व्यायाम करें। खुली हवा में वक़्त बिताएं और वो काम करें जिससे ख़ुशी मिलती है।

-एजेंसी

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