ऑपरेशन ओपेरा: 41 साल पहले आज के दिन की गई थी विश्व के इतिहास में पहली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

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41 साल पहले विश्व के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया था, जब इसराइल ने पहली बार किसी दूसरे शक्तिशाली मुल्क में घुसकर उसके परमाणु रिएक्टर पर हवाई हमला किया और उसे पूरी तरह से तबाह कर दिया था. इसराइल ने इसे ‘ऑपरेशन ओपेरा’ का नाम दिया था.

इसराइल ने इराक़ के ‘ओसीराक़’ परमाणु रिएक्टर को नष्ट करने के लिए आठ एफ-16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया था. हालांकि यह हमला सात जून 1981 को हुआ था, लेकिन इसकी घोषणा आठ जून को की गई.

अगले दिन नौ जून को अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स अख़बार सहित अन्य मीडिया ने यह ख़बर दी थी कि इसराइली विमानों ने कल बग़दाद के पास परमाणु रिएक्टर पर बमबारी की और उसे नष्ट कर दिया.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसराइल ने कहा था कि अगर उसने हमला नहीं किया होता, तो इराक़ “परमाणु हथियार विकसित करने में सक्षम हो जाता.”

इसराइल के प्रधानमंत्री मनाखम बेगिन ने कहा था कि दूसरे विश्व युद्ध में हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम जितने बड़े बम से इसराइली शहरों को बचाने के लिए, इराक़ के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन पर हमला ज़रूरी था, ताकि उस ‘बुराई’ को रोका जा सके.”

ओसीराक़ में तबाही और मौतें

हालांकि इसराइल ने दावा किया था कि हमले में किसी की मौत नहीं हुई लेकिन बाद की रिपोर्ट्स के अनुसार, परमाणु रिएक्टर चलाने वाला एक जूनियर फ्रांसीसी कर्मचारी और 10 इराक़ी सैनिक इस हमले में मारे गए थे.
उस समय, संयंत्र में कम से कम 25 पाउंड समृद्ध यूरेनियम होने की सूचना थी.

न्यूयॉर्क टाइम्स का कहना था कि इराक़ की न्यूज़ एजेंसी ने हमले की ख़बर तब तक प्रसारित नहीं की जब तक कि इसराइल ने हमले का वीडियो जारी नहीं किया.

अख़बार में अमेरिकी विशेषज्ञों के हवाले से यह भी कहा गया था कि बमबारी में एफ़-4 फैंटम और एफ़-15 फ़ाइटर जेट्स का इस्तेमाल किया गया था. जबकि बीबीसी का कहना था कि इसराइली प्रधानमंत्री बेगिन के आदेश पर, “इसराइल के अनगिनत एफ़-16 और एफ़-15 लड़ाकू जेट विमानों ने बग़दाद से 18 मील दूर ओसीराक़ रिएक्टर को नष्ट कर दिया.”

छह सौ मील दूर लक्ष्य का निशाना

हमले का विश्वसनीय विवरण इसराइल के पत्रकार रोनन बर्गमैन ने साल 2018 में प्रकशित अपनी किताब ‘राइज एंड फ़र्स्ट किल’ में किया है जिसे इसराइली खुफ़िया एजेंसियों के पूर्व सदस्यों के सहयोग से लिखा गया है.
रोनन एक लोकप्रिय इसराइली अख़बार से ताल्लुक़ रखते हैं.

अमेरिकी पत्रकार क्लेयर ने मिशन में शामिल इसराइली वायुसेना के पायलटों के इंटरव्यू और अन्य दस्तावेजों के हवाले से “रेड इन द सन” नाम से एक पुस्तक प्रकाशित की थी.

हालांकि विश्लेषक और समीक्षक रोनन बर्गमैन की रिसर्च को अधिक स्वतंत्र, संतुलित और विश्वसनीय मानते हैं.

रोनन की किताब में इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसियों की गतिविधियों का इतिहास लिखा गया है, जबकि क्लेयर की किताब केवल ओसीराक़ हमले पर केंद्रित है.

रोनन लिखते हैं कि 7 जून को शाम 4 बजे, आठ एफ-16 विमानों ने ओसीराक़ रिएक्टर पर हमला करने के लिए इसराइल के क़ब्जे वाले सिनाई रेगिस्तान में एटीजन हवाई अड्डे से उड़ान भरी.

हमलावर विमानों की रक्षा करने और उन्हें छुपाए रखने के लिए छह एफ-15 विमानों ने उनका साथ दिया.

लड़ाकू विमानों के दल को उड़ान भरने के बाद, अकाबा की खाड़ी, फिर जॉर्डन के दक्षिण और सऊदी अरब के उत्तरी हवाई हिस्से से होते हुए, इराक़ के दक्षिण-पश्चिमी हवाई क्षेत्र में दाखिल होना था और फिर बग़दाद के दक्षिण में स्थित ओसीराक़ संयंत्र पर शक्तिशाली बम गिरा कर उसे तबाह करना था.

ऑपरेशन ओपेरा में कोई अप्रिय घटना होने पर तत्काल मदद के लिए कई विमानों को तैयार रखा गया था. जिनमें से कुछ हवा में चक्कर लगा रहे थे और कुछ जमीन पर तैयार खड़े थे. इनमें हवा में ईंधन भरने और एयरबोर्न कमांड एंड कंट्रोल के लिए बोइंग इंटेलिजेंस मुहैया करने के लिए विमान भी शामिल थे.
(हालांकि, इस मिशन के एक पायलट ने बाद में कहा कि ये तकनीक उस समय इस्तेमाल नहीं होती थी)
उड़ान स्थल से लक्ष्य तक का रास्ता छह सौ मील लंबा था.

राडारों से बचने के लिए पायलटों ने ज़मीन से 300 फ़ीट से भी नीचे उड़ान भरी. इसराइली विमान शाम साढ़े पांच बजे इराक़ में लक्ष्य तक पहुंच गए.

जैसे ही वे लक्ष्य के क़रीब पहुंचे, आठ एफ़-16 विमान एक हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर पहुंचे. लक्ष्य के अनुसार, अपनी पोज़िशन बदली और अपने बमों को 35 डिग्री के कोण पर नीचे गिराना शुरू कर दिया. एक के बाद एक हर एफ़-16 विमान ने रिएक्टर के ठोस कंक्रीट के गुंबद पर एक-एक टन वज़न के दो बम गिराए.

पहले दो बम निशाने पर नहीं गिरे थे.
इस तरह कुल 16 बम गिराए गए, जिनमें से दो नहीं फटे.

क्या ओसीराक़ पर यह पहला हमला था?

यह दुनिया में किसी परमाणु रिएक्टर पर पहला हमला था और किसी परमाणु केंद्र या इंस्टालेशन पर तीसरा हमला था. राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने उस समय घोषणा की थी कि परमाणु रिएक्टर ईरान के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि इसराइल के ख़िलाफ़ है.
यह किसी भी परमाणु रिएक्टर को नष्ट करने के लिए किये गए हमले का पहला उदाहरण था.

हालांकि, ईरान पर इराक़ के हमले के बाद शुरू हुए युद्ध के तुरंत बाद, 30 सितंबर 1980 को दो ईरानी एफ़-4 फैंटम विमानों ने ओसीराक़ के परमाणु रिएक्टर पर बम गिराए थे, लेकिन इससे कोई ख़ास नुकसान नहीं हुआ था.

मिशन कामयाब

अचानक हुए इस हमले से इराक़ी घबरा गए थे. उनकी तरफ़ से हमलावर विमानों पर एक भी मिसाइल नहीं दाग़ी गई थी.

आज भी, इसराइल के विश्लेषक हैरान होते हैं कि उनकी उम्मीद के विपरीत इसराइल के विमान वापसी में भी न तो एंटी-एयरक्राफ़्ट फ़ायर का निशाना बने और न उन पर सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें दाग़ी गईं.
सभी विमान सुरक्षित इसराइल वापस पहुंच गए.

इसराइल के प्रधानमंत्री मनाखम बेगिन ने हमले के बाद अपने भाषण में कहा कि साढ़े सत्ताइस करोड़ डॉलर का यह परमाणु इंस्टालेशन पूरा होने से कुछ ही माह दूर था.
हमले के तुरंत बाद, पहले तो इराक़ ने इसके लिए ईरान को ज़िम्मेदार बताया लेकिन जब पूरी दुनिया को सच्चाई का पता चल गयी तो उसे स्वीकार करना पड़ा कि हमला इसराइली विमानों ने किया था.

परमाणु रिएक्टर का नुकसान

फ्रांस के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमले के समय रिएक्टर के अंदर कोई परमाणु ईंधन नहीं था. हमलों के बाद जारी एक फ्रांसीसी प्रेस रिलीज़ में कहा गया था कि रिएक्टर जो परमाणु हथियारों के लिए उपयुक्त सबसे समृद्ध यूरेनियम ईंधन का इस्तेमाल करता है शायद उसे नुकसान पहुंचा है.

फ्रांसीसी मंत्रालय के प्रेस नोट में कहा गया था कि उसी परिसर में फ्रांस की तरफ से उपलब्ध कराये गए छोटे रिएक्टर सहित सोवियत निर्मित रिएक्टर भी नुकसान से बच गए (हालांकि दोनों रिएक्टर असल में तबाह हो गए थे).

इसराइल की वैश्विक स्तर पर निंदा

जॉर्डन, सऊदी अरब, रूस और चीन समेत सभी ने इस हमले की निंदा की थी.
फ्रांस ने भी इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. इस वजह से इसराइल और फ्रांस के संबंध कुछ समय तक तनावपूर्ण भी रहे.
ईरान, जिसके ख़िलाफ़ पिछले साल इराक़ ने हमला करके युद्ध छेड़ा, उसने भी इसराइल की निंदा की.

अमेरिका की प्रतिक्रिया

तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की सरकार ने हमले की आलोचना तो की थी लेकिन उनके शब्द वास्तव में नपे-तुले थे.

बाद में डी-क्लासीफ़ाइ होने वाले अमेरिकी ख़ुफ़िया दस्तावेजों से सामने आया कि हमले का इल्म पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर के समय से ही था.

रक्षा विभाग के पूर्व अधिकारी, डोनाल्ड बॉर्डरो ने ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑन वर्ल्ड पीस’ पत्रिका के जून 1993 के अंक में लिखा था, कि ओसीराक़ रिएक्टर पर बमबारी ने दो ख़तरनाक मिसालें क़ायम कीं. एक तो परमाणु रिएक्टर को जानबूझकर तबाह किया गया और दूसरा यह पहली बार था कि एक देश ने दूसरे देश के परमाणु इंस्टालेशन पर हमला किया था.

वो यह भी स्वीकार करते हैं, कि चाहे इस हमले से क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में दुनिया को कितना भी फ़ायदा हुआ हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत यह एक ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई थी.

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने इसराइल को फटकार लगाई लेकिन उसके ख़िलाफ़ किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की गई. आईएईए ने इसराइल से उसके परमाणु संयंत्रों की जांच की मांग की जिसे इसराइल ने अनदेखा कर दिया.

संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली ने इसराइल पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया.

पहली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’

क्लेयर ने ‘रेड ऑन द सन’ में लिखा है, “यह एक ऐसा मिशन था जिसके बारे में इससे पहले कभी नहीं सोचा गया था. जिसने सैन्य अभियानों के इतिहास में और आगे आने वाले समय के लिए मजबूत और अमिट छाप छोड़ी.”

क्लेयर पहले ऐसे पत्रकार हैं, जिन्हें इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इस हमले में शामिल होने वाले अधिकारियों से बात करने की अनुमति दी थी.
2005 में प्रकाशित उनकी पुस्तक में इसराइली वायुसेना की बहुत तारीफ़ की गई है.

मिशन में शामिल पायलट, जो बाद में इसराइल की सैन्य इंटेलिजेंस के प्रमुख बने, मेजर जनरल (रेस) अमोस यादलिन ने साल 2019 को टाइम्स ऑफ़ इसराइल को दिये इंटरव्यू में बताया था, कि उस समय वहां हवा में न एयर रिफ्यूलिंग थी, न कोई जीपीएस था, ऐसी कोई भी तकनीक नहीं थी.

उन्होंने कहा”…. एक छोटी सी ग़लती या ग़लतफहमी का मतलब यह हो सकता था कि हमारी वापसी मुश्किल हो जायेगी.”

यादलिन ने कहा, “हमने ईंधन बचाने के लिए बेहतरीन रफ़्तार से विमान उड़ाए और दुश्मन के इलाक़े में उड़ते हुए रफ़्तार ज़्यादा नहीं की.”

पायलट डेविड एवरी ने कुछ ऐसा किया जो आमतौर पर नहीं किया जाता है – जब जेट उड़ान के लिए रनवे पर खड़े हो गए, तो उन्होंने विमानों के टैंक ईंधन से पूरे भर दिए.

पहले चार विमानों का जाना तय था लेकिन बाद में आठ को भेजा गया. पायलटों में सात अनुभवी थे, आठवें को मानचित्र में महारत की वजह से शामिल किया गया था.
यह वही इलान रामोन थे जो बाद में इसराइल के पहले अंतरिक्ष यात्री बने.

फ्रांस और इसराइल के बीच तनाव

‘राइज एंड किल फ़र्स्ट’ के लेखक रोनन बर्गमैन लिखते हैं कि फ्रांस और इसराइल का एक लंबा और जटिल इतिहास है, जो 1970 के दशक में बहुत तनावपूर्ण हो चुका था.

1960 के दशक में फ्रांस के राष्ट्रपति डी गॉल के यहूदी समुदाय से मुंह मोड़ने के बाद से ये संबंध तनावपूर्ण हो गए थे.

इराक़ी परमाणु कार्यक्रम से इसराइल को ख़तरा इसलिए कोई बहुत चिंता का विषय नहीं था.
इसी पृष्ठभूमि में, फ्रांस के राष्ट्रपति वैलरी गैसकार्ड डी ऑस्टिसटिंग और उनके प्रधानमंत्री याक शिराक ने 1970 के दशक के पूर्वार्द्ध में इराक़ के साथ कई सौदे किए.

किताब के अनुसार, उनमें सबसे महत्वपूर्ण दो परमाणु रिएक्टरों की बिक्री थी. एक बहुत छोटा सौ किलोवाट का रिएक्टर, जिसे ‘आइसिस क्लास कहा जाता था, और एक बड़ा चालीस मेगावाट का ओसिरिस रिएक्टर, जिसकी क्षमता सत्तर मेगावाट तक बढ़ाई जा सकती थी.
इराक़ ने रिएक्टर के नाम को अपने देश के नाम के साथ जोड़ कर, यानी ओसिरिस और इराक़ को मिलकर ‘ओसीराक़’ रख दिया था.

इसराइल का मानना था कि हालांकि इराक़ रिएक्टर का उपयोग रिसर्च उद्देश्यों के लिए करने की बात कह रहा है लेकिन फ्रांस जानता था कि इस साइज़ के एक रिएक्टर का उपयोग परमाणु हथियार हासिल करने के लिए किया जा सकता है.

जब सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में इराक़ की बाथ पार्टी, अरब दुनिया का नेतृत्व संभालने की तैयारी कर रही थी, उस समय इसराइल में ज़ायोनिस्टों की चरमपंथी पार्टी ‘अरगम’ के पूर्व सदस्य और बाद में दक्षिणपंथी विचारधारा की चरमपंथी पार्टी ‘लोकूद’ के संस्थापक मनाखम बेगिन, इसराइल के प्रधानमंत्री चुने जा चुके थे.

इज़राइल का पहला हमला

परमाणु कार्यक्रम को रोकने के इरादे से सबसे पहले इसराइल ख़ुफ़िया एजेंटों ने 6 अप्रैल, 1979 को फ्रांस के भूमध्यसागर की बंदरगाह टूलॉन पर मौजूद इराक़ के एक शिपमेंट पर बमबारी की जिसमें ओसीराक़ के लिए माल लदा था. इससे परियोजना में दो साल की देरी हुई.

इसराइल के विश्लेषण के अनुसार, फ्रांस अपना परमाणु संयंत्र इराक़ के एक ऐसे राष्ट्रपति को बेच रहा था, जो ख़ुद को नबू ख़ुदनसर मानता था.

नबू ख़ुदनसर ईसा पूर्व इराक़ में बेबीलोन का वह सम्राट था, जिसने यरूशलम पर हमला करके, यहूदियों के शासन को समाप्त किया था और फिर उन्हें वहां से निष्कासित कर दिया था.

कुर्दों के साथ इसराइल का सहयोग

राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को कमज़ोर करने के लिए इसराइल ने 1960 के दशक में विद्रोही कुर्दों को सहायता देनी शुरू कर दी थी.

इसराइल का मानना था कि सद्दाम हुसैन ने साल 1973 से ही इराक़ को परमाणु शक्ति बनाने की योजना बनाना शुरू कर दी थी.

सद्दाम हुसैन ने सितंबर 1975 में फ्रांस से परमाणु ऊर्जा संयंत्र खरीदने की योजना बनाई, जोकि किसी भी अरब देश की तरफ से परमाणु रिएक्टर हासिल करने का पहला प्रयास था. हालांकि फ्रांस इस सौदे को परमाणु बम बनाने का समझौता नहीं बताता था.

सद्दाम हुसैन ने इस परमाणु संयंत्र को हासिल करने के लिए 2 अरब डॉलर की एक अच्छी खासी रक़म दी और साथ ही फ्रांस को बाज़ार दर से कम मूल्यों पर तेल बेचने का भी समझौता किया.

इराक़ के वैज्ञानिकों की हत्या

इसराइल ने ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद, जॉर्डन और विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर एक विशेष टीम बनाई जिसे ‘नया दौर’ कहा गया.

इसराइल ने जासूसों के ज़रिये इराक़ परमाणु कार्यक्रम में काम करने वाले लोगों से ऐसी सांठ गांठ की कि उसे वहां होने वाली हर गतिविधि की पूरी जानकारी रहने लगी.
कई इराक़ी वैज्ञानिकों की हत्या हुई लेकिन परमाणु परियोजना का काम बंद नहीं हुआ.

रोनेन के अनुसार मोसाद के तत्कालीन निदेशक, यित्ज़िक होफ़ी, को अंदाज़ा था कि वैज्ञानिकों को मारने और जासूसी करने से ज़्यादा फ़ायदा नहीं हो सकता.
“यित्जिक होफी ने इसराइल के प्रधानमंत्री को अक्टूबर 1980 में कहा कि मैं हार मानता हूं, हम इसे रोकने में कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे. अब, अगर कोई रास्ता बचा है, तो वह हवाई बमबारी है.”
लेकिन ये सुनिश्चित करना था कि हमले में संयंत्र पूरी तरह तबाह हो जाए.

ईरान के लिए एफ-16 विमान इसराइल पहुंचे

साल 1979 में ईरान में, अयातुल्लाह ख़ामनेई के नेतृत्व में, इस्लामी क्रांति ने अमेरिका के एक प्रमुख सहयोगी ईरान के शाह को पद से हटा दिया.

अमेरिका ने ईरान को दिए जाने वाले विमानों का सौदा अपनी तरफ से रद्द कर दिया और 76 अत्याधुनिक एफ़-16 लड़ाकू जेट इसराइल को देने की पेशकश की. इसराइल ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया.

सद्दाम हुसैन की प्रतिक्रिया

हमले के बाद सद्दाम ने इराक़ की बाथ पार्टी के नेतृत्व से अपने संबोधन में, अपने नुकसान का ज़िक्र अफ़सोस के साथ किया था.

बमबारी का जिक्र करते हुए, उन्होंने आह भरी और स्वीकार किया, “यह दर्दनाक है, क्योंकि यह एक ऐसा मीठा फल था जिसकी तैयारी के लिए हमने बहुत मेहनत की थी. इंक़लाब के इस फल के लिए हमने राजनीतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से लंबे समय तक बहुत कोशिशें की थीं.”

लेकिन ओसीराक़ रिएक्टर पर बमबारी के बाद सद्दाम की प्रतिक्रिया इसराइली ख़ुफ़िया एजेंसियों की उम्मीद के बिलकुल विपरीत थी. इराक़ के एक परमाणु वैज्ञानिक डॉक्टर हमजा ने बाद में एक अमेरिकी रेडियो को बताया था, “दबाव में आने के बाद, सद्दाम अधिक आक्रामक और अधिक दृढ़ हो जाते थे. इसलिए 40 करोड़ डॉलर की परियोजना 10 बिलियन डॉलर की परियोजना बन गई और इसमें 400 वैज्ञानिकों की संख्या बढ़ कर 700 हो गई.”

क्या ओसीराक़ में परमाणु बम बनाया जा रहा था?

इसका जवाब अभी नहीं मिला है. जॉर्ज डब्ल्यू बुश के समय में विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी बेनेट रेम्बर्ग ने दावा किया था कि सच्चाई कुछ और थी.

अमेरिका की रिसर्च संस्थान ‘आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन’ के पिछले साल के एक अंक में लिए गए एक शोधपत्र में, बेनेट रेम्बर्ग लिखते हैं कि अतीत की स्थिति का विश्लेषण करने के साथ-साथ, साल 2003 में इराक़ पर हमले के बाद, अमेरिका को इराक़ के जो ख़ुफ़िया दस्तावेज हाथ लगे हैं. उनके अनुसार, सद्दाम हुसैन के परमाणु बम की कहानी कुछ और थी.

इन दस्तावेजों से पता चला कि “ओसीराक़ रिएक्टर में परमाणु हथियार विकसित करने की कोई बुनियाद ही नहीं थी. लेकिन इसने इस तरह का भ्रम पैदा कर इराक़ और इसराइल दोनों को गुमराह किया.”

यह भ्रम (इसराइल और इराक़ के) नेताओं के व्यक्तित्व और ओसीराक़ में बम बनाने की ग़लत धारणा के कारण बना रहा.

क्या ओसीराक़ जैसा हमला दोबारा हो सकता है?

फ़ॉरेन पॉलिसी मैगज़ीन के 7 अप्रैल, 2021 के अंक में प्रकाशित अपने लेख में, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका फ़ोरम के कार्यकारी निदेशक जे मेंस ने लिखा है, कि इसराइल में एक बार फिर ऐसे राजनीतिक हालत पैदा हो चुके हैं, जिनकी वजह से एक और ओसीराक़ जैसी घटना घट सकती है.
उन्होंने ये विश्लेषण इसराइल में पैदा होने वाले ताज़े राजनीतिक हालात से पहले लिखा था.

उनके अनुसार जून 1981 में इराक़ परमाणु हथियार के ख़तरे से ज़्यादा उस समय इसराइल की आंतरिक राजनीतिक स्थिति कुछ ऐसी थी जिसकी वजब से बेगिन ने हमले का आदेश दिया था.

उनके अनुसार, 1981 में बेगिन की गठबंधन सरकार एक चरमपंथी यहूदी पार्टी, हिरादी के समर्थन से बनी हुई थी, और आने वाले चुनाव में उसके जीतने की संभावनाओं पर सवाल उठाये जा रहे थे.

-BBC