आगरा के पानी कि समस्या पर जनप्रतिनिधियों को लीक से हटकर करना होगा कार्य

Press Release

आगरा: गंगा को भागीरथ अपने पूर्वजों को तर्पण करने या उनकी आत्माओं को शांत करने के लिए पृथ्वी पर लाये थे. आगरा के स्वयंभू भागीरथ पूरे आगरा में गंगा का पानी तो नहीं ला पाए पर अपने समर्थकों को तो तृप्त कर रहे है. वैसे कई भागीरथ हैं जो मानते हैं उन्होंने भी शिव की अर्चना कर आगरा की प्यास को तृप्त करने में योगदान दिया है. देश के प्रधान सेवक तो आगरा को गंगा जल मिलने पर, आगरा में टूरिज्म ट्रेड बढ़ने से भी जोड़ चुके हैं.

जल ही जीवन है, इस में कोई दो राय नहीं है, हमारे शरीर में लगभग 60 प्रतिशत जल होता है- मस्तिष्क में 85 प्रतिशत जल है, रक्त में 79 प्रतिशत जल है तथा फेफड़ों में लगभग 80 प्रतिशत जल होता है। आगरा की यमुना जो की सदियों से आगरा निवासियों की प्यास बुझाती रही है, अब शायद यमुना जी थक चुकी हैं. तभी भागीरथ की जरुरत पड़ी. गंगा जल प्रोजेक्ट कितना लेट है और कितनी बार प्रोजेक्ट कास्ट बदली गयी यह जगजाहिर है. पर गंगा कितने समय तक आगरा और कई शहरों की प्यास बुझाएगी अब चिंतन इस बात का होना चाहिए.

रिवर कनेक्ट ग्रुप इस को जानता है के यमुना मैया जो की सदियों से आगरा और किनारे पर बसे अन्य शहरों की प्यास बुझाता रहा है. इस बात का प्रमाण पौराणिक रुनकता में ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका का निवास करना और ऋषि श्रृंगी और राम की बड़ी बहिन शांता का निवास करना है. तभी कई सालों से यमुना मैया की आरती कर शासन और प्रशासन का ध्यान आकर्षित कर कहने की कोशिश कर रहा है “राम तेरी गंगा मैली हो गयी ” की तरह “कृष्ण तेरी यमुना मैली के साथ सूख भी गयी”.

चुनाव है राम भक्त तो सब हैं पर कृष्ण की यमुना के शुद्धिकरण और अविरल बहने वाली मैया का मुद्दा किसी उम्मीदवार ने नहीं उठाया है. ये बड़े शर्म की बात है, आगरा की अपनी यमुना मैया का किसी को ख्याल नहीं पर भागीरथी बनने का सभी को शौक है, चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी का हो.

हम कह सकते है, आगरा में अथाह पानी है पर फिर भी शहर प्यासा है. खेरागढ़ के अभी के विधायक (जो की जल्दी भूतपूर्व होने वाले हैं) का पुरखों का जगनेर में स्थापित बांध है. ये ही नहीं अंग्रेजों के ज़माने कि ३२ बांधनियाँ जो आज भी बरसात का अथा पानी एकत्रित करती हैं यह एकत्रित पानी बरसात शुरू होने लेकर अक्टूबर नवम्बर तक देखा जा सकता है. फिर यह पानी खारी नदी से होता हुआ, यमुना में इटावा के पास मिलता मिलता है. विडंबना है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान में बड़े बड़े जलाशय बना कर पानी रोका गया है. आगरा के जनप्रतिनिधि इस तरह सोचने का कभी प्रयास नहीं करते. ढ़ाक के तीन पात – सिर्फ और सिर्फ बड़ी बड़ी बातें.

जोधपुर झाल, कीठम की लोअर लेक भी आगरा की जरूरतों को पूर्ण करने में सक्षम है. जहाँ एक ओर मुंबई का पानी पाइप से विभिन्न बरसात के पानी के जलाशय से आता है, वहीं आगरा जिले में बरसात का पानी बह जाता है.

इस बार जनप्रतिनिधि सिर्फ भागीरथ बनने कि दौड़, छोड़ मौजूद पानी (जो की बह जाता है) को रुकवा कर, यमुना को स्व्च्छता से पूज कर आगरा के निवासियों को देवतुल्य मानकर सेवा करे/या सेवा करने का प्रण ले कर आगरा की जनता को पेयजल की समस्या का निवारण करवा कर आगरा का वाटरमैन बने. अगर बन नहीं सकते तो जानकारों से मिलकर जनता की प्यास को तृप्त करवाने का प्रयास करें.

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