‘प्राकृतिक पूंजी’ के आधार पर होगा अब देश की समृद्धता का आंकलन

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संयुक्‍त राष्‍ट्र ने पर्यावरण के बचाव और संरक्षण के लिए अहम कदम उठाया है। अब किसी देश की आर्थिक समृद्धता का आंकलन करते सयम ‘प्राकृतिक पूंजी’ को भी गिना जाएगा। यूएन ने एक नया फ्रेमवर्क अपनाया है जिसमें किसी देश की आर्थिक समृद्धि और मानव कल्याण की गणना में ‘प्रकृति के योगदान’ को भी शामिल किया जाएगा। यूएन के सांख्यिकी आयोग ने यह फ्रेमवर्क अपनाया है। यानी अब देशों की संपत्ति में उनकी ‘प्राकृतिक पूंजी’ जैसे जंगल, झीलें और अन्‍य ईको सिस्‍टम्‍स भी गिने जाएंगे।

अर्थशास्त्रियों का एक धड़ा लंबे समय से यह तर्क दे रहा था कि पर्यावरण पूंजी को भी श्रम और पूंजी की तरह उत्‍पादन का एक फैक्‍टर माना जाना चाहिए। उनका कहना था कि अगर पर्यावरणीय दुर्दशा को नापा जाए तो किसी देश की ‘असली प्रगति’ सामने आ जाएगी।

दुनियाभर के देशों को करना पड़ेगा यह काम

भारत, चीन, यूके, जर्मनी और फ्रांस समेत कई यूरोपीय देश पहले ही सिस्‍टम ऑफ एन्‍वायर्नमेंटल इकनॉमिक अकाउंटिंग (SEEA) को लागू करने की दिशा में बढ़ चुके हैं। यूएन के नए फ्रेमवर्क से अमेरिका समेत बाकी देशों को भी अपने प्राकृतिक ईकोसिस्‍टम्‍स की कीमत पता लगानी होगी और उन्‍हें लेखांकन की प्रक्रियाओं में शामिल करना होगा। नए फ्रेमवर्क का नाम System of Environmental Economic Accounting-Ecosystem Accounting (SEEA-EEA) रखा गया है। यह आर्थिक रिपोर्टिंग में जीडीपी से परे होगा।

नए फ्रेमवर्क के अनुसार किसी देश की संपत्ति में प्रकृति पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता या उस पर इसके प्रभाव को भी शामिल किया जाएगा। जैसे पानी की गुणवत्‍ता में कमी या जंगली इलाकों के कम होने पर संपत्ति कम हो जाएगी। इसी तरह, अगर कोई प्राकृतिक ईकोसिस्‍टम अपने पुराने स्‍वरूप में लाया जाता है या संरक्षण होता है तो उसे ‘क्रेडिट’ की तरह दिखाया जा सकता है, जिससे जीडीपी को नुकसान में कमी आएगी।

बैलेंस शीट पर प्रकृति को कैसे लाएंगे?

यूएन के नए फ्रेमवर्क में दो चीजों का ध्‍यान रखा जाएगा। पहला तो उस प्राकृतिक संपदा का ‘स्‍टॉक’ यानी वो जंगल, झील या अन्‍य कितने बड़े इलाके में है और दूसरा ‘फ्लो’ यानी उससे मिलने वाले फायदे जैसे पानी का शुद्धीकरण और कार्बन में कमी। अगर जंगल के उदाहरण से समझें तो उसका आर्थिक मूल्‍यांकन आमतौर पर पेड़ कटने के बाद बिकने वाले टिम्‍बर से लगाया जाता है। नए फ्रेमवर्क में जंगल की वैल्‍यू में यह भी जोड़ा जाएगा कि वह कार्बन खींचने और बाढ़ रोकने में कितना प्रभावी है।

भारत कर रहा है प्राकृतिक संपदाओं का मूल्‍यांकन

भारत ने प्रकृति के मूल्‍य को आंकने की दिशा में तब कदम बढ़ाए थे जब उसने अपने टाइगर रिजर्व्‍स का आर्थिक मूल्यांकन किया। यह 2013-19 के बीच दो चरणों में किया गया। स्‍टडी के अनुसार चुनिंदा 10 टाइगर रिजर्व्‍स की मॉनेटरी वैल्‍यू हर साल 5,094 करोड़ से लेकर 16,202 करोड़ रुपये बैठती है। हाल में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी एक इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर प्रोजेक्‍ट के दौरान काटे गए पेड़ों की वैल्‍यू पता करने को कहा था।

-एजेंसियां