मथुरा। सरकारी गाड़ी लेकर कुत्ते के साथ घुटन्ने में घूम रहे अधिकारी ने एक पत्रकार को उसका अपना काम करने पर न केवल सरेआम बेइज्जत किया बल्कि डराया-धमकाया और किसी अपराधी की तरह व्यवहार किया। उससे उसका पहचान पत्र मांगते हुए उसके जैसे 36 पत्रकार घूमने की बात कही, मगर अफसोस कि वहां मौजूद तमाम लोगों (जिनमें पत्रकार भी शामिल थे) में से किसी ने उस अधिकारी का पहचान पत्र मांगने की जहमत तक नहीं उठाई।
निजी कुत्ते को सरकारी गाड़ी में घुमाना जायज ठहराने वाला वह अधिकारी मौके से तभी रवाना हुआ जब उसने पत्रकार के पहचान पत्र का अपने मोबाइल कैमरे से फोटो खींच लिया।
इसके बाद पत्रकारों के कुछ नेता सक्रिय हुए और उन्होंने उस अधिकारी के खिलाफ नारे भी लगाए, जिसके नतीजे में डीएम साहब ने 3 दिन के अंदर जांच कराकर कार्रवाई करने का मौखिक आश्वासन दे दिया लेकिन उसका ‘हश्र’ सबके सामने है। वो भी तब जबकि सुना है इस बीच पत्रकार के पहचान पत्र की पुष्टि भी जिला सूचना अधिकारी से कर ली गई।
ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि कौन किसे मूर्ख बना रहा है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि पत्रकारों के नेता सामर्थ्यवान हैं। वो यदि चाहें तो अधिकारी को उसके कृत्य की सजा दिला सकते हैं क्योंकि उनकी पहुंच काफी ऊपर तक है। उनके घर और कार्यालयों की दीवारों पर टंगी फोटो का कोलाज इसकी तस्दीक करता है।
पत्रकारों के नेता चाहें तो लखनऊ तक इसकी गूंज सुनाई दे सकती है क्योंकि अधिकारी के दुस्साहस की हर हरकत कैमरों में कैद है। गवाह भी हैं और सबूत भी, लेकिन पता नहीं क्यों वो इच्छाशक्ति नहीं है जिसकी दरकार है।
हालांकि यह कोई पहली घटना नहीं है। समय-समय पर अधिकारी अपने रुतबे से पत्रकारों का भरपूर अपमान करते रहे हैं, किंतु इसे आखिरी भी न समझा जाए। समय रहते चेत जाइए अन्यथा ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी।
आमजन के खिलाफ होने वाले अन्याय को विभिन्न माध्यमों से प्रकाशित व प्रसारित करने वाले ही यदि अपने खिलाफ हो रहे अन्याय पर मौन साधकर बैठे रहेंगे तो तय समझिए कि इससे भी बुरे दिन देखने पड़ेंगे।
पत्रकार एकता जिंदाबाद का नारा लगाने भर से कुछ नहीं होगा, इसका अहसास भी अधिकारियों को कराना होगा।
-माया
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