महज 13 किमी में फैले मलिहाबाद को यूपी का मैंगोलैंड कहा जाता है। इस जगह को ये दर्जा यूं ही नहीं मिला। ये घर है आम की 700 किस्मों का। 100 से ज्यादा बगीचों और 2 हजार से ज्यादा उन लोगों का, जिनकी पीढ़ियां 100 सालों से आम उगा रही हैं। मलिहाबादी आम इतना कीमती है कि सरकार ने इस पर जियो टैगिंग की है ताकि इसके स्वाद और इसकी पहचान की कोई कॉपी न कर पाए।
लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर हरदोई हाईवे पर पहुंचते ही आपको 2 चीजें महसूस होंगी। पहली: दूर-दूर तक फैली आम की महक। दूसरी: ऐसा लगेगा कि मानो आप हाईवे पर नहीं बल्कि आम के बगीचों के बीच चल रहे हैं। पूरे यूपी में इस जगह से हर साल 500 टन से ज्यादा आम एक्सपोर्ट होता है। दुबई, जापान, अमेरिका से लेकर न्यूजीलैंड तक मलिहाबादी दशहरी, जौहरी सफेदा और लखनउवा चौसा आम की दीवानगी है।
इस साल आम की यहां पैदावार कैसी है? मार्केट कैसा है? ये सीजन यहां के किसानों और एक्सपोर्टर्स के लिए कैसा रहने वाला है? यहां के नायाब आम से जुड़ी कौन- कौन सी रोचक कहानियां- किस्से हैं। सब कुछ जानने के लिए मलिहाबाद जाना होगा।
पैदावार अच्छी न हो तो शादियां टाल दी जाती हैं…
मलिहाबाद के रहमानखेड़ा में सड़क किनारे दूर-दूर तक फैले बगीचे आम से लदे हुए हैं। यहां हमारी मुलाकात बाग की रखवाली कर रहे किसान धर्मेंद्र सिंह से हुई। आम की पैदावार के बारे में पूछने पर धर्मेंद्र मुस्कराते हुए कहते हैं, “भइया ये मलिहाबाद है। यहां आम की वजह से ही घर चलते हैं। बच्चों की पढ़ाई होती है। बीते साल हमारे भाई की शादी इसलिए टाल दी गई क्योंकि आम की पैदावार अच्छी नहीं हुई थी। इस बार आम भी डबल है और रेट भी। मंडी भी तय समय से पहले खुल गई है। लग रहा है इस साल सारे रुके काम पूरे हो जाएंगे।”
धर्मेंद्र के बगल में खड़े संतोष बताते हैं, “पिछले 2 साल की तुलना में इस बार आम अच्छा हुआ है। अगर 27, 28 मई को आंधी न आती तो और भी अच्छी फसल मिलती। तूफान के कारण पेड़ों पर लदे 30% आम गिर गए। हालांकि, इससे किसानों को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ क्योंकि आढ़तियों ने फसल की पहली खेप को हाथों-हाथ खरीदा है। जो दशहरी आम पिछले साल 25 रुपए किलो बिका था, उसका रेट इस साल 40 से 50 रुपए के बीच है। उम्मीद है 15 जून के बाद मंडी भाव और अच्छा हो जाएगा।”
साल 1919 में यहां 1300 किस्मों के आम पाए जाते थे लेकिन समय के साथ आबादी बढ़ी और जमीनें कम होती गईं। इसका असर आम पर भी पड़ा। अब मलिहाबाद में बमुश्किल 600 से 700 वैरायटी के आम ही बचे हैं। यहां के मलिहाबादी दशहरी और चौसा आम की सबसे ज्यादा डिमांड है।
सिर्फ उगाया ही नहीं, खत्म होने से बचाया भी जा रहा
समय के साथ-साथ मैंगोलैंड में आम की कुछ किस्में खत्म होने की कगार पर हैं। इनमें 2 किलो वजन वाला ‘हाथी झूल’, 25 से 40 दिन में पकने वाला ‘सुर्ख बर्मा’ और चूसने वाला लंबा आम ‘गिलास’ शामिल है। ऐसी ही मलिहाबादी आम की 300 प्रजातियों को खत्म होने से बचाने के लिए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (CISH) आगे आया है।
CISH के डायरेक्टर डॉ. टी दामोदरण कहते हैं, “मलिहाबादी आम की प्रजातियों को बचाने के लिए CISH ने सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ मैंगो डायवर्सिटी नाम से बागवानों का संगठन बनाया है। इसमें किसानों को आम की फसल की शुरुआती स्टेज से लेकर मार्केटिंग तक मदद दी जाती है। हमारी कोशिश है कि हम ज्यादा से ज्यादा किस्मों को संरक्षित करें और किसानों को बेहतर दाम दिलवा पाएं।”
CISH ने खुद मलिहाबादी आम की 2 वैरायटी (अंबिका-2000 और अरुणिका-2008) विकसित हैं। आम की इन किस्मों को यूपी के अलग-अलग हिस्सों में उगाया जा रहा है। संस्थान मलिहाबाद के किसानों को इन किस्मों के बीज सस्ते दर पर मुहैया करवाता है।
7वीं फेल कलीमुल्लाह को आम ने दिलवाया पद्मश्री
83 साल के हाजी कलीमुल्लाह खान ने मलिहाबादी आम की किस्मों को बचाने के लिए 5 एकड़ में ‘अब्दुल्ला नर्सरी’ बनाई है। इसमें एक ऐसा आम का पेड़ है, जिसमें एक साथ 300 से ज्यादा किस्मों के आम निकलते हैं। हर किस्म का टेस्ट अलग होता है। पत्ते भी अलग हैं। इसके लिए उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें लोग मैंगो मैन के नाम से भी जानते हैं।
Compiled: up18 News