“लीकेज” योगी सरकार का लाठी वॉर, रोजगार अधिकार मांगना हुआ दुश्वार !

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जब लोकतंत्र पर लट्ठतंत्र हावी होने लगे तो समझिए हम तानाशाही राज में जी रहे हैं

सोनिका मौर्या
सोनिका मौर्या

-सोनिका मौर्या-

वाराणसी। हुकूमत से हक की आवाज़ लगाईये, तार-तार लोकतंत्र में लाठी खाइये। कहिये हुक्मरान से क्या यही न्याय है..?बदले में जुबान उनसे कटवाईये। यह चंद लाइनें उस दर्द से लबरेज हैं जो प्रयागराज में लट्ठमारी के शिकार छात्रों के हलक से हवाओं में तैर रही हैं। जो वर्तमान शासक सत्ता से सवाल कर रही हैं की हक़ मांगना क्या अपराध है..?

वैसे कहने को तो हम लोकतंत्र में जी रहे हैं मगर लोकतंत्र में निरंकुशता ‘तंत्र’ की तानाशाही का यह आलम है कि लगता है वर्तमान व्यवस्था राजतंत्र में तब्दील हो चुकी है। इसलिए हालत यह हो गयी है कि रोजगार मांगो…लो लाठी…शिक्षामित्र…लो लाठी…अनुदेशकों पर…लो लाठी…आंगनवाड़ी बोलें …लो लाठी..! कहने का मतलब यह है कि योगी सरकार बनने के बाद हर हक हकूक की आवाज़ बुलंद करने वालों की आवाज़ दबाने के लिये सरकार ने दमन का सहारा लिया। वजह साफ है,या तो योगी सरकार नौजवानों को उनके हक़ की फिक्र नहीं है,या सियासत से बग़ावत करने वालों को अंजाम दिखाना चाहती है। तभी तो सरकार बनने के बाद से ही तमाम लट्ठमार प्रकरण के बाद प्रयागराज में बीते मंगलवार को छात्रों ने नौकरी ना मिलने को लेकर जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। और शासन प्रशासन के ध्यानाकर्षण के तहत रेलवे ट्रैक पर भी डेरा डाला था। बाद में पुलिस ने हॉस्टल लाज रह रहे में छात्रों के ऊपर जमकर लाठीचार्ज हुआ था। बाद में मामले को तूल पकड़ता देख अब कुछ पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया। और सैकड़ों के ऊपर एफआईआर दर्ज की गयी।

प्रयागराज में पुलिस की बर्बरता की कहानी वायरल वीडियो में देखने को मिली जहां पुलिस वाले छात्रों के रहने वाले कमरों के दरवाजे पर उछल उछलकर लात मारते और दरवाजे पर राइफल के बट से प्रहार करते दिखे। जैसे वह छात्र न होकर कोई अपराधी हों।

आख़िर अपने रोज़गार के लिए हक़ की आवाज़ बुलंद करने वाले छात्रों का गुनाह क्या इतना बड़ा था कि योगी सरकार को इतना कठोर होना पड़ा…? यह जानते हुये भी की येन चुनावी मौके पर उनका यह दमनकारी नीति भारी भी पड़ सकती है।

शायद इसलिए योगी सरकार निश्चिंत है कि वह जनता को “समझा” लेगी…कुछ नये मुद्दे को हवा देगी ! मगर योगी सरकार को यह समझना होगा की उनकी सरकार में जितने परीक्षाओं की लीकेज हुई है। उसी की देन है कि बेरोजगारों छात्रों नौजवानों को आंदोलन का सहारा लेना पड़ा वरना, किसे जरूरत है गला फाड़ चिल्लाने की सरकार से गुहार लगाने की।

अगर लोकतंत्र पर लट्ठतंत्र को प्रश्रय देना है तो क्यों न हम इसे तानाशाही राज कहें..? क्योंकि लोकतंत्र में मौन भी मौत के समान है, और तानाशाही व्यवस्था जनता को मौन ही तो देखना चाहती है।

-अचूक संघर्ष-


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