सम्मेद शिखरजी को पर्यटन क्षेत्र से बाहर कराने के लिए जैन समाज ने देशभर में आंदोलन किया। राजस्थान में तो आमरण अनशन पर बैठे दो जैन मुनियों ने अपने प्राण तक त्याग दिए। आखिर क्यों इतना खास है यह तीर्थ स्थल, इसकी क्या महत्ता है, क्यों इस तीर्थस्थल को जैन समाज की आत्मा कहा जाता है?
सबसे पहले जानते हैं सम्मेद शिखरजी में है क्या?
झारखंड की राजधानी रांची से 165KM दूर गिरिडीह जिले के मधुबन में यह पारसनाथ पहाड़ पर स्थित है। यह झारखंड का सबसे ऊंचा पहाड़ है। इसकी ऊंचाई 9.6 किलोमीटर है। पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं।
सम्मेद शिखरजी की यात्रा की शुरुआत पहाड़ की तलहटी में स्थित शिखर जी पॉइंट से होती है। लगभग डेढ़ किमी की चढ़ाई के बाद सबसे पहले कली कुंड मंदिर आता है। यह श्वेतांबर समाज का मंदिर है। यहां 23 भगवानों के अलग-अलग मंदिर बनाए गए हैं। इसमें से 20 तीर्थंकरों के वे मंदिर भी हैं, जो पहाड़ के शिखर पर स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि बुजुर्ग या बीमार, जो सम्मेद शिखरजी की यात्रा पूरी करने में असमर्थ होते हैं वे यहां अपनी वंदना करते हैं।
कली कुंड के बाद सीधी चढ़ाई शुरू होती है। तलहटी से लगभग 8 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद चोपड़ा कुंड मंदिर आता है। यह दिगंबर समाज के लिए पहला पड़ाव है। यहां से 1 KM की चढ़ाई के बाद तीर्थंकरों के टोंक यानी उनके मंदिर आने लगते हैं। पहाड़ी पर लगभग नौ किलोमीटर क्षेत्र में 20 तीर्थंकरों के टोंक हैं। इस यात्रा को वंदना पथ कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि जहां-जहां ये टोंक हैं, वहां तीर्थंकरों ने निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त किया।
इन टोंक की वंदना के लिए श्रद्धालु आते हैं। टोंकों तक जाने के लिए पथरीले और उतार-चढ़ाव वाले रास्ते हैं। हर टोंक अलग-अलग दूरी पर स्थित हैं। सबसे दूर और शिखर पर स्थित है पार्श्व नाथ टोंक। यहां दर्शन के बाद यात्री सीधे नीचे उतर जाते हैं। यह सीधा नौ किलोमीटर का ढलान है। इस तरह कुल 27 किलोमीटर की यह यात्रा 8 से 10 घंटे में पूरी होती है।
पहाड़ी पर जल कुंड मंदिर में सभी तीर्थंकरों की प्रतिमा
पहाड़ी पर 20 टोंक के बीच जल मंदिर बनाया गया है। यहां जैन धर्म के सभी 24 तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं। वंदना करने आने वाले यात्री टोंक से लगभग एक किलोमीटर नीचे उतर कर यहां पूजा-वंदना करते हैं। जल मंदिर में 10 वर्षों से पूजा कर रहे प्रशांत राय के मुताबिक जो यात्री सभी निर्वाण स्थल पर नहीं जा पाते, वे यहां आकर पूजा वंदना करते हैं। यहां पूजा करने के बाद भी उन्हें वही लाभ प्राप्त होता है।
अब 3 पॉइंट में समझिए, क्यों सम्मेद शिखरजी जैन समाज का सर्वोच्च तीर्थ स्थल है
1. जैन समाज के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने यहां से निर्वाण की प्राप्ति की है
सम्मेद शिखरजी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने निर्वाण (मोक्ष) की प्राप्ति की है। सबसे पहले दूसरे तीर्थंकर अजीत नाथ ने यहां निर्वाण की प्राप्ति की। इसके बाद चौथे तीर्थंकर अभिनंदन जी से लेकर 21वें तीर्थंकर नमीनाथ जी ने निर्वाण प्राप्त किया। फिर 23वें तीर्थंकर पारस नाथ यहां से मोक्ष प्राप्त किए हैं। इन 20 तीर्थंकर के अलावा भी जैन समाज के कई महान आत्माओं ने यहां से मोक्ष की प्राप्ति की है इसलिए पारस नाथ को शिरोमणि तीर्थस्थल भी कहा जाता है।
2. हर जैन अपने जीवन में एक बार यहां आकर वंदना करना चाहता है
सम्मेद शिखर के पार्श्वनाथ टोंक में पूजा कराने वाले अशोक कुमार जैन ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि एक बार जो सम्मेद शिखरजी जी की वंदना कर लेता है, उसे नर्क और पशु गति की प्राप्ति नहीं होती है इसलिए हर जैन अपने जीवन में एक बार इसकी वंदना करने का भाव अवश्य रखता है। इसके लिए 27 किमी की वंदना करते हैं। 9 किमी की चढ़ाई चढ़ते हैं। 9 किमी वंदना पथ पर चलते हैं और 9 किमी नीचे उतरते हैं।
3. यहां सहस्त्र सिद्धि की प्राप्ति होती है, कण-कण पूजनीय
23वें तीर्थंकर भगवान पारसनाथ की निर्वाण स्थली होने के कारण इस पर्वत को पारसनाथ हिल के नाम से भी जाना जाता है। सम्मेद शिखरजी में सहज सिद्धि की प्राप्ति भी होती है। इसलिए 20 तीर्थंकर यहीं से आकर मोक्ष की प्राप्ति किए। सम्मेद शिखरजी को सहस्त्र सिद्धि स्थल इसलिए भी कहा जाता है, क्योंकि अन्य स्थानों में जाकर ध्यान लगाना पड़ता है। यहां मुनि स्वयं ध्यान मग्न हो जाते हैं। यहां आकर तीर्थंकरों को मुक्ति मिलती है। इसलिए इसके कण-कण को पूज्य मानते हैं।
वंदना पूरी होने तक पानी की एक बूंद भी नहीं लेते
इस मुश्किल भरी चढ़ाई और यात्रा में जैन समाज के लोग पवित्रता का भी पूरा ख्याल रखते हैं। यात्रा के दौरान वो मुंह में अलग से एक बूंद पानी या खाना तक नहीं खाते हैं। वे खाली पेट इस यात्रा को पूरा करते हैं। कई यात्री ऐसे भी मिले जो अपने साथ एक कपड़ा अलग से लेकर जाते हैं। टोंक के पास पहुंचने के बाद वो पहले कपड़ा बदलते हैं। इसके बाद वंदना करते हैं।
हर साल 2 लाख यात्री आते हैं, 3 दिन तक शिखरजी में रुकते हैं, 50 लाख में बुक करते हैं ट्रेन
मधुवन के शिखरजी में पिछले 40 साल से व्यापार करने वाले सत्येंद्र जैन ने हमें बताया कि पहले यहां सीमित यात्री आते थे। अब देश-दुनिया से यात्री यहां आते हैं। हर साल लगभग 2 लाख यात्री आते हैं। तीन दिन तक यहां रुकते हैं। इस दौरान वे अलग-अलग विधान में शामिल होते हैं। यहां हमारी मुलाकात राहुल सेठी से हुई। उन्होंने बताया कि वे 50 लाख रुपए में ट्रेन बुक कर 1251 लोगों के साथ शिखर जी पहुंचे हैं। वे यहां तीन दिन तक रुकते हैं जब तक कि सभी लोगों की यात्रा पूर न हो जाए।
पहाड़ के नीचे 40 धर्मशालाओं में हैं 40 मंदिर
मधुवन में शिखरजी में पहाड़ की तलहटी से लेकर मधुवन मोड़ तक लगभग 40 धर्मशालाएं हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले यात्री यहां ठहरते हैं। हर धर्मशाला में अलग-अलग मंदिर भी बनाए गए हैं। सम्मेद शिखर की वंदना करने के बाद यात्री यहां अलग से विधान करते हैं। ये विधान एक दिन से लेकर 5 दिन तक का होता है। इसे सभी यात्री अपनी मान्यता के मुताबिक कराते हैं। इसमें मुख्य रूप से शांति विधान, सिद्ध चंद्र विधान, महामंडल विधान आदि शामिल है।
Compiled: up18 News