जानिए: हिमालय में बर्फीले तूफान के बीच बिना वस्‍त्र कैसे रह लेते हैं ये तपस्वी

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यह यौगिक क्रिया संन्‍यासियों के बीच हजारों साल से चली आ रही है। वैसे तो नागा साधु और दूसरे कई संन्‍यासी अपने शरीर पर धूनी की राख लगाकर बहुत हद तक ठंड से बचे रहते हैं लेकिन हिमालय के ये संन्‍यासी इस मामले में इन सबसे अलग हैं।

अनोखी तकनीक की जानकारी सबको नहीं

इन अनोखे संन्‍यासियों और इनकी इस अनोखी यौग‍िक क्रिया की जानकारी आम लोगों को नहीं है। मूलत: केरल के एक सिद्ध योगी श्री एम ने इस यौगिक क्रिया की जानकारी अपनी आत्‍मकथा में दी है। श्री एम को आध्‍यात्‍म और समाजसेवा के क्षेत्र में उनके योगदान के चलते भारत सरकार ने साल 2020 में पद्मभूषण से सम्‍मानित भी किया था।

केवल सूत की लंगोटी पहनते हैं

श्री एम से जब हिमालय में एक तिब्‍बती लामा मिला तो उन्‍होंने उससे भी पूछा कि वह बिना गर्म कपड़ों के इतनी ऊंचाई पर बर्फ के बीच कैसे रह रहे हैं। जवाब में लामा ने कहा, मैं महान योगी मिलरेपा के कर्ग्‍यूपा संप्रदाय का योगी हूं। मिलरेपा का अर्थ है सूत की पट्टी। हम लोग कठिन से कठिन जाडे़ में भी केवल सूत की एक लंगोटी ही पहनते हैं।’

शरीर में पैदा होती है आग जैसी गर्मी

जब पूछा गया कि वह सर्दी से खुद को बचाने के लिए क्‍या करते हैं तो उन्‍होंने कहा, हम लोग प्राणायाम की एक तकनीक ‘थुम्‍मो’ का उपयोग करते हैं। इसमें खास तरह से सांस ली जाती है और जलती हुई आग की कल्‍पना की जाती है। थोड़ी देर के बाद हमें अपनी नाभि या मणिपुर चक्र में गर्मी महसूस होती है। जैसे-जैसे यह क्रिया बढ़ती है गर्मी भी पूरे शरीर में फैलने लगती है।’

गीले कपडे़ तक सूख जाते हैं

श्री एम ने देखा कि वाकई उस योगी को पसीना आ रहा था। योगी ने बताया कि यह गर्मी बाहरी नहीं बल्कि आंतरिक है इसीलिए उसे आग या गर्म कपड़ों जैसे बाहरी कारण की जरूरत नहीं है। उस योगी ने दावा किया कि उनके संप्रदाय के कुछ योगी तो सर्दियों में गीली चादरें अपने शरीर पर लपेटकर मिनटों में उसे सुखा सकते हैं।’ हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में आज भी ऐसे अनेक योगी आश्रमों और मठों में रहते हैं। ये अपनी जरूरतों को कम से कम रखते हैं ताकि अपनी ध्‍यान साधना में बिना किसी व्‍यवधान के लगे रहें।

Compiled: up18 News