नई दिल्ली। जस्टिस उदय उमेश ललित ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ ले ली. उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में शपथ दिलाई.
सुप्रीम कोर्ट के 49वें मुख्य न्यायधीश बने जस्टिस ललित इस पद पर 73 दिनों तक यानी 8 नवंबर 2022 तक रहेंगे.
जस्टिस उदय उमेश ललित भारत के दूसरे ऐसे चीफ़ जस्टिस हैं, जो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए. उनसे पहले मरहूम जस्टिस एसएम सीकरी प्रैक्टिस की दुनिया से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज बने और बाद में चीफ़ जस्टिस के ओहदे तक पहुंचे.
जस्टिस ललित को इस पद पर निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमन्ना की जगह पर नियुक्त किया गया है, जो शनिवार को ही रिटायर हो गए. जस्टिस यूयू ललित 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट जज बने थे.
जस्टिस ललित के बाद जस्टिस वाईवी चंदचूड़ के अगला मुख्य न्यायाधीश बनने की संभावना है. यदि ऐसा हुआ तो वे ठीक दो सालों तक इस पद पर रहेंगे.
याकूब मेनन से लेकर अयोध्या केस तक
साल 2014 में जस्टिस ललित याकूब मेनन की पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई से अलग हो गए थे. मुंबई सीरियल ब्लास्ट केस में मृत्युदंड की सज़ा को बरकरार रखने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ याकून मेनन ने ये पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी.
साल 2015 में मालेगांव ब्लास्ट केस से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई से उन्होंने खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि उन्होंने जज बनने से पहले एक अभियुक्त की पैरवी की थी.
2016 में उन्होंने एक और मामले से ख़ुद को अलग किया था. वो मामला आसाराम बापू पर लगे आरोपों की चल रही जांच में एक अहम गवाह के लापता होने की मांग करने से जुड़ा था.
2016 में ही उन्होंने शिक्षक भर्ती घोटाले के अभियुक्त हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चैटाला की याचिका की सुनवाई से भी ख़ुद को अलग कर लिया था.
2017 में उन्होंने सूर्यनेली रेप केस की भी सुनवाई से इसलिए अलग कर लिया था कि उन्होंने उस मामले के एक अभियुक्त की पहले पैरवी की थी.
2018 में उन्होंने मालेगांव ब्लास्ट केस के एक अभियुक्त की एक याचिका जिसमें कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा किए गए कथित उत्पीड़न की जांच की मांग की गई थी, से भी ख़ुद को अलग कर लिया था.
2019 में अयोध्या मामले पर बनी सांविधानिक पीठ से भी ख़ुद को उन्होंने अलग कर लिया था.
हाईकोर्ट में वकालत
साल 1957 में पैदा हुए जस्टिस ललित ने 1983 में बॉम्बे हाई कोर्ट से अपनी वकालत की प्रैक्टिस शुरू की थी. वहां उन्होंने दिसंबर 1985 तक वकालत की थी.
1986 से 1992 के बीच वो पूर्व सॉलिसिटर जनरल सोली सोराबजी के साथ काम किया. उसके बाद अप्रैल 2004 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया.
बहुचर्चित 2जी घोटाले के सभी मामलों में ट्रायल चलाने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो की मदद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें स्पेशल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर नियुक्त किया था.
वकील के रूप में जस्टिस ललित क्रिमिनल लॉ के विशेषज्ञ रहे हैं. उन्हें राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण यानी नालसा का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया गया था.
-एजेंसी