आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वावधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रहे महापर्व पर्युषण का चौथा दिन भक्ति, ज्ञान और तपस्या की त्रिवेणी में डूबा रहा। धर्मप्रेमियों की उपस्थिति में वातावरण धर्ममय और उल्लासपूर्ण बना रहा, जहाँ आत्मा की शुद्धि के लिए हर मन श्रद्धा से झुकता दिखाई दिया।
आगम की गूंज और मुक्ति का संदेश:
बहुश्रुत श्री जय मुनि जी ने श्री अन्तकृतदशांग सूत्र के चौथे और पाँचवे वर्गों की व्याख्या करते हुए बताया कि इन वर्गों में जालि, मयानि जैसे दस कुमारों और पद्मावती, गौरी, गांधारी जैसी दस महारानियों की दीक्षा उपरांत मुक्ति की गाथाएँ वर्णित हैं। उन्होंने कहा—“आगम के प्रति श्रद्धा, जिन शासन के प्रति श्रद्धा है।”
श्रीकृष्ण वासुदेव की कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि तीर्थंकर अरिष्टनेमि ने द्वारिका के विनाश के तीन कारण बताए—शराब, अग्नि और द्वैपायन ऋषि का कोप। वासुदेव ने नगर में आयंबिल तप की श्रृंखला आरंभ करने और दीक्षा लेने वालों के लिए राज्य व्यवस्था सुनिश्चित करने की घोषणा की थी। यह प्रसंग धर्म और शासन के समन्वय का अनुपम उदाहरण बना।
गुरुवाणी में जीवन का संकल्प:
पूज्य आदीश मुनि जी ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा—“पर्युषण हमें कुछ देने आता है, ताकि हम अपने शुभ भावों को पुष्पित कर सकें। हमें संकल्प करना है कि अपनी और दूसरों की ज़िन्दगी में फूल खिलाएँ।” उन्होंने अन्तकृतदशांग सूत्र के मूल पाठ की वाचना की और उस पर आचरण का आह्वान किया।
विनय की व्याख्या और सहिष्णुता का संदेश:
धर्मसभा के प्रारंभ में पूज्य श्री आदित्य मुनि जी ने ‘विनय’ की विवेचना करते हुए कहा—“शिष्य को अनुशासन में क्रोध नहीं करना चाहिए। सहिष्णुता ही महानता की ओर ले जाती है। जैसे वृक्ष धूप, वर्षा सहकर भी छाया देता है, वैसे ही हमें भी क्षमाशील बनना चाहिए।”
संस्कारों की ओर अगला कदम:
गुरुदेव जय मुनि जी ने धर्मप्रेमियों से आग्रह किया कि पर्युषण के पाँचवें दिन सभी अपने किशोर बच्चों को प्रवचन में अवश्य लाएँ, ताकि वे संस्कारों की नींव से जुड़ सकें।
तप की ज्योति और आत्मा की आराधना:
धर्मसभा के अंत में “श्री पार्श्वनाथाय नमः” का जाप कराया गया और आज के त्याग—कच्ची-पकी हरी वस्तुओं का त्याग, क्रोध और बुराई न करने की शपथ दिलाई गई। तपस्वियों की तपस्या निरंतर गतिमान है, जिनमें सुनीता दुग्गड़ (27 उपवास), नीतू मनानी (14), पीयूष लोहड़े (9), विशाल बरार (7), रोहित दुग्गड़ (5), प्रियांशी कवाड़ (5), सुमित्रा सुराना (4), मुदित सुराना (4) प्रमुख हैं। अनेक श्रावक-श्राविकाएँ आयंबिल, एकासना, उपवास आदि तप में रत हैं।
पर्युषण पर्व – एक आह्वान आत्मा की ओर:
यह पर्व केवल अनुष्ठान नहीं, आत्मा की ओर लौटने का निमंत्रण है। यह हमें सिखाता है कि त्याग, तप और क्षमा से जीवन को कैसे सुंदर बनाया जा सकता है। जैन स्थानक महावीर भवन में गूंजती हर वाणी, हर जाप, हर संकल्प यही कहता है—“आओ, आत्मा की ओर चलें।”
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