गाजा पर अंधाधुंध बमबारी करके इसराइल दुनियाभर का समर्थन खो रहा है: बाइडन

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सात अक्टूबर को हमास के इसराइल पर किए गए हमले का बाद से अमेरिका इसराइल का खुल कर समर्थन करता रहा है.

हालांकि बाइडन ने दोहराया कि अमेरिका हमेशा इसराइल के साथ खड़ा है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने इसराइल को हिदायत देते हुए कहा- “इसराइल के साथ अमेरिका खड़ा है, अभी उसके पास अमेरिका के अलावा भी लोग हैं- उसके साथ यूरोपीय संघ है, उसके साथ यूरोप है, उसके साथ दुनिया का अधिकांश हिस्सा है. लेकिन अंधाधुंध बमबारी से वो समर्थन खो रहे हैं.”

हालाँकि बाइडन ने कहा कि “हमास पर कार्रवाई करने की ज़रूरत को लेकर कोई सवाल ही नहीं है “और इसराइल के पास ऐसा करने का “पूरा अधिकार” है.

बीते दिनों अमेरिका ने इसराइल को निर्देश दिए थे कि वह “मानव जीवन को प्राथमिकता दे” और गाजा के लोगों को संघर्ष से बचने के लिए स्पष्ट निर्देश दे. वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों ने भी इसराइल के रवैये पर असंतोष जताया था.

दुनिया भर के कई देश, संयुक्त राष्ट्र और मानवनाधिकार संस्थाएं ग़ज़ा में इसराइल की बमबारी की आलोचना कर रही हैं और तुरंत सीज़फ़ायर करने की मांग कर रही है.

गाजा में हमास के स्वास्थ्य मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि 7 अक्टूबर के बाद से इसराइली बमबारी में अब तक 18,400 से अधिक लोग मारे गए हैं. हमास के हमले में 1200 इसराइली मारे गए थे.

संयुक्त राष्ट्र महासभा में युद्धविराम को लेकर हुई वोटिंग

उधर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में 12 दिसंबर यानी मंगलवार को ग़ज़ा में युद्धविराम को लेकर वोटिंग हुई. इस वोटिंग में 153 सदस्य देशों ने युद्धविराम के समर्थन और 10 देशों ने ख़िलाफ़ में वोटिंग की. 23 देश वोटिंग से अनुपस्थित रहे.
भारत ने भी युद्धविराम के समर्थन में वोटिंग की है.
जब पहली बार संयुक्त राष्ट्र में युद्धविराम को लेकर वोटिंग हुई थी, तब भारत वोटिंग से अनुपस्थित रहा था.

इससे पहले नवंबर में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव के समर्थन में वोट किया था, जिसमें कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बस्तियों की निंदा की गई थी.
‘पूर्वी यरुशलम और सीरियाई गोलान समेत कब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइली बस्तियां’ टाइटल से यूएन महासभा में प्रस्ताव पेश किया गया था.

इस प्रस्ताव के समर्थन में 145 वोट पड़े, ख़िलाफ़ में सात और 18 देश वोटिंग से बाहर रहे.

26 अक्टूबर को यूएन में इसराइल के गज़ा पर जारी हमले को लेकर आपातकालीन सत्र बुलाया गया था और भारत ने युद्धविराम के प्रस्ताव पर वोट नहीं किया था.

भारत के इस रुख़ को इसराइल के पक्ष में माना गया था. भारत ने तब कहा था कि प्रस्ताव में सात अक्टूबर को इसराइली इलाक़े में हमास के हमले का संदर्भ नहीं था और भारत की नीति आतंकवाद को लेकर ज़ीरो टॉलरेंस की रही है.

यूएन में 26 अक्टूबर की वोटिंग के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरब और खाड़ी के देशों के कई नेताओं से बात की थी.

इसराइल की बढ़ती मुश्किलें?

वोटिंग के नतीजों में इसराइल पर जंग रोकने के दबाव बनाने वाले देशों की संख्या में इजाफा हुआ है.

27 अक्तूबर को जब युद्ध विराम पर वोटिंग हुई थी, तब इसराइल से युद्ध रोकने की अपील करने वाले देशों की संख्या कम थी. तब 120 देशों ने युद्धविराम के पक्ष में और 14 ने ख़िलाफ़ वोटिंग की थी. 45 देश तब वोटिंग से ग़ैर-हाज़िर रहे थे.

सुरक्षा परिषद में शुक्रवार को लाए प्रस्ताव का अमेरिका ने वीटो किया था. इस प्रस्ताव में ग़ज़ा में मानवीय मदद के लिए युद्धविराम की बात कही गई थी.

अरब और इस्लामिक देशों ने 193 सदस्यों वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा के आपातकालीन सत्र में इसी मांग पर वोटिंग की बात की.

Compiled: up18 News


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