मोदी सरकार ने रेलवे की भूमि के लिए न्यू लैंड लाइसेंसिंग फीस पॉलिसी बनाकर अडानी का कॉनकोर खरीदने का रास्ता साफ़ कर दिया है, LLF को मंजूरी देकर कंटेनर कॉरपोरेशन (Concor) के निजीकरण में एक महत्वपूर्ण रूकावट को हटा दिया है।
भूमि लाइसेंस शुल्क को 6 प्रतिशत से घटाकर 1.5 प्रतिशत करने और लीज की अवधि बढ़ाने से CONCOR में केंद्र की 55 फीसदी हिस्सेदारी अडानी को खरीदना अब आसान हो गया है
देश के आयात निर्यात पर अडानी के टोटल कंट्रोल के लिए उसका कॉन कोर को खरीदना बहुत जरूरी है, कॉनकोर जैसी महत्वपूर्ण सरकारी कन्टेनर कम्पनी को खरीद कर वह देश की पूरी लॉजिस्टिक चेन पर कब्जा करने जा रहा है
आप देख ही रहे हैं कि पिछले पाँच सालों में अडानी ने लॉजिस्टिक के क्षेत्र में अनेक कंपनिया बनाई है और रेलवे ट्रैक के आसपास बड़े बड़े गोदामो का निर्माण किया है
अभी देश के 11 बड़े बन्दरगाह अडानी के कब्जे में है 7 बड़े एयरपोर्ट पर उसका कब्जा है लेकिन इन पोर्ट्स पर लगभग सारा माल अंतर्देशीय बंदरगाहों से आता है जिन्हे ड्राई पोर्ट्स कहा जाता है जो कॉनकोर के पास है कॉन कोर ही कंटेनरों के लिए रेल परिवहन प्रदान करता है जो पोर्ट संचालन के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं।
दरअसल कॉनकोर इंडिया यानि कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ इडिया जिसे भारत सरकार के नवरत्न कंपनियों में सबसे मुनाफे की कंपनी माना जाता है, यह रेलवे से जुड़ा PSU है इसका गठन 1988 में 83 करोड़ की लागत से कंपनी एक्ट के तहत हुआ था। आज इस कंपनी की नेट वैल्यू 32 हजार करोड़ है। इस कंपनी से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से 10 लाख लोग जुड़े हुए हैं।
इस वक्त कॉनकोर देश के लॉजिस्टिक क्षेत्र में लगभग 72 प्रतिशत की हिस्सेदारी है इसके कुल 83 टर्मिनल है जो देश भर में अलग अलग स्थानों पर है 43 टर्मिनल रेलवे की जमीन पर हैं, जिनकी अनुमानित लागत 25 हजार करोड़ रुपए है। भारत में केवल कॉनकॉर ही सामुद्रिक व्यापारियों को रेल मार्ग से कंटेनरीकृत कार्गों हेतु यातायात मुहैया कराता है इसलिए किसी भी कीमत पर अडानी इसे खरीदने पर आतुर है, और मोदी सरकार उसे पूरा सहयोग कर रही है
कई बार पहले भी लिख चुका हूँ कि इस देश का नाम 2024 तक इंडिया नही रहेगा बल्कि इस देश का नाम अडानी रिपब्लिक हो जाएगा।
साभार- गिरिश मालवीय ( लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
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