अपराध और अपराधियों को बचाने में अधिकारियों की संलिप्तता, समाज के लिए नही हैं सही संकेत

अन्तर्द्वन्द
प्रियंका सौरभ

इन दिनों हम देखते है कि देश भर में उच्च पदों पर बैठे कुछ अफसरों के भ्र्ष्टाचार और यौन अपराधों में ख़ुद के शामिल होने और अपराधियों को बचाने में उनकी सलिंप्तता के मामले बढ़ते जा रहे हैं जो देश और समाज के लिए सही संकेत नहीं हैं। आख़िर कौन-सी वज़ह हैं कि उच्च पद आसीन व्यक्तित्व (सभी नहीं) इन घिनौनी हरकतों को रोकने कि बजाय ख़ुद इनको अंजाम देने पर तुले हैं। ऐसे में लिप्त अधिकारी के बारे में नकारात्मक बातें कर लोग उसकी अवहेलना करने लगते हैं। अवहेलना के कारण अधिकारी के प्रति अविश्वास पैदा होता है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई के पुलिस हिरासत में साक्षात्कार मामले में हाईकोर्ट ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने अपराधी को इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का उपयोग करने की अनुमति दी और साक्षात्कार के लिए स्टूडियो जैसी सुविधा प्रदान की जो अपराध को महिमामंडित करने जैसा है।

जब अधिकारी अनैतिक आचरण में लिप्त होते हैं, तो कानून प्रवर्तन में जनता का भरोसा कम होता है, जिससे संस्थाओं में विश्वास टूटता है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में पुलिस भ्रष्टाचार को भारत के सार्वजनिक संस्थानों में अविश्वास का एक प्रमुख कारण माना गया है। जब कानून प्रवर्तन अपराधियों को बचाता है, तो यह दो-स्तरीय न्याय प्रणाली बनाता है, जहाँ शक्तिशाली लोग परिणामों से बच निकलते हैं। वोहरा समिति की रिपोर्ट (1993) ने अपराधियों, राजनेताओं और पुलिस के बीच सांठगांठ का खुलासा किया, जिससे कानून प्रवर्तन की अखंडता से समझौता हुआ।

अपराधियों को बचाने में शामिल अधिकारी पीड़ितों को न्याय से वंचित करने में योगदान करते हैं, जिससे दंड से मुक्ति का चक्र चलता रहता है। बिहार और यूपी में हाल ही में हुए हाई-प्रोफाइल मामलों में पुलिस की संलिप्तता प्रभावशाली अपराधियों को बचाने और न्याय में देरी करने में देखी गई है। इस तरह का अनैतिक व्यवहार पुलिस बल के भीतर भ्रष्टाचार की संस्कृति को बढ़ावा देता है, जिससे संभावित रूप से संस्थागत अपराध को बढ़ावा मिलता है। मुंबई पुलिस के भीतर भ्रष्टाचार के घोटालों ने उजागर किया कि कैसे वित्तीय लाभ के लिए अपराधियों को बचाया जाता है। पुलिस द्वारा अपराधियों को संरक्षण दिए जाने की सार्वजनिक जानकारी से अराजकता बढ़ती है और सामाजिक अशांति पैदा होती है, जिससे शासन व्यवस्था कमज़ोर होती है। उत्तर प्रदेश में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए, जब पुलिस द्वारा स्थानीय माफ़िया समूह को संरक्षण दिए जाने की रिपोर्टें सामने आईं।

पुलिस अधिकारियों के लिए मूल्य-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने से उनमें नैतिक व्यवहार और ईमानदारी पैदा हो सकती है, जिससे भ्रष्टाचार कम हो सकता है। दूसरा एआरसी पेशेवर जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए पुलिस प्रशिक्षण में नैतिक मॉड्यूल की सिफ़ारिश करता है। आंतरिक निगरानी और पुलिस शिकायत प्राधिकरण जैसे बाहरी निकायों को मज़बूत करना अनैतिक व्यवहार के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करता है। प्रकाश सिंह मामले (2006) ने पुलिस सुधारों को जन्म दिया, जिसमें स्वतंत्र जवाबदेही तंत्र स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया। व्हिसल-ब्लोअर सुरक्षा सुनिश्चित करने से अधिकारी बिना किसी प्रतिशोध के डर के अनैतिक व्यवहार की रिपोर्ट कर सकते हैं, जिससे पारदर्शिता को बढ़ावा मिलता है। व्हिसल-ब्लोअर सुरक्षा अधिनियम (2014) भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले लोक सेवकों के लिए सुरक्षा उपाय प्रदान करता है।

अपराधियों को बचाने वाले अधिकारियों के लिए कठोर कानूनी दंड लगाना एक निवारक के रूप में कार्य करता है, जो नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करता है। 2023 में, यूपी पुलिस ने आपराधिक साजिशों में शामिल होने के लिए कई अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया, जो शून्य-सहिष्णुता के दृष्टिकोण का संकेत देता है। बॉडी कैम और स्वचालित निगरानी जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित समाधानों को लागू करने से वास्तविक समय की निगरानी प्रदान करके पुलिस के कदाचार को रोका जा सकता है। तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्य पुलिस की जवाबदेही बढ़ाने के लिए बॉडी कैमरा अपना रहे हैं। समुदाय-पुलिस भागीदारी को मज़बूत करने से विश्वास को बढ़ावा मिलता है और समुदायों को अधिकारियों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने की अनुमति मिलती है। केरल में जनमैत्री सुरक्षा परियोजना बेहतर पुलिस-समुदाय सम्बंधों को बढ़ावा देती है, जिससे भ्रष्टाचार के मामले कम होते हैं। कानून प्रवर्तन में नैतिक अखंडता का निर्माण करने के लिए संस्थागत सुधार, जवाबदेही तंत्र और कदाचार को रोकने के लिए मज़बूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता होती है। प्रशिक्षण और सामुदायिक जुड़ाव द्वारा समर्थित नैतिकता की संस्कृति जनता के विश्वास को बहाल करने और न्याय सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है।

ज्ञान, तर्कसंगतता और नैतिक उत्कृष्टता के प्रति समर्पण के अपने स्तर पर निर्भर करता है। आदर्श नैतिक आचरण से कम कुछ भी विभाग, समुदाय और पूरे राष्ट्र के लिए विनाशकारी हो सकता है। जबकि अधिकारी केवल इंसान हैं और गलतियाँ करते रहेंगे, नैतिक कदाचार बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। अपने अधिकारियों के नैतिक व्यवहार को सुनिश्चित करने के लिए, एजेंसियों के पास तीन बुनियादी सिद्धांत होने चाहिए। सबसे पहले, उनके पास एक नीति होनी चाहिए जो उनके नैतिक मिशन को स्पष्ट करती हो और ऐसे मानक तय करती हो जिनका अधिकारियों को पालन करना चाहिए। दूसरा, मज़बूत और नैतिक नेतृत्व मौजूद होना चाहिए और उसे लागू किया जाना चाहिए। ये अधिकारी विभाग के लिए माहौल बनाते हैं और उदाहरण के तौर पर नेतृत्व करते हैं, नैतिक मार्ग के बदले कभी भी आसान रास्ता नहीं चुनते। तीसरा, एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे नैतिक लोगों को नियुक्त करें और उन लोगों के साथ उचित तरीके से पेश आएँ जो नैतिक नहीं हैं।

एक नैतिक संगठन को ” मौजूदा नीतियों और मानकों का ईमानदारी से पालन करने, प्रदर्शन के किसी व्यक्तिगत या सामूहिक पैटर्न का पता लगाने की क्षमता की आवश्यकता होगी जो उस अपेक्षा से कम हो और उन लोगों से निपटने का साहस जो उन विफलताओं के लिए ज़िम्मेदार हैं।

-प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार,
उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045
(मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप)


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