-सोनिका मौर्या-
महिलाओं को भोग्या और गुलाम के नजरिये से नहीं, समान नजरिया अपनाने की जरूरत
सामाजिक सृजन में महिला पुरुष की समान भागीदारी होती है। मगर भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति नियत, नीति, नजरिया हमेसा से ही संकुचित रही है। हमारा समाज पुरुष-प्रधान होने की वजह से महिलाओं को समाज में समानता के भाव से वंचित रखता है।
अधिकतर पुरूष यह चाहता है कि स्त्री घर के दायरे में ही सिमट कर अपना जीवन बिताये। और वह खुद को इस दायरे से उन्मुक्त आजाद रखना चाहता है। वह महिलाओं पर अपनी पसंद नापसंद थोपने तक चला जाता है,और खुद की पसन्द को सबसे ऊपर औऱ उत्कृष्ट बताता है। मगर उसे यह तनिक नहीं भाता की कुछेक विषयों पर स्त्री अपनी पसंद चाहे और पाये।
वजह यह है कि वह महिला को भोग्या के अलावा कुछ समझ ही नहीं पाता। औऱ उसके मन में थोड़ा सम्मान जागृत हुआ तो बस जननी के अलावा कुछ सोच ही नहीं पाता।
यही कारण है कि महिलाओं के प्रति बहुत सी धारणाएं आज भी आदिमकाल की बनी हुई है। मसलन माहवारी में उन्हें अछूत बना देना,विधवा होने पर उन्हें मांगलिक कार्यक्रमों से दूर रखना ऐसे कई उदाहरण हैं। हालांकि दकियानूसी धारणाओं में परम्पराओं में “स्त्री ही स्त्री की दुश्मन” वाली सोच दिखती है। क्योंकि पुराने खयालात वाली महिलायें यह सोचती हैं कि जो वह झेलते आयी हैं,नई पीढ़ी भी वही झेले। और यही झेले खेले सोच की वजह से महिलाओं को बहुत अत्याचारों का सामना करना पड़ा है। आमतौर पर महिलाओं को जिन समस्याओं से दो-चार होना पड़ा है उनमे प्रमुख है दहेज़-हत्या, यौन उत्पीड़न, महिलाओं से लूटपाट, लड़कियों से छेड़-छाड़ वगैरह। साथ ही जब पुरुषों की आपसी लड़ाई बहस चलती है तो उनके वॉर अपमान के केंद्र में महिलाएं होती हैं। और वह अपने गुस्से प्रतिरोध को वह एक दूसरे के घर की महिलाओं को अपशब्दों की बौछार (गाली देकर) करके अपनी क्षुदा शांत करते हैं।
पर यही पुरुष वर्ग यह भूल जाता है कि यही महिला उनके लिये माँ बहन पत्नी दोस्त और शुभचिंतक होती है। वह चाहे कैसी और किसी की क्यों न हो।
यही नहीं अबला कही जाने वाली नारी किसी भी पुरूष के प्रगति का रास्ता दिखाती है। मगर वही महिला जब अपनी आर्थिक सामाजिक मजबूती या किसी मजबुरीवश काम की तलाश में जाती है तो अमूमन हर कार्यक्षेत्रों और अन्य व्यवसायिक संस्थानों में महिलाओं के शारीरिक शोषण की नियत रखने वाला पुरुष समाज अपने काम पर लग जाता है। यह वर्तमान का कटु सत्य है। महिलाओं को कॅरियर की छलांग लगाने। का लालच या नौकरी से निकाले जाने का भय दिखाकर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न जैसी निकृष्ट घटनाओं का कारण बनता है। आज की एक बड़ी हकीकत है कि अब अधिकांश शारीरिक उत्पीड़न से जुड़े मामले दबा लिए जाते हैं।
पुरुष प्रधान मानसिकता और महिलाओं को भोग की वस्तु समझने वाली सोच कामकाजी महिलाओं के शारीरिक उत्पीड़न को बढ़ावा दे रही है वहीं घरेलू महिलाओं को भी गहरे उत्पीड़न हिंसा का शिकार होना पड़ता है। आज पुरुष जमात कुछ भी दिखावा करे महिलाओं को मातृशक्ति बताये। मगर जब तक वह महिलाओं को भोग्या या गुलाम की सोच से बाहर नहीं निकलता है तब तक आज़ाद जमात की बात महिलाओं के लिये बेमानी मानी जाएगी।
-up18 News
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