इसके साथ ही एक और बात को समझने की जरूरत है. हमास का मतलब फिलीस्तीन नहीं होता है. खुद फिलीस्तीनी अथॉरिटी के प्रेसिडेंट महमूद अब्बास ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बातचीत के दौरान यह बात कही है. हमास एक आतंकी संगठन है और उसे खुद फिलीस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति भी नहीं चाहते. मिडल ईस्ट की राजनीति इतनी उलझी है कि आपस में लड़ते रहनेवाले देश भी अभी एक मसले पर इजरायल के खिलाफ हो गए हैं लेकिन ध्यान रहे कि इजरायल ने तो महमूद अब्बास के साथ शांति समझौता भी किया है, वह बहरीन और यूएई के साथ कर चुका है. सउदी अरब के साथ उसकी बातचीत चल रही थी, जो अब डिरेल हो गयी है. फिलहाल, ध्यान रखने की बात यही है कि भारत ने हमास के आतंकवाद का विरोध किया है. इजरायल के दुख में उसके साथ शरीक है, लेकिन फिलीस्तीन पर उसकी नीति कतई नहीं बदली है.
राष्ट्रपति अब्बास कर सकते हैं कॉल
नई दिल्ली ने यह साफ कर दिया है कि शांति की कोशिशें जल्द से जल्द हों और फिलीस्तीन के लिए एक अलग देश हो और यह बात फिलीस्तीन के राष्ट्रपति समेत दुनिया के कई देशों को भी समझ में आ गयी है. उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रपति अब्बास भी अब पीएम मोदी को कभी फोन कर हालात की जानकारी दे सकते हैं.
अमेरिकी विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन उनसे जॉर्डन की राजधानी में मिल ही चुके हैं. 10 अक्टूबर को इजरायली समकक्ष नेतन्याहू से बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इजरायल की धरती पर हुए हमले को आतंकवाद करार दिया था और उसकी बिना शर्त पूरी मजबूती से निंदा की थी. अब महमूद अब्बास अगर पीएम मोदी से बात करेंगे तो वह यही अपील करेंगे कि मोदी नेतन्याहू से बात करें और हालात को और अधिक न बिगाड़ते हुए इजरायल युद्धविराम करे. साथ ही, महमूद अब्बास की भारत से मानवीय सहाता, चाहे वह कपड़ों की हो, दवाओं की हो या ऐसी किसी भी चीज की हो, पाने की भी होगी.
पिछले हफ्ते ही फिलीस्तीन के राजदूत ने खास बातचीत में यह कहा था कि भारत के पास वह प्रभाव और पश्चिम एशिया के देशों के साथ दोस्ती है कि वह इजरायल को कब्जे से रोक सकें और लगभग 22 लाख फिलीस्तीनियों को मानवीय सहायता पहुंचा सकें, जो इजरायल के हमले की वजह से खाने-पीने की समस्या से भी जूझ रहे हैं, जो गाजा पट्टी में फंसे हुए हैं. हालांकि, भारत की मध्यस्थता में कोई रुचि नहीं है क्योंकि वह पश्चिम एशिया की उलझी हुई राजनीति में बिल्कुल नहीं फंसना चाहता, फिर फिलीस्तीन के करीब बहुत से देश हैं जो इस काम को बेहतर अंजाम दे सकते हैं.
आगे की राह
भू राजनीति और वर्ल्ड-डिप्लोमैसी की कोई सीधी राह नहीं होती. वह हमेशा देश अपने हितों के मुताबिक चुनाव करते हैं. अमेरिका ने एक जंगी जहाज पहले ही भूमध्यसागर में इजरायल के लिए उतार रखा है, दूसरा भी उतारने ही वाला है. वह इजरायल के साथ पूरी तरह खड़ा है, लेकिन आज बाइडेन ने इजरायल को गाजा पर कब्जा करने से मना भी किया है.
यह पूरा जो युद्ध चल रहा है, उसमें अभी जो अरब एकता दिख रही है, वह भी टूटती और बिखरती रहती है, फिर जुट जाती है. फिलहाल, इस हमले के पीछे ईरान जिस तरह खड़ा है, उससे भी कई तरह के सवाल खड़े हुए हैं. भारत ने वही किया है, जो एक सभ्य और समझदार देश को करना चाहिए. आतंकवाद की घटना की निंदा की है और मानवीय मुद्दे का समर्थन किया है. इस तरह वह फिलीस्तीन के साथ खड़ा है.
Compiled: up18 News
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