अविश्वसनीय: यंहा डेढ़ सौ सालों से मछली पकड़ने में मछुआरों की मदद करती हैं डॉल्फिन

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इन किस्सों में इंसानों के अनुभव ही सामने आते हैं और डॉल्फिन इस सहयोग पर क्या सोचती या महसूस करती हैं, यह पता नहीं चल पाया. यह भी नहीं पता था कि ये मछलियां क्यों इंसान का सहयोग करती हैं यानी इन्हें क्या लाभ होता है. लेकिन पहली बार वैज्ञानिक इस बात का पता लगाने में कामयाब हुए हैं कि इस सहयोग का मछलियों को क्या फायदा होता है.

ब्राजील के लगूना शहर में ड्रोन, पानी के अंदर की रिकॉर्डिंग और अन्य कई वैज्ञानिक युक्तियों के इस्तेमाल से विशेषज्ञ यह पता लगाने में कामयाब रहे हैं कि इंसानों और डॉल्फिनों को इस परस्पर सहयोग का क्या लाभ होता है. एक दिलचस्प बात तो यह पता चली है कि दोनों ही एक दूसरे के शरीर की भाषाएं पढ़ने से लाभ उठा रहे हैं.

परस्पर सहयोग

सोमवार को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नैशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह लगूना के मछुआरे डॉल्फिनों की मदद ले रहे हैं. ये मछुआरे मुलेट नाम की प्रवासी मछलियों को पकड़ने में डॉल्फिन मछलियों का सहयोग लेते हैं. यह सहयोग करीब डेढ़ सौ सालों से चल रहा है और इस बारे में पहले भी बहुत कुछ लिखा गया है.

इस बारे में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की बायलॉजिस्ट और डॉल्फिन विशेषज्ञ स्टेफनी किंग कहती हैं, “यह अध्ययन दिखाता है कि डॉल्फिन और इंसान दोनों ही एक दूसरे के व्यवहार पर ध्यान दे रहे हैं और डॉल्फिन इस बात का इशारा करती हैं कि कब जाल फेंकना है. यह वाकई अविश्वसनीय सहयोग है. डॉल्फिनों के साथ काम करके लोग ज्यादा मछलियां पकड़ते हैं और डॉल्फिनों को भोजन की तलाश में मदद मिलती है.”

डॉल्फिनों की समझदारी और बुद्धिमत्ता पर काफी अध्ययन हो चुके हैं. इंसान की तरह ही वह भी लंबे समय से धरती पर मौजूद सामाजिक प्राणी है. लेकिन मछलियां पकड़ने के मामले में दोनों के पास अलग-अलग क्षमताएं हैं.

कैसे हुआ अध्ययन?

अध्ययन के सह-लेखक मॉरिसियो कैंटर ऑरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में मरीन बायोलॉजी पढ़ाते हैं. लगूना के समुद्र के बारे में वह कहते हैं, “वहां पानी बहुत धुंधला है इसलिए लोग उसके भीतर मछलियों का समूह देख नहीं पाते. तब डॉल्फिन अपनी आवाजों से उन्हें संकेत भेजती हैं कि कहां मछलियां हैं.”

ये डॉल्फिन मछलियों को तट की ओर धकेलती हैं और लोग हाथों में जाल पकड़कर पानी की ओर भागते हैं. कैंटर कहते हैं, “वे डॉल्फिनों के यह बताने का इंतजार करते हैं कि पानी मछलियां किस जगह हैं. सबसे आम संकेत को स्थानीय लोग छलांग कहते हैं.”

इस पूरे व्यवहार को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने सोनार तकनीक व पानी के अंदर आवाजों को रिकॉर्ड करने वाले माइक्रोफोन का इस्तेमाल किया. इस तरह उन्होंने पता लगाया कि पानी के अंदर डॉल्फिन और मछलियां किस जगह हैं. साथ ही मछुआरों की कलाइयों पर जीपीएस डिवाइस बांधी गईं जिनसे पता चला कि वे अपने जाल कब फेंकते है

आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चला कि मछुआरों और डॉल्फिनों के संकेतों में जितना ज्यादा तालमेल था, पकड़ी गई मछलियों की संख्या उतनी ही ज्यादा थी. लेकिन एक सवाल अब भी बाकी था कि इस तालमेल से मछुआरों को क्या मिल रहा था.

कैंटर बताते हैं, “जाल फेंकने से मछलियों के बड़े-बड़े समूह छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं और डॉल्फिनों के लिए उनका शिकार आसान हो जाता है. कई बार वे जाल के अंदर से भी मछलियों को लपक लेती हैं.”

तरह-तरह की डॉल्फिन

लगूना के लोगों ने डॉल्फिनों को अच्छी, बुरी और सुस्त की श्रेणियों में बांट रखा है जो उनके शिकार करने और ज्यादा सहयोग करने की क्षमता पर आधारित है. कैंटर बताते हैं कि जब वे अच्छी डॉल्फिनों को तट की ओर आते देखते हैं तो खूब उत्साहित हो जाते हैं.

कनाडा के हेलफैक्स में डलहौजी यूनिवर्सिटी के बोरिस वॉर्म कहते हैं कि इन मछुआरों और डॉल्फिनों ने मिल-जुल कर शिकार करने की एक संस्कृति विकसित कर ली है जिससे दोनों को लाभ पहुंच रहा है. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि इसकी शुरुआत कैसे हुई लेकिन यह संस्कृति सौ साल से भी ज्यादा से चली आ रही है और डॉल्फिन व इंसान दोनों ही अपनी-अपनी संतानों को यह सिखाते आ रहे हैं.

लेकिन विशेषज्ञों को चिंता है कि यह अपनी तरह का आखिरी गठजोड़ जो प्रदूषण और औद्योगिक तरीकों से मछली पकड़ने के कारण खतरे में है. इसलिए लोगों के बीच ज्यादा जागरूकता की जरूरत है

Compiled: up18 News


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