नवरात्रि को एक त्योहार की तरह भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में हिन्दू कैलेंडर के अनुसार षष्ठी से लेकर दशमी तक दुर्गा की पूजा होती है लेकिन भारत में ही कुछ ऐसे क्षेत्र हैं, जहां दुर्गा की पूजा नहीं होती। कुछ ऐसे समुदाय हैं, जो महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं और नवरात्रि के दौरान महिषासुर की मौत का शोक मनाते हैं। गौरतलब है कि दुर्गा की अधिकतर मूर्तियों में उन्हें महिषासुर को मारते दिखाया जाता है।
कौन लोग करते हैं महिषासुर की पूजा?
महिषासुर की पूजा झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल के अलावा दक्षिण के भी कई राज्यों में होती है। कर्नाटक के मैसूर में तो बकायदा महिषासुर की विशाल प्रतिमा भी लगी है। नवरात्रि के दौरान कई जगहों पर ‘महिषासुर शहादत दिवस’ का आयोजन भी किया जाता है। महिषासुर की पूजा मुख्य रूप से असुर समुदाय के लोगों द्वारा की जाती है। असुर भारत की एक सबसे प्राचीन मानी जाने वाली जनजातियों में से एक है।
इनकी आबादी का बड़ा हिस्सा झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में रहता है। असुर विश्व की उन चुनिन्दा जनजातियों में से हैं, जो लौह अयस्क को खोजने और लौह धातु से हथियार बनाने के लिए जाने जाते हैं। इस जनजाति के लोग खुद को पौराणिक असुरों का वंशज मानते। इनके लिए महिषासुर राजा हैं। असुर समुदाय का मानना है कि दुर्गा ने अनेक देवताओं के साथ मिलकर घोखे से महिषासुर की हत्या की।
असुर समुदाय पिछले कुछ वर्षों से दुर्गा के हिंसक रूप वाली पर मूर्ति पर आपत्ति भी व्यक्त कर चुका है। उनका कहना है कि यह सिर्फ उनके पूर्वजों का ही नहीं बल्कि पूरे असुर आदिवासी समाज का अपमान है।
पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक भव्यता से दुर्गा पूजा मनाया जाता है। लेकिन वहां के जलपाईगुड़ी जिला स्थित अलीपुरदुआर के माझेरडाबरी चाय बागान के असुर दुर्गा पूजा के दौरान मातम मनाते हैं। बीबीसी की एक ग्राउंड रिपोर्ट में पाया गया था कि अलीपुरदुआर का असुर समुदाय नवरात्रि के दौरान नए कपड़े नहीं पहनता, न ही दिन में घर से बाहर निकलता है।
असुर समुदाय की कथाकार सुषमा असुर कहती है, ‘मैं एक असुर की बेटी आप सभी से अपील करती हूं, हमारी हत्याओं का नस्लीय परब बंद कीजिए। आप तो समर्थ और सभ्य लोग हैं। फिर क्यों इतना ज्ञानी होकर भी हत्या का धार्मिक आयोजन करते हैं?’
-Compiled by UP18 News