आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 99वीं कड़ी में अपने विचार साझा करते हुए मोदी ने कहा कि मैं असम से जुड़ी हुई एक खबर के बारे में बताना चाहता हूं। ये भी ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत करती है। आप सभी जानते हैं कि हम वीर लासित बोरफुकन की 400वीं जयंती मना रहे हैं। वीर लासित बोरफुकन ने अत्याचारी मुगल सल्तनत के हाथों से गुवाहाटी को आजाद करवाया था। आज देश इस महान योद्धा के अदम्य साहस से परिचित हो रहा है।
कौन थे लाचित बोरफुकन?
लाचित बोरफुकन आहोम साम्राज्य के एक सेनापति और बोरफूकन थे, जो कि सन 1671 में हुई सराईघाट की लड़ाई में अपनी नेतृत्व-क्षमता के लिए जाने जाते हैं। इसमें असम पर फिर से अधिकार पाने के लिए रामसिंह प्रथम के नेतृत्व वाली मुगल सेनाओं का प्रयास विफल कर दिया गया था। लगभग एक साल बाद बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
लचित ने औरंगजेब की सेना को धूल चटाई थी
लचित बोरफुकन ऐसे वीर योद्धा थे, जिन्होंने दिखा दिया कि हर आतंकी का अंत हो जाता है लेकिन भारत की अमर ज्योति अमर बनी रहती है। लचित बोरफुकन असम के पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य में एक सेनापति थे। सरायघाट के 1671 के युद्ध के लिए उन्हें जाना जाता है। इस युद्ध में औरंगजेब के नेतृत्व वाली मुगल सेना का असम पर कब्जा करने का प्रयास विफल कर दिया गया था।
असम में 24 नवंबर को मनाया जाता है लचित दिवस
सन 1671 में हुई सरायघाट की लड़ाई में मिली जीत की याद में असम में 24 नवंबर को लचित दिवस मनाया जाता है। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था। सरायघाट का युद्ध गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी के तटों पर लड़ा गया था। लचित बोरफूकन और उनकी सेना की ओर से लड़ी गई यह लड़ाई हमारे देश के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे प्रेरणादायक सैन्य उपलब्धियों में से एक है।
कहां पैदा हुए लचित बोरफुकन
लचित बोरफुकन लाचित सेंग कालुक मो-साई (एक ताई-अहोम पुजारी) के चौथे बेटे थे। उनका जन्म सेंग-लॉन्ग मोंग, चराइडो में ताई अहोम के परिवार में हुआ था। उनका धर्म फुरेलुंग अहोम था। लाचित बोरफुकन ने शास्त्र और सैन्य कौशल की पढ़ाई की थी। उन्हें अहोम स्वर्गदेव के ध्वज वाहक (सोलधर बरुआ) का पद, निज-सहायक के समतुल्य एक पद, सौंपा गया था जो कि किसी महत्वाकांक्षी कूटनीतिज्ञ या राजनेता के लिए पहला महत्वपूर्ण कदम माना जाता था।
राजा ने सौंपी थी सोने की तलवार
राजा चक्रध्वज ने गुवाहाटी के शासक मुगलों के खिलाफ अभियान में सेना का नेतृत्व करने के लिए लाचित बोरफुकन को चुना था। राजा ने उनको उपहार के रूप में लाचित को सोने की मूठ वाली एक तलवार सौंपी थी। लाचित ने मुगलों के कब्जे से गुवाहाटी को बचाया था ओर सरायघाट की लड़ाई में वे राज्य की रक्षा करने में सफल रहे थे।
पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव की जमकर तारीफ की
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन चलाने वाली देश की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव की जमकर तारीफ की है। पीएम ने कहा कि आपने सोशल मीडिया पर एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव जी को जरूर देखा होगा। एक नया कीर्तिमान स्थापित करते हुए वह अब वंदे भारत एक्सप्रेस की भी पहली महिला लोको पायलट बन गईं हैं। कुछ पहले ही नवभारत टाइम्स ऑनलाइन ने सुरेखा यादव का खास बातचीत की थी। जिसमें उन्होंने पीएम मोदी का शुक्रिया अदा किया था। सुरेखा यादव ने कहा था कि मैं पीएम मोदी की शुक्रगुजार हूं। अगर वह यह ट्रेन मुंबई सेक्शन में न चलाते तो शायद मुझे वंदे भारत चलाने का मौका नहीं मिल पाता।
34 साल का शानदार अनुभव
सुरेखा यादव ने बताया कि उन्होंने 34 साल पहले 13 फरवरी 1989 को एक सहायक लोको पायलट के रूप में अपनी नौकरी की शुरुआत की थी। वह महाराष्ट्र के सतारा जिले की हैं। सुरेखा कहती हैं उन्होंने यह कभी नहीं सोचा था कि यह नौकरी उन्हें देशभर में एक अलग पहचान मिलेगी। सुरेखा ने बताया कि यह नौकरी काफी जिम्मेदारियों भरी है जिसमें कभी भी आना और जाना पड़ता है। घर वाले यह बखूबी समझते हैं कि यह जॉब बेहद जिम्मेदारी वाली है। ऐसे में वो लोग मुझे ज्यादा डिस्टर्ब नहीं करते हैं। यह सब कुछ बिना परिवार के सपोर्ट के संभव नहीं हो पाता। उन्होंने बताया शादी के पहले मां-बाप और शादी के बाद ससुराल वालों ने बहुत सपोर्ट दिया।
वंदे भारत ने दिलाई पहचान
वंदे भारत की पायलट बनने से मिली पहचान की वजह सुरेखा काफी खुश हैं। वह कहती हैं कि आज जब आसपास के लोग मिलते हैं तो काफी खुश होते हैं। कहते कि कि मैडम आप वंदे भारत चलाती हैं पहले यह पता नहीं था लेकिन अब आप पर गर्व है। खासतौर पर महिलाएं काफी प्रभावित नजर आती हैं।
और क्या क्या कहा pm मोदी ने..
उन्होंने कहा कि आज भारत का जो सामर्थ्य नए सिरे से निखरकर सामने आ रहा है, उसमें बहुत बड़ी भूमिका हमारी नारी शक्ति की है। आपने सोशल मीडिया पर, एशिया की पहली महिला लोको पायलट सुरेखा यादव जी को जरुर देखा होगा। सुरेखा जी, एक और कीर्तिमान बनाते हुये वंदे भारत एक्सप्रेस की भी पहली महिला लोको पायलट बन गई हैं।
पीएम मोदी ने कहा कि इसी महीने प्रोड्यूसर गुनीत मोंगा और डायरेक्टर कार्तिकी गोंज़ाल्विस उनकी डॉक्युमेंट्री ‘Elephant Whisperers’ ने Oscar जीतकर देश का नाम रौशन किया है। उन्होंने कहा, ‘देश के लिए एक और उपलब्धि Bhabha Atomic Reseach Centre की Scientist, बहन ज्योतिर्मयी मोहंती जी ने भी हासिल की है। ज्योतिर्मयी जी को Chemistry और Chemical Engineering की field में IUPAC का विशेष award मिला है
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इस वर्ष की शुरुआत में ही भारत की Under-19 महिला क्रिकेट टीम ने T-20 World cup जीतकर नया इतिहास रचा। नागालैंड में 75 वर्षों में पहली बार दो महिला विधायक जीतकर विधानसभा पहुंची है। इनमें से एक को नागालैंड सरकार में मंत्री भी बनाया गया है। यानि, राज्य के लोगों को पहली बार एक महिला मंत्री भी मिली हैं। कुछ दिनों पहले मेरी मुलाकात, उन जांबांज बेटियों से भी हुई, जो तुर्किए में विनाशकारी भूकंप के बाद वहां के लोगों की मदद के लिए गयी थीं। ये सभी NDRF के दस्ते में शामिल थी। उनके साहस और कुशलता की पूरी दुनिया में तारीफ़ हो रही है।
ऑर्गन डोनेशन पर दिया जोर
पीएम मोदी ने कहा कि हमारे देश में परमार्थ को सर्वोपरि रखा गया है। इसलिए हमें दधिचि जैसे दानियों की गाथाएं सुनाई जाती हैं। मेडिकल साइंस की बदौलत हम ऑर्गन डोनेशन किसी को जीवन देने का एक बहुत बड़ा माध्यम बन चुका है। एक व्यक्ति जब ऑग्रर्न डोनेट करता है तो उससे 8 से 10 लोगों को नई जिंदगी मिलती है।
साल 2013 में हमारे देश में ऑर्गन डोनेशन के 5 हजार से भी कम केस थे, लेकिन 2022 में ये संख्या बढ़कर 15 हजार से ज्यादा हो गई है। ऑर्गन डोनेशन करने वाले व्यक्तियों ने, उनके परिवार ने वाकई बहुत पुण्य का काम किया है। जो लोग ऑर्गन डोनेशन का इंतजार करते हैं, वो जानते हैं कि इंतजार का एक-एक पल गुजरना, कितना मुश्किल होता है। ऐसे में जब कोई अंगदान या देहदान करने वाला मिल जाता है, तो उसमें ईश्वर का स्वरूप ही नजर आता है।
पीएम मोदी ने ऑगर्न डोनेट करने वाले लोगों के परिवार से बात की। पीएम मोदी ने पंजाब के एक परिवार से बात की, जिसने अपनी 39 दिन की बेटी की मौत होने के बाद उसके अंगदान किए। इसके बाद पीएम मोदी ने अभिजीत चौधरी से बात की, जिनकी मां ने अपनी मौत से पहले ही अपने अंगदान का फैसला लिया था, जिसे उनके जाने के बाद पूरा किया गया।
सौराष्ट्र-तमिल समागम
पीएम मोदी ने कहा कि ‘काशी-तमिल संगमम के दौरान, काशी और तमिल क्षेत्र के बीच सदियों से चले आ रहे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को Celebrate किया गया। Unity की इसी Spirit के साथ अगले महीने गुजरात के विभिन्न हिस्सों में ‘सौराष्ट्र-तमिल संगमम’ होने जा रहा है। सौराष्ट्र-तमिल संगमम 17 से 30 अप्रैल तक चलेगा। सदियों पहले सौराष्ट्र के अनेकों लोग तमिलनाडु के अलग-अलग हिस्सों में बस गए थे। ये लोग आज भी ‘सौराष्ट्री तमिल’ के नाम से जाने जाते हैं।’
Compiled: up18 News