सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: आरक्षण का लाभ लेने के लिए धर्म परिवर्तन करना संविधान के साथ धोखा

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ईसाई महिला की याचिका पर फैसला

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने कहा कि महिला ईसाई धर्म का पालन करती है और नियमित रूप से चर्च जाती है। इसके बावजूद वह नौकरी के लिए खुद को हिंदू और शिड्यूल कास्ट का बता रही है। ऐसा दोहरा दावा ठीक नहीं है। बेंच ने कहा कि जो व्यक्ति ईसाई है, लेकिन आरक्षण के लिए खुद को हिंदू बताता है, उसे SC दर्जा देना आरक्षण के उद्देश्य के खिलाफ है। यह संविधान के साथ धोखा है।

ईसाई महिला को एससी सर्टिफिकेट देने से इंकार

कोर्ट ने कहा कि यह मामला उस बड़े सवाल से जुड़ा है जिसमें SC/ST आरक्षण में धर्म को आधार बनाने की संवैधानिकता पर सुनवाई चल रही है। इसमें ईसाई और मुस्लिम दलितों के लिए आरक्षण की मांग की गई है। 1950 के राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार सिर्फ हिंदुओं को ही SC का दर्जा मिल सकता है। आरक्षण के लिए सिख और बौद्धों को भी हिंदू माना जाता है। 2007 में जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग ने दलित ईसाइयों और मुसलमानों को SC आरक्षण देने की सिफारिश की थी।

जस्टिस महादेवन ने क्या कहा

जस्टिस महादेवन ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। आर्टिकल 25 के तहत हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म मानने का अधिकार है। कोई व्यक्ति दूसरे धर्म में तब जाता है जब वह उसके सिद्धांतों और विचारों से प्रभावित होता है लेकिन अगर धर्म परिवर्तन का मकसद सिर्फ आरक्षण का लाभ लेना है तो इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसे लोगों को आरक्षण देना, आरक्षण की नीति के सामाजिक उद्देश्य को विफल करेगा।

क्या है महिला याचिकाकर्ता से जुड़ा मामला

याचिकाकर्ता सी. सेल्वरानी ने मद्रास हाई कोर्ट के 24 जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी। सेल्वरानी का कहना था कि वह हिंदू धर्म मानती है और वल्लुवन जाति से है, जो 1964 के संविधान (पुडुचेरी) अनुसूचित जाति आदेश के तहत आती है। इसलिए, वह आदि द्रविड़ कोटे के तहत आरक्षण की हकदार है। सेल्वरानी ने दलील दी कि जन्म से ही वह हिंदू धर्म मानती है और मंदिरों में जाती है, हिंदू देवी-देवताओं की पूजा करती है।

ईसाई महिला के दावे में किन बातों का जिक्र

महिला ने कोर्ट में कई दस्तावेजों के जरिए यह साबित करने की कोशिश की कि वह एक हिंदू पिता और ईसाई मां से पैदा हुई थी। शादी के बाद उसकी मां ने भी हिंदू धर्म अपना लिया था। उसके दादा-दादी और परदादा-परदादी वल्लुवन जाति के थे। उसने यह भी दावा किया कि अपने पूरे शैक्षणिक जीवन में उसे SC समुदाय का माना गया। उसके ट्रांसफर सर्टिफिकेट भी उसकी जाति की पुष्टि करते हैं। उसके पिता और भाई के पास एससी सर्टिफिकेट हैं।

बेंच ने मामले से जुड़े तथ्यों का किया जिक्र

हालांकि, बेंच ने मामले के तथ्यों का अध्ययन करने के बाद कहा कि ग्राम प्रशासनिक अधिकारी की रिपोर्ट और दस्तावेजी सबूतों से साफ है कि उसके पिता एससी समुदाय से थे और मां ईसाई थीं। उनकी शादी ईसाई रीति-रिवाजों से हुई थी। इसके बाद सेल्वरानी के पिता ने बपतिस्मा लेकर ईसाई धर्म अपना लिया। उसके भाई का बपतिस्मा 7 मई, 1989 को हुआ। सेल्वरानी का जन्म 22 नवंबर 1990 को हुआ और उसका बपतिस्मा 6 जनवरी 1991 को विलियनूर, पुडुचेरी के लूर्डेस श्राइन में हुआ इसलिए यह स्पष्ट है कि सेल्वरानी जन्म से ईसाई थी और वह एससी सर्टिफिकेट के लिए हकदार नहीं है।

इसलिए खारिज की गई महिला की याचिका

बेंच ने कहा कि अगर सेल्वरानी और उसका परिवार सचमुच धर्म परिवर्तन करना चाहता था तो उन्हें हिंदू धर्म मानने का सिर्फ दावा करने के बजाय, इसे साबित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए थे। धर्म परिवर्तन का एक तरीका आर्य समाज के माध्यम से है। सार्वजनिक रूप से धर्म परिवर्तन की घोषणा भी की जा सकती थी। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने महिला की इस दलील को खारिज कर दिया कि उसका बपतिस्मा तब हुआ था जब वह तीन महीने से भी कम उम्र की थी।

कोई सबूत नहीं कि ईसाई महिला ने हिंदू धर्म अपनाया

कोर्ट ने कहा कि यह दलील हमें सही नहीं लगती क्योंकि उसने बपतिस्मा के रजिस्ट्रेशन को रद्द करने का कोई प्रयास नहीं किया और न ही इस संबंध में कोई मुकदमा दायर किया। कोर्ट ने कहा कि जांच से पता चला है कि उसके माता-पिता की शादी भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 के तहत हुई थी। सेल्वरानी और उसके भाई का बपतिस्मा हुआ था और वे नियमित रूप से चर्च जाते थे। ऐसा कोई सबूत नहीं है कि उन्होंने फिर से हिंदू धर्म अपना लिया है। उल्टा, तथ्य यह है कि वे अभी भी ईसाई धर्म का पालन करते हैं।


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