यूरोप में एक देश है आइसलैंड। दुनिया के सबसे कम आबादी वाले इलाकों में से एक। यहां हर तरफ बर्फ की चादर फैली रहती है। मिड-एटलांटिक रिज में इसकी लोकेशन ऐसी है कि यहां बहुत सारे सक्रिय ज्वालामुखी है। पूरे आइलैंड पर 30 एक्टिव वॉल्केनो सिस्टम हैं। इन्हीं में से एक है रेकेजेनस। भूगोल की नजर में ये प्रायद्वीप है क्योंकि समुद्र से घिरा है। यहां की धरती के नीचे ऐसा ज्वालामुखी सिस्टम है जो लगभग 1000 साल में एक्टिवेट होता है। साइंटिस्ट्स ने कहा है कि वह समय नजदीक है जब यहां के ज्वालामुखी लावा उगलेंगे।
300 साल तक नहीं संभल पाएगी जिंदगी
रेकेजेनस आखिरी बार 10वीं सदी में सक्रिय हुआ था। तब लगातार 300 साल तक यहां विस्फोट होते रहे और उबलता हुआ लावा बाहर निकलता रहा। अब साइंटिस्ट कह रहे हैं कि करीब 800 साल शांत रहने के बाद यह इलाका जाग रहा है। अगर इस प्रायद्वीप के ज्वालामुखी फटे तो धरती में करीब 8 किलोमीटर तक की दरार पड़ सकती है। आखिर बार जब इन ज्वालामुखियों ने लावा उगला था तब 50 वर्ग किलोमीटर का एरिया चपेट में आया था।
क्या है खतरा?
इतने बड़े पैमाने पर ज्वालामुखी फूटेंगे तो आसपास की जिंदगी तबाह हो जाएगी। पास में ग्रिंडाविक इलाका है, अगर लावा उसकी तरफ बढ़ा तो खतरा है। वहां पर एक जियोथर्मल पावर प्लांट भी है। वाटर सप्लाई तो प्रभावित होगी। बहुत सारी सड़कें बंद हो जाएंगी। आइसलैंड का एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट केफ्लेविक इस जगह से केवल 15 किलोमीटर दूर है। अगर ज्वालामुखी से लावा निकलता है तो फ्लाइट्स बंद होने का खतरा है।
आइसलैंड आने-जाने वाली हर इंटरनेशनल फ्लाइट केफ्लेविक से होकर जाती है। आइसलैंडिक जियो सर्वे के मुताबिक जैसा 800 साल पहले हुआ था वैसा ही हुआ तो एयरपोर्ट के रनवे पर दो सेंटीमीटर तक राख भर जाएगी। इससे सारी उड़ानें रुक जाएंगी।
2010 में यूरोप में बरपा था कहर
करीब एक दशक पहले, आइसलैंड के ही Eyjafjallajökull में अचाानक से ज्वालामुखी फटा। करीब तीन हजार भूकंप रिकॉर्ड किए गए। राख इतनी उड़ी कि यूरोप में करीब एक महीने तक एयर ट्रेवल नहीं हो पाया था। तब तीन महीने तक लावा निकलता रहा था। हालांकि रेकेजेनस 300 साल तक आग उगल सकता है, ऐसे में खतरा पूरे यूरोप पर है।
-एजेंसियां
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