सुप्रीम कोर्ट में विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर अब 31 अक्टूबर को सुनवाई होगी. शीर्ष न्यायालय ने सोमवार को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस मामले में केंद्र से जवाब मांगा है.
220 से अधिक याचिकायें हैं लंबित
उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार प्रधान न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए 220 याचिकाएं सूचीबद्ध हैं, जिनमें सीएए के खिलाफ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) की प्रमुख याचिका भी शामिल है.
2019 में हुई थी पहली बार सुनवाई
विवादास्पद नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ याचिका में सबसे पहले 18 दिसंबर 2019 को सुनवाई हुई थी जबकि इस मामले में आखिरी बार 15 जून 2021 को सुनवाई हुई थी.
क्या है मामला
दरअसल, संशोधित कानून में 31 दिसंबर 2014 को या फिर उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के गैर-मुस्लिम प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब दाखिल करने को कहा था. हालांकि, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए लागू प्रतिबंधों के कारण यह मामला सुनवाई के लिए नहीं आ सका क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में वकील और वादी शामिल थे.
याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए न्यायालय ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से नागरिकों को कानून के बारे में जागरूक करने के लिए ऑडियो-विजुअल माध्यम का सहारा लेने पर विचार करने का निर्देश दिया था.
12 दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक-2019 पर राष्ट्रपति कोविंद ने किए थे हस्ताक्षर
शीर्ष अदालत ने कहा था, हम इस पर रोक नहीं लगाने जा रहे हैं. सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा है कि यह कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को धर्म के आधार पर नागरिकता देने का इरादा रखता है. संसद की मंजूरी के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर 2019 को नागरिकता (संशोधन) विधेयक-2019 पर दस्तखत कर उसे कानून की शक्ल दे दी थी.
-एजेंसी
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