आज हनुमान जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। कथा है कि कलयुग में एक ही जीवित देवता हैं हनुमान। चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी पर राम जन्मे, पूर्णिमा पर हनुमान। भगवान हनुमान से जो सीखना चाहिए, वो है निर्भय रहने की कला। हनुमान विश्वास के देवता हैं। विश्वास दोनों तरह से हो। परमात्मा पर भी, स्वयं पर भी। बाहर भी, भीतर भी। भरोसा ही एकमात्र चीज है जो सूर्य को मुंह में रख लेने से लेकर समुद्र लांघने तक के काम करवा लेता है।
इंसान के जीवन में तीन ही भाव होते हैं, पहला हर्ष, दूसरा शोक और तीसरा भय। हर्ष यानी खुशी, शोक यानी दुःख, भय का मतलब डर। डर ही सफलता के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट है। डर असफलता का भी होता है, सफलता को बरकरार रखने का भी, भय बाहरी भी होता है, भीतर का भी। डर कोई भी हो, ये हमें जिंदगी में आगे बढ़ने से रोकता है। भगवान हनुमान से सीखें कैसे अपने ऊपर डर को हावी होने से रोका जा सकता है।
हनुमानजी को भगवान शिव के 11वें अवतार माना जाता है। रामभक्त हनुमानजी के जन्म को लेकर दो तरह की धार्मिक मान्यताएं हैं। एक मान्यता के अनुसार हनुमानजी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को हुआ था, वहीं इसके अलावा कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भी हनुमान जयंती मनाई जाती है। चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है तो वहीं कार्तिक महीने में हनुमान जयंती के रूप में।
हिंदू कैलेंडर के अनुसार एक वर्ष में हनुमान जयंती का त्योहार दो बार मनाएं जाने की परंपरा है, दरअसल भगवान हनुमान का जन्मोत्सव एक बार ही मनाया जाता है जबकि दूसरी बार हनुमान जयंती को विजय दिवस के रूप मे मनाया जाता है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान हनुमान का जन्म कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर और स्वाति नक्षत्र में हुआ था। इस तरह से हनुमानजी का प्रगट्यपर्व यानी हनुमान जयंती कार्तिक माह की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। वहीं हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
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