नई दिल्ली। 21 अप्रैल को गुरु तेग बहादुर की जयंती मनाई जाती है. ये दिन उनकी शिक्षाओं और समाज के लिए उनके दिए अमूल्य सहयोग को याद कर मनाया जाता है. सिख धर्म में उनके बलिदान को बड़ी ही श्रद्धा से याद किया जाता है.
गुरु तेग बहादुर जी के अमर बलिदान का प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहब भी है. ये वही गुरुद्वारा है जहां औरंगजेब के आदेश पर उन्हें मृत्यु के घाट उतारा गया था. इसी स्थान से पर उनकी शहादत हुई और उनकी अंतिम विदाई भी यहीं से हुई थी. सिखों के 9वें गुरु तेग बहादुर को ‘हिंद की चादर कहा जाता है’
गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे.माना जाता है कि उनकी शहादत दुनिया में मानव अधिकारियों के लिए पहली शहादत थी, इसलिए उन्हें सम्मान के साथ ‘हिंद की चादर’ कहा जाता है. धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर ने 20 सालों तक साधना की थी. उन्होंने गुरु नानक के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश में कई लंबी यात्राएं की.
गुरु ने औरंगजेब से लिया था लोहा
जब औरंगजेब मुगल सम्राट था तब लोगों को अपना धर्म बदलने के लिए मजबूर किया गया था.कई कश्मीरी पंडित इसका शिकार हुए तब सहायता के लिए लोगों ने गुरु तेग बहादुर जी की ओर रुख किया. गुरु तेग बहादुर कश्मीर में हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाने के सख्त विरोधी थे. औरंगजेब को यह कतई मंजूर नहीं था कि कोई उसके हुक्म की नाफरमानी करे. गुरु तेग बहादुर ने खुद भी इस्लाम कबूलने से मना कर दिया था. तभी उसने 24 नवंबर 1675 में दिल्ली के लाल किले के सामने चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर सिर कलम करवा दिया था.
गुरु तेग बहादुर के बारे में खास बातें
गुरु तेग बहादुर का नाम त्याग मल था. गुरु तेग बहादुर नाम उन्हें गुरु हरगोबिंद जी ने दिया था. तेग बहादुर के भाई बुद्ध ने उन्हें तीरंदाजी और घुड़सवारी में प्रशिक्षित किया था. गुरु तेग बहादुर को गुरु नानकदेव की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए बड़े पैमाने पर यात्रा करने के लिए भी जाना जाता है.
– एजेंसी
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