PhD शोधार्थियों के लिए राहत की खबर है कि अब उन्हें अपनी थीसिस का रिसर्च पेपर प्रकाशित करवाना अनिवार्य नहीं होगा। अब तक पीएचडी शोधार्थियों को थीसिस किसी भी जर्नल में छपवाना अनिवार्य रहता था लेकिन आगामी सत्र से दाखिले लेने वाले छात्रों को नए नियम के तहत छूट मिलेगी। इसके अलावा छात्र अपनी रिसर्च का पेटेंट भी करवा सकेंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत यूजीसी ने चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम को लागू करने की मंजूरी दी है। इसी के तहत अब चार वर्षीय स्नातक डिग्री प्रोग्राम में 7.5 सीजीपीए लेने वाले छात्र सीधे पीएचडी में दाखिले ले सकेंगे। शैक्षणिक सत्र 2022-23 से विश्वविद्यालयों, सीएसआईआर, आईसीएमआर, आईसीएआर आदि में इन्हीं नियमों के तहत पीएचडी दाखिले होंगे। पीएचडी दाखिले के लिए 70 अंकों का लिखित और 30 का इंटरव्यू होगा। पीएचडी प्रोग्राम में कम से कम 12 और अधिक से अधिक 16 क्रेडिट होने अनिवार्य रहेंगे।
विश्वविद्यालयों में वर्तमान में जारी व्यवस्था यानी तीन साल स्नातक और दो साल का पीजी करने वाले छात्र भी पीएचडी में दाखिला ले सकेंगे। उन्हें पीएचडी में दाखिले के लिए विश्वविद्यालयों या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए पीजी प्रोग्राम में 50 या 55 फीसदी अंक (विश्वविद्यालयों के मानदंड के आधार पर) होने अनिवार्य हैं। वहीं, चार वर्षीय स्नातक और एक साल का पीजी प्रोग्राम की पढ़ाई करने वाले छात्र भी पीएचडी में दाखिले ले सकते हैं। इन्हें भी पीएचडी दाखिले के लिए विश्वविद्यालयों या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में भाग लेने के लिए पीजी प्रोग्राम में 50 या 55 फीसदी अंक (विश्वविद्यालयों के मानदंड के आधार पर) होने अनिवार्य है। इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत चार वर्षीय डिग्री प्रोग्राम के तहत रिसर्च या ऑनर्स प्रोग्राम के छात्र सीधे पीएचडी में दाखिले ले सकेंगे लेकिन पीएचडी के लिए विश्वविद्यालयों की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा में शामिल होने के लिए सीजीपीए 7.5 से अधिक होना जरूरी होगा।
विश्वविद्यालयों की कुल पीएचडी सीटों में से 60 फीसदी सीट नेट या जेआरएफ क्वालीफाई छात्रों के लिए आरक्षित रहेंगी जबकि विश्वविद्यालय अपनी 40 फीसदी सीटों पर अपनी या एनटीए द्वारा आयोजित होने वाली संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा की मेरिट से दाखिला दे सकेंगे। इसके अलावा यदि कुछ 60 फीसदी सीटों के लिए योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं तो फिर विश्वविद्यालय खाली सीटों को 40 फीसदी ओपन सीटों से जोड़ सकेंगे। यानी वे इन खाली सीटों पर विश्वविद्यालय या एनटीए की संयुक्त दाखिला प्रवेश परीक्षा की मेरिट से सीट आवंटन कर सकेंगे। इस पर अभी विशेषज्ञ कमेटी में मंथन चल रहा है।
छह साल में पूरी करनी होगी पीएचडी
पीएचडी छह साल में पूरी करनी होगी। कोई भी संस्थान दो साल से अधिक अतिरिक्त समय नहीं देगा। वहीं, महिला उम्मीदवारों और दिव्यांगजनों (40 फीसदी से अधिक) को छह साल के अलावा दो साल अतिरिक्त समय मिलेगा। महिला उम्मीदवार को पीएचडी कार्यकाल में मैटरनिटी लीव, चाइल्ड केयर लीव के तहत 240 दिनों का अवकाश मिल सकता है। एमफिल प्रोग्राम समाप्त हो गया है। जिन छात्रों ने एमफिल प्रोग्राम में अपना कोर्स वर्क पूरा कर लिया है, वे इंटिग्रेटिड एमफिल-पीएचडी में दाखिले ले सकते हैं।
वाइवा के लिए ऑनलाइन का विकल्प
कोरोना काल में पीएचडी वाइवा ऑनलाइन शुरू किया गया था, लेकिन अब इस नियम को भविष्य में लागू रखा जाएगा। इसका मकसद छात्र और विश्वविद्यालय के समय और आर्थिक बचत करना है। इसमें पहले ऑनलाइन वाइवा देना होगा। यदि छात्र को किसी प्रकार की दिक्कत हो तो वाइवा ऑफलाइन दिया जा सकता है।
दो संस्थान मिलकर भी करवा सकेंगे पीएचडी
नए नियमों में दो कॉलेज मिलकर अब डिग्री प्रोग्राम की पढ़ाई करवा सकते हैं। इसके लिए दोनों संस्थानों को समझौता करना होगा। इसमें कमेटी तय करेगी कि रिसर्च एरिया और सुपरवाइजर (गाइड) और को-सुपरवाइजर(दो गाइड) मिलकर कैसे पीएचडी करवाएंगे। इसमें कोई भी सुपरवाइजर तय नियमों के तहत ही पीएचडी स्कॉलर्स रख सकेगा।
नियमित, एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर गाइड बन सकेंग
नए रेग्युलेशन के तहत कोई भी फुल टाइम रेगुलर प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर पीएचडी करवा सकेंगे। प्रोफेसर और एसोसिएट प्रोफेसर को पीएचडी करवाने के लिए कम से कम पांच रिसर्च प्रकाशित होनी जरूरी होंगी। जबकि सहायक प्रोफेसर के लिए पांच साल तक टीचिंग, रिसर्च अनुभव के साथ तीन रिसर्च प्रकाशित होनी जरूरी रहेंगी। नए नियम में प्रोफेसर आठ से अधिक, एसोसिएट प्रोफेसर कम से कम छह और असिस्टेंट प्रोफेसर कम से कम चार पीएचडी स्कॉलर्स रख सकता है। इसके अलावा विदेशी पीएचडी स्कॉलर्स मिलने पर दो स्कॉलर्स सुपर न्यूमेरी सीट के तहत रखे जा सकते हैं।
-एजेंसी
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