गोविंद भवन ट्रस्ट की गीताप्रेस 100 साल की हो चुकी है। साल 1923 में किराए की एक दुकान ये शुरू हुई इस प्रेस की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। मात्र 1 रुपये में लोगों तक गीता उपलब्ध करवाने वाली गीताप्रेस ने कई उतार-चढ़ाव देखे। आज ये प्रेस सिर्फ एक प्रिटिंग प्रेस नहीं, बल्कि जनभावना बन चुकी है। चुरू, राजस्थान के रहने वाले जयदयाल गोयनका कारोबारी घराने से ताल्लुक रखते थे। जयदयाल गोयनका ने 29 अप्रैल 1923 को गोरखपुर के हिंदी बाजार में 10 रुपये किराए के मकान में प्रेस की शुरुआत की। इसका नाम गीताप्रेस रखा गया। प्रेस में गीता ग्रंथ की छपाई होती थी।
पुरस्कार स्वीकार, लेकिन पैसे लेने से इंकार
गोविंद भवन ट्रस्ट की गीताप्रेस को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिया जाएगा। संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली जूरी ने अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए गीता प्रेस को इस पुरस्कार के लिए चुना है। पुरस्कार में एक करोड़ रुपये, प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका दी जाएगी। सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी गीता प्रेस को बधाई दी है। स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर मिला यह पुरस्कार गीता प्रेस के धार्मिक साहित्य को नई उड़ान देगा।
इसके बाद से ही सवाल उठने लगा था कि क्या इस पुरस्कार को गीता प्रेस संस्था स्वीकार करेगी। दरअसल, अब तक गीता प्रेस ने कभी भी कोई पुरस्कार स्वीकार नहीं किया था। संस्कृति मंत्रालय की ओर से हुए ऐलान के बाद संस्था का पक्ष सामने आया है। संस्था की ओर से साफ किया गया है कि उनकी ओर से गांधी शांति पुरस्कार को स्वीकार किया जाएगा। हालांकि, संस्था ने इसके साथ मिलने वाली धनराशि को लेने से इंकार कर दिया है। गांधी शांति पुरस्कार विजेता को पुरस्कार के साथ एक करोड़ की राशि भी दी जाती है।
इस संबंध में गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने कहा कि अभी तक कोई सम्मान स्वीकार न करने की परंपरा रही है। इस बार निर्णय लिया गया है कि हम सम्मान स्वीकार करेंगे।
लालमणि तिवारी ने साफ किया कि पुरस्कार के साथ मिलने वाली राशि स्वीकार नहीं की जाएगी। गीता प्रेस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर पुरस्कार मिलने पर उन्होंने खुशी जताई। प्रबंधक ने कहा कि सनातन संस्कृति का सम्मान हुआ है। इस सम्मान के लिए भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय, पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ का बोर्ड की बैठक में आभार भी जताया गया। उन्होंने कहा कि यह सम्मान हमें अभिभूत कर रहा है। हम निरंतर ही इस प्रकार का काम करते रहेंगे।
क्वालिटी और कीमत से किया हैरान
क्वालिटी और कीमत से बड़े-बड़े प्रबंधकों को हैरान करने वाली गीता प्रेस की कहानी बेहद दिलचस्प है। देश के स्वतंत्रमा आंदोलन के दौरान साल 1923 में अपनी शुरुआत से लेकर आज तक गोरखपुर का गीता प्रेस हिंदू धार्मिक साहित्य का सबसे बड़ा प्रकाशक बना हुआ है। इससे लगातार खुद को अपडेट करते हुए आज जर्मन और जापानी हाईटेक मशीनों पर रोजाना 16 भाषाओं में 1800 कितानों की 50 हजार प्रतियां छापने तक का शानदार सफर तय किया है। ये प्रिटिंग प्रेस केवल भारत नहीं बल्कि दुनियाभर में मशहूर है।
ट्रस्ट के तौर पर होता है काम
गीता प्रेस एक ट्रस्ट के तौर पर काम करता है। उसका लक्ष्य मुनाफा कमाना नहीं है। लोगों को कम कीमत पर धार्मिक पुस्तकें उपलब्ध करवाना है। गीताप्रेस में छपी पहली पुस्तक की कीमत 1 रुपये थी। साल 1926 में गीता प्रेस ने मासिक पत्रिका निकालने का फैसला किया। पत्रिका में महात्मा गांधी ने भी अपना लेख लिखा। हालांकि गांधी जी ने इस लेख के लिए बस एक शर्त रखी। उन्होंने कहा कि इस पत्रिका में कोई विज्ञापन न छापा जाए। उनकी बात को मानते हुए गीताप्रेस ने विज्ञापन ना छापने का फैसला किया।
Compiled: up18 News
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