देश के पूर्व चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने रविवार को कहा कि वे सरकारी नियुक्ति को स्वीकार करने के विचार के खिलाफ नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि वे राज्यसभा या गवर्नर पद को स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि यह डिमोशन नहीं है, लेकिन चीफ जस्टिस के स्टेटस के हिसाब से उचित भी नहीं है। वहीं, उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम को बिल्कुल सही और संतुलित प्रक्रिया बताया।
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई जैसे न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पोस्टिंग स्वीकार करने से जुड़े एक सवाल पर यूयू ललित ने कहा, “मेरे विचार से देश के मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद धारण करने के बाद शायद मुझे लगता है कि राज्यसभा के नामित सदस्य या किसी राज्य के राज्यपाल का पद सही विचार नहीं है।”
एनडीटीवी से बात करते हुए जस्टिस ललित ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख, लोकपाल और विधि आयोग के प्रमुख का जिक्र नौकरियों के रूप में किया और कहा कि अगर उनसे पूछा जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।
उन्होंने साफ किया कि राज्य सभा एक पूरी तरह से अलग बात है। मेरे कहने का मतलब यह है कि NHRC के अध्यक्ष जैसे स्थान, जहां भी कोई कानून है जिसे संसद ने पारित किया है, और संसद ने उस व्यक्ति को अपेक्षित अनुभव के साथ निर्धारित किया होता है।”
पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह विभिन्न स्तरों पर कुछ कानून से जुड़ी टीचिंग करना पसंद करेंगे। उन्होंने कहा, “हो सकता है कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी या फिर कुछ लॉ स्कूलों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में जाऊं।”
कॉलेजियम सिस्टम पर क्या बोले पूर्व CJI
इसके अलावा, पूर्व मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम न्यायाधीशों की नियुक्ति का एक बिल्कुल सही और संतुलित तरीका है। मालूम हो कि केंद्रीय कानून मंत्री रिजिजू ने सिस्टम को अपारदर्शी कहा था।
उन्होंने अपनी सेवानिवृत्ति के कुछ दिनों बाद एक विशेष साक्षात्कार में कहा, “ये (अपारदर्शी, जवाबदेह) उनके व्यक्तिगत विचार हैं… यह चीजों को करने का एक बिल्कुल सही और संतुलित तरीका है।” जस्टिस ललित ने कहा कि जजों की नियुक्ति को कॉलेजियम सरकार समेत कई स्तरों की समीक्षा के बाद ही मंजूरी देता है। उन्होंने इन नियुक्तियों की गति के बारे में भी बताया, जो देश की विभिन्न अदालतों में मामलों के विशाल बैकलॉग को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।
-एजेंसी
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