दुनिया की प्रसिद्ध तीन साइंस फिक्शन पत्रिकाओं- क्लार्क्स वर्ल्ड, द मैग्जीन ऑफ फेंटेसी एंड साइंस और असिमोव साइंस फिक्शन के संपादकों ने बताया कि उनके पास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस चैटबॉट्स द्वारा बनाए गए कंटेंट की भीड़ लग गई है। क्लार्क्सवर्ल्ड के संपादक नील क्लार्क का कहना है, इतना अधिक कंटेंट आया है कि हमने उसे लेना बंद कर दिया है।
2006 से प्रकाशित हो रही मैग्जीन को आमतौर पर एक माह में 1100 लेख, रिपोर्ट मिलती हैं। इस बार दो सप्ताह में 700 वैध और 500 मशीन से लिखे कंटेंट आए हैं। ज्यादातर लेखन खराब है। कुछ लक्षणों से इनकी पहचान करना संभव है। असिमोव मैग्जीन की शीला विलियम्स बताती हैं, चैटबॉट से तैयार कई कहानियों का टाइटल एक जैसा-द लास्ट होप है। ये कहानियां स्पैम के समान हैं। इन्हें लेखकों द्वारा रचित विज्ञान कथा साहित्य से अलग पहचाना जा सकता है। सवालों का जवाब देने वाले चैटबॉट जीपीटी के आने पर सोचा जा रहा है कि इससे मौलिक लेखकों को नुकसान होगा।
अब तक हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के बारे में यूट्यूब चैनलों की बहस, साइंस फिक्शन फिल्मों और किताबों में ही सुनते आ रहे थे। वहीं चैटजीपीटी आने के बाद हमारा इसके साथ करीब से राब्ता हुआ है। कुछ हफ्तों में गूगल भी अपना एआई चेटबॉट बार्ड लॉन्च कर देगा, जो कि चैटजीपीटी के मुकाबले कहीं आगे की चीज है।
इन सब के बीच जो एक बड़ा सवाल उठ रहा है वह यह है कि क्या इंटेलिजेंस के मामले में ये मशीनें हमको पीछे कर सकती हैं? क्या सच में इन मशीनों में भी चेतना का निर्माण हो सकता है? क्योंकि चेतना ही एक ऐसी चीज है, जो हमको मशीनों से अलग करती है। हम भावनाओं और चीजों को महसूस करते हैं। क्या कल को कोई मशीन भी ऐसा कर सकेगी? इसका उत्तर देना काफी कठिन है। इन सवालों पर पिछले कई दशकों से बहस चली आ रही है। इस संदर्भ को समझने के लिए आपको एलन टूरिंग के बारे में जानना बहुत जरूरी है।
-एजेंसी
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