भारत में जन्मे ब्रितानी उपन्यासकार सलमान रुश्दी की किताब ‘द सैटेनिक वर्सेज़’ सितंबर 1988 में प्रकाशित हुई. इस किताब ने उनकी ज़िंदगी को ख़तरे में डाल दिया. मुसलमानों के एक समूह ने इस अतियथार्थवादी, उत्तर आधुनिक उपन्यास को ईशनिंदा माना और इसके ख़िलाफ़ व्यापक प्रदर्शन किए.
भारत पहला देश था जिसने इस उपन्यास को प्रतिबंधित किया. किताब प्रकाशन के एक महीने के भीतर ही भारत में प्रतिबंधित हो गई थी. तब भारत में राजीव गांधी की सरकार थी.
किताब के आयात पर तो प्रतिबंध था लेकिन इसे रखना अपराध नहीं था. इसके बाद पाकिस्तान और कई अन्य इस्लामी देशों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया. दक्षिण अफ़्रीका में भी इस पर प्रतिबंध लगा.
हालांकि कई वर्गों में इस उपन्यास की तारीफ़ हुई और इसे व्हाइटब्रेड पुरस्कार भी दिया गया लेकिन किताब के प्रति विरोध बढ़ता गया और दो महीने बाद ही इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर प्रदर्शन शुरू हो गए.
मुसलमान इस उपन्यास को इस्लाम का अपमान मान रहे थे. मुसलमानों का विरोध कई चीज़ों को लेकर था, लेकिन दो वैश्या किरदारों को लेकर ख़ासकर विरोध हुआ. इनका नाम पैग़ंबर मोहम्मद की दो पत्नियों के नाम पर था.
जनवरी 1989 में ब्रैडफर्ड के मुसलमानों ने किताब की कॉपियां जला दीं. किताब बेचने वाले न्यूज़एजेंट डब्ल्यूएच स्मिथ ने किताब का प्रकाशन करना बंद कर दिया. इसी दौरान रूश्दी ने ईशनिंदा के सभी आरोपों को ख़ारिज किया.
मुंबई में दंगों में मारे गए 12 लोग
फ़रवरी 1989 में रुश्दी के ख़िलाफ़ मुंबई में मुसलमानों ने बड़ा विरोध प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन पर पुलिस की गोलीबारी में 12 लोग मारे गए और 40 से अधिक घायल हो गए थे.
मुसलमान मुंबई में ब्रिटेन के राजनयिक मिशन के बाहर प्रदर्शन करना चाहते थे. पुलिस ने बैरिकेड लगाकर उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था. जब प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड तोड़कर आगे बढ़ने की कोशिश की तो पुलिस ने गोली चला दी. इस दौरान जमकर हिंसा हुई थी. हिंसक भीड़ ने भी पुलिस पर हमला किया था और वाहनों और पुलिस स्टेशन को आग लगा दी थी.
फ़रवरी 1989 में ही कश्मीर में द सैटेनिक वर्सेज़ के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों और पुलिस के बीच झड़प में भी तीन लोग मारे गए थे. पुलिस के साथ इस हिंसक झड़प में सौ से अधिक लोग घायल भी हुए थे.
वहीं पाकिस्तान के इस्लामाबाद में अमेरिकी इंफोरेशन सेंटर के बाहर प्रदर्शन कर रही भीड़ और पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प में 6 लोग मारे गए थे और 83 घायल हुए थे. ये भीड़ अमेरिका में किताब पर प्रतिबंध की मांग कर रही थी.
1989 में जब ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह ख़मेनई ने रुश्दी की हत्या का आह्वान किया था तब दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अब्दुल्लाह बुख़ारी ने भी उनका समर्थन करते हुए रूश्दी की हत्या का आह्वान किया था.
-एजेंसी