गुलजार साहब किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उनके कविताएं और गाने आज भी लोगों को याद हैं।
बेहद कम लोगों में कम शब्दो में अपनी बात को कहने की कला होती है, जो ऐसा कर दिखाए दुनिया उसे शायर, गीतकार, कवि का नाम दे देते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं जिनका नाम गुलजार है। गुलजार साहब वह व्यक्ति हैं जो कम शब्दों में अपनी बात कहते हैं। उनके द्वारा बोले गए शब्द दिल को ऐसे छू जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे उन्होनें हमारे मन की बात कह दी हो। उन्होनें हर बार यह साबित किया है कि वह किसी से कम नहीं है। इसलिए लोग उनका नाम बेहद अदबों से लेते हैं। हिंदी फिल्मों में उनके द्वारा लिखे गए गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं. वह केवल एक बेहतरीन गीतकार ही नहीं बल्कि कवि भी हैं। क्या आप जानती हैं कि गुलजार साहब का असली नाम क्या है। आखिर क्यों उन्होनें अपना नाम बदला। चलिए विस्तार से जानते हैं उनके जीवन के बारे में।
18 अगस्त 1934 के दिन गुलजार साहब का जन्म हुआ था। वह बंटवारे के बाद अपने परिवार समेत अमृतसर बस गए थे। गुलजार साहब पढ़ना चाहते थे, जिसके लिए वह दिल्ली पहुंच गए। जब उनकी पढ़ाई पूरी हुई तब वह कमाने के लिए सपनों की नगरी मुंबई चले गए। हालांकि, उनका शुरूआती सफर काफी मुश्किल था। अपने शुरुआती दिनों में उन्होनें गैराज में काम किया। वह प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन के सदस्य बन गए थे।
इस तरह मिला पहला ब्रेक
1963 में आई फिल्म बंदिनी गुलजार साहब के लिए अच्छी साबित हुई। उन्होनें इस फिल्म के लिए एक गाना लिखा था। ‘द अनुपम खेर शो’ में उन्होनें बताया था कि उन्हें यह गाना कैसे मिला। बिमल रॉय उस समय के बेहतरीन डायरेक्टर्स में से एक थे। वह फिल्म बंदिनी बना रहे थे।
इस फिल्म के गानों के लिए उन्होनें सचिन देव बर्मन को चुना था। एसडी बर्मन ज्यादातर फिल्मों के गाने शैलेन्द्र से लिखवाते थे। लेकिन कहते हैं न किस्तम को कुछ और ही मंजूर था। लेकिन दोनों काफी समय से एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे। इस वजह से शैलेन्द्र ने गाने लिखने के लिए हामी नहीं भरी।
बिमल रॉय के असिस्टेंट देबू सेन की गुलजार साहब से दोस्ती थी। वह जानते थे कि गुलजार को लिखने का शौक है। ऐसे में उन्होनें गुलजार साहब को सलाह दी कि वह बिमल रॉय से एक बार मिल लें। लेकिन उन्होनें मिलने से इंकार कर दिया। जब यह बात शैलेंद्र को पता चली तो उन्होनें गुलजार को फटकार लगाई और कहा कि तुम जानते हो कि लोग बिमल दा से मिलने के लिए कितना इंतजार करते हैं और तुम हो कि उनसे मिलने के लिए मना कर रहे हो। तुम्हें क्या लगता है कि केवल तुम्हें ही सब कुछ पता है। शैलेंद्र की डांट सुनकर गुलजार साहब मान गए और बिमल रॉय से मिलने के लिए चले गए।
बता दें कि गुलजार साहब उस समय सफेद कुर्ता पजामा पहना कर थे। जब बिमल राय ने उन्हें देखा तो इस पर उन्होनें देबू से कहा ‘ए देबू, ए भद्रलोके की कोरे जान्बे के बेश्नों कबिता टा की।’ इस पर देबू ने जवाब दिया कि दादा इन्हें बंगाली पढ़नी, लिखनी और बोलनी भी आती है।
ये है गुलज़ार साब का असली नाम
फिल्म लाइन में काम करने से पहले ही गुलजार साहब ने अपना नाम बदल दिया था। उनका असली नाम सम्पूर्ण सिंह कालरा है। बता दें कि गुलजार का अर्थ गुलाब का बाग होता है।
-साभार सोशल मिडिया
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