अर्थव्यवस्था शैने-शैने हो रहा जीरो, धर्म की बांसुरी बजा रहा फकीरा नीरो

अन्तर्द्वन्द

उद्योगपतियों का माफ होता अरबों का ऋण, अंधाधुंध निर्यात की ज़िद,अर्थव्यवस्था के लिये जहर

देश का व्यापार घाटा 2021-22 में 87.5 फीसदी बढ़कर 192.41 अरब डॉलर

धर्म के नशे में डूबे लोगों को आर्थिक तंगी से मरते लोग नहीं दिखाई दे रहे

आभा शुक्ला
आभा शुक्ला

भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 40 बेसिस प्वाइंट्स की बढ़ोतरी का एलान किया है. अब रेपो रेट 4% से बढ़कर 4.40% हो गया है…साथ ही रिजर्व बैंक की एमपीसी ने रेपो रेट के साथ ही कैश रिजर्व रेशियो (CRR) को भी 0.50 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया.इससे अब आपका घर और कार का सपना और महंगा हो गया है.हालांकि मुझे इस कदम से भी महंगाई नियंत्रित होती दिखाई नहीं दे रही.

आरबीआई ऐसा कोई निर्णय लेगी इसकी आशंका मुझे बीते छह महीने से थी.पर आरबीआई गवर्नर दास ने चंद दिनों पहले एमपीसी की बैठक के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि सेंट्रल बैंक के लिए महंगाई कोई चिंता की बात नहीं है.उन्होंने कहा था कि सेंट्रल बैंक के लिए इकोनॉमिक ग्रोथ प्रॉयरिटी है और इसी कारण ब्याज दरों को निचले स्तर पर बरकरार रखा गया है.फिर ऐसा क्या हुआ जो आरबीआई का विचार एक महीने में बदल गया.आरबीआई गवर्नर ने आनन फानन में मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुलाई और उन्होंने बेकाबू महंगाई का हवाला देते हुए रेपो रेट बढ़ाने की जानकारी दी.महीने भर पहले तक महंगाई की कोई चिंता नहीं, महीने भर बाद बेकाबू महंगाई का रोना, यानि कि महीने भर जनता को झूठा दिलासा झूठी तसल्ली दी थी गवर्नर साहब ने.

क्या आप जानते हैं कि देश का व्यापार घाटा 2021-22 में 87.5 फीसदी बढ़कर 192.41 अरब डॉलर रहा है. इससे पूर्व वित्त वर्ष में यह 102.63 अरब डॉलर था.ये जो भागते नीरज मोदी , मेहुल चौकसी हैं न, ये जो उद्योगपतियों का माफ होता अरबों का ऋण है न.. ये जो अंधाधुंध निर्यात की ज़िद है न, असल में ये जहर है हमारी इकोनॉमी के लिए.. जिसपर कि कभी कोई बात नही होती. देश में अधिकतम पूंजी कुछ चंद लोगों के हाथ में है.गरीब आदमी तो बस कहने को जी रहा है.अर्थव्यवस्था पर जनसंख्या का भारी दबाव है, इसके बाद भी हमारे गृहमंत्री जी सीएए के संदर्भ में बयान देते रहते हैं… धर्म का नशा लोगों पर ऐसा चढ़ा है कि वो चाहते हैं कि सीएए आए,और दूसरे देशों से हिंदू यहां लाए जाएं.

आखिर क्यों. हमारे संसाधन जब हमारे लिए ही पर्याप्त नहीं हैं तो एक अच्छी खासी भीड़ हम क्यों लाना चाहते हैं. और जितनी भीड़ हम लाना चाहते हैं क्या उसकी तुलना में हम रोजगार के अवसर पैदा कर पाएंगे… आपका घर का सपना जहां अब और महंगा हो गया है,ऐसे में दूसरों को घर दिलाने की जिम्मेदारी आप कहां से पूरी कर पाएंगे… रोज अखबार में दो चार आर्थिक तंगी से आत्महत्या की खबरें जरूर आती हैं… ऊपर से हमने धर्म के नशे में ऐसे लोगों को अर्थव्यवस्था की डोर सौंप दी है जिनको अर्थव्यवस्था का अ तक नही आता..भारतीय अर्थव्यवस्था बिना नाविक के नाव की भांति चल रही है.. जो सही रास्ते पर जाते हुए फिलहाल तो दिखाई नही दे रही है… पर हमको क्या.. हमें वोट तो पाकिस्तानी हिंदुओं की फिक्र करने , उन्हें वापस यहां बसाने के लिए करना है न.अपने लिए हमें वोट ही नही करना है.आखिर परोपकारी लोग हैं हम।

-up18 News


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