रामनगरी की चमक-दमक मुगल साम्राज्य से काफी पहले की है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अध्ययन के अनुसार, अयोध्या के अभी 3500 वर्षों की पौराणिक, धार्मिक और इतिहास की जानकारी मिल पाई है। अध्ययन आगे बढ़ा तो और भी पुरातन साक्ष्य मिलेंगे।
अयोध्या से जुड़े प्रमाण जिस समय के मिले हैं मुगलों को कोई अस्तित्व भी नहीं था। मुगल तो 1500 के बाद भारत आए थे। 1968 में जन्मभूमि के 500 मीटर के दायरे की खोदाई से जो साक्ष्य जुटाए गए थे, उसका नक्शा बीएचयू में सुरक्षित है। जिस कागज पर नक्शा बना है, उसे जापान से मंगवाया गया था। यह नक्शा अब प्रमाणित साबित हुआ है।
बीएचयू के प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग ने 56 वर्ष पहले किए गए अध्ययन और उससे मिले साक्ष्यों को सामने रखा है। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. ओंकारनाथ सिंह, डॉ. अशोक सिंह, डॉ. उमेश सिंह का कहना है कि पुरावशेषों को सहेजने के साथ ही इससे जुड़े शोध को रिसर्च पेपर में प्रकाशित किया जाएगा।
खोदाई में जो सामग्रियां मिली थीं, उनका दस्तावेजीकरण कराने के साथ ही फोटोग्राफी कराई जा रही है। जल्द ही इस अध्ययन को देशवासियों के सामने रखा जाएगा।
एएसआई ने भी लगाई मुहर
प्रो. ओंकारनाथ व डॉ. अशोक सिंह का कहना है कि पुरातत्वविद डॉ. बीबी लाल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के निर्देशन में खोदाई कराई, तो वही साक्ष्य सामने आए, जो बीएचयू के पुरातत्वविदों की खोदाई में मिले थे। इसमें विष्णु मंदिर होने की जानकारी भी मिली थी। मिट्टी के विशिष्ट बर्तन मिले थे। कहा जा सकता है कि इन बर्तनों का प्रयोग भी विशिष्ट लोग करते थे।
मिले थे काले चमकीले बर्तन
बीएचयू के प्राचीन इतिहास विभाग में शिक्षक रहे दिवंगत प्रो. एके नारायण, दिवंगत प्रो. पुरुषोत्तम सिंह और दिवंगत डॉ. त्रिभुवन नाथ राय ने 1968 में पहली बार अयोध्या में खोदाई कराई तो काले चमकीले बर्तन, मिट्टी के दूसरे बर्तन सहित अन्य पुरावशेष मिले थे। इनमें कनक भवन, सुग्रीव टीला के आसपास काम हुआ।
-एजेंसी
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