पहले कर्नाटक में अमूल से लिया था पंगा, अब केरल में नंदिनी की मिल्‍मा से भी ठनी

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नंदिनी कर्नाटक में सहकारी दूध उत्पादक समितियों के दूध ब्रांड का नाम है। ठीक वैसे ही जैसे गुजरात में अमूल, उत्तर प्रदेश में पराग, बिहार में सुधा, राजस्थान में सरस और केरल में मिल्मा आदि हैं।

कर्नाटक का सबसे बड़ा दूध उत्पाद ब्रांड नंदिनी है जो हर दिन 23 लाख लीटर से अधिक दूध की सप्लाई करता है। बेंगलुरू मार्केट में दूध की खपत की 70 प्रतिशत जरूरत को अकेले नंदिनी पूरा करता है। अमूल के मुकाबले नंदिनी के दूध की कीमतों में भी काफी अंतर है। नंदिनी के एक लीटर दूध की कीमत 39 रुपए है जबकि अमूल टोंड दूध के एक लीटर पैकेट की कीमत 54 रुपए है।

कर्नाटक चुनाव के दौरान दो डेयरी को-ऑपरेटिव अमूल और नंदिनी की लड़ाई में अब केरल की मिल्मा की एंट्री हो चुकी है. नंदिनी अपना धंधा बचाने के लिए अमूल से जिस पॉइंट पर लड़ रही है, वही बात केरल में उसका धंधा चौपट कर रही है।

अमूल से विवाद जारी ही था कि इसी बीच केरल के दूध उत्पाद ब्रांड मिल्मा से नंदिनी का विवाद शुरू हो गया। मिल्मा ने ठीक वही दलील दी जो नंदिनी ने अमूल के लिए दी थी।

राजनीति की बिसात पर कभी-कभी बड़ी कंपनियों की भी हालत खराब हो जाती है. अब कर्नाटक चुनाव के दौरान अमूल और नंदिनी का झगड़ा शुरु हुआ अमूल के बेंगलुरू मार्केट में एंट्री करने से। राज्य के लोगों ने इसे लोकल ब्रांड नंदिनी के लिए खतरा माना। सोशल मीडिया पर बॉयकॉट ट्रेंड से शुरू हुई बात राजनीतिक रैलियों तक जा पहुंची और अब इसमें केरल का मिल्मा ब्रांड भी कूद गया है।

हुआ यूं कि कर्नाटक मिल्क फेडेरेशन का ब्रांड नंदिनी कई पड़ोसी राज्यों में भी अपने प्रोडक्ट बेचती है। इनमें तमिलनाडु, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और केरल शामिल हैं। अब जब कंपनी ने केरल में अपने दो आउटलेट हाल में खोले, तो इस पर केरल को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन ने आपत्ति जताई है। केरल की फेडरेशन का अपना खुद का ब्रांड Milma है।

गुजरात वाले कर्नाटक में कैसे?

अमूल और नंदिनी के झगड़े का जब राजनीतिकरण हुआ, तब चुनावी माहौल में ये बात उठने लगी कि गुजरात वाले कर्नाटक में सेंधमारी करना चाहते हैं। चूंकि अमूल का संबंध गुजरात से है। वहीं राज्य में सत्ता बचाने की मेहनत कर रही भाजपा के दो बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का संबंध भी गुजरात से है. अमित शाह के पास सहकारिता मंत्रालय का भी प्रभार है।

अब कुछ इसी तरह की बात मिल्मा ने कही है. मिल्मा ने एक राज्य की मिल्क को-ओपरेटिव के दूसरे राज्य में अपना विस्तार करने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई है। केरल की मिल्क फेडरेशन का कहना है कि ये ‘सहकारी आंदोलन’ की भावना को ठेस पहुंचाने वाला कदम है जबकि सहकारिता ने ही देश में करोड़ो पशपालक किसानों को फायदा पहुंचाया है।

आइसक्रीम, घी से होती है एंट्री, फिर मिल्क मार्केट पर कब्जा

नंदिनी के केरल के बाजार में अपने आउटलेट खोलने को लेकर मिल्मा के चेयरमैन के.एस. मणि का कहना है कि ये तरीका ‘अनैतिक’ है। एक राज्य से दूसरे राज्य में मिल्क को-ओपरेटिव के सामान बेचने का एक तरीका है।

मिल्क को-ओपरेटिव पहले अपने वैल्यू एडेड सामान जैसे आइसक्रीम, मिठाई, घी इत्यादि की बिक्री किसी राज्य में शुरू करते हैं। फिर दूध बेचना भी शुरू कर देते हैं। इसके बाद लिक्विड मिल्क बेचना शुरू किया जाता है और इसके बाद गली-मुहल्लों की दुकान पर दूध की बिक्री शुरू कर दी जाती है।

– एजेंसी