राजा रवि वर्मा की बदौलत ही घर-घर पहुंचे थे देवी-देवताओं के च‍ित्र…

Cover Story

20वीं सदी में केवल राजा रवि वर्मा ही एकमात्र ऐसे भारतीय चित्रकार थे जिनको आयल पेंटिंग आती थी। उन आयल पेंटिंग से उन्होंने भारतीय देवी देवताओं को उभारा जो एकदम सजीव लगे जिसे भारतीय हिन्दू अपने घरों में देवताओं की तरह पूजने लगे। इससे पहले केवल मूर्तियों का प्रचलन था और मन्दिर जाना पड़ता था लेकिन राजा रवि वर्मा की चित्रों की बदौलत ईश्वर घर-घर पहुंचे थे। घर में भी यदि वे होते तो मूर्तियों के रूप में। तस्वीरों, कैलेंडरों और पुस्तकों में जो देवी-देवता आज दिखते हैं वे असल में राजा​ रवि वर्मा की कल्पनाशीलता है।

राजा रवि वर्मा ऐसी ही शख्सियत थे। कहने को तो वे ‘राजा’ थे लेकिन उनके पास कोई राज्य न था। उनके नाम में जुड़ा यह शब्द एक उपाधि थी जो तत्कालीन वायसराय ने उनकी प्रतिभा का सम्मान करते हुए उन्हें दी थी।

अति-प्रतिभाशाली रवि वर्मा घर-घर में वह मशहूर थे। हालांकि तमाम दूसरी हस्तियों की तरह उन्हें एक तरफ अपार लोकप्रियता नसीब हुई तो दूसरी ओर बदनामी और विवाद भी झेलने पड़े लेकिन रवि वर्मा का काम और उनकी कल्पनाशीलता इन सबसे बेपरवाह चित्रकला को नई बु​लंदियां बख्शती रही। चित्रकारी में उन्होंने कई ऐसे प्रयोग किए जो भारत में तब तक किसी ने नहीं किए थे।

रवि वर्मा का जन्म 29 अप्रैल 1848 में केरल के किल्लीमनुर गाँव में हुआ था | उनका परिवार त्रावणकोर के शाही परिवार से संबध रखता था| बचपन से ही रवि वर्मा को चित्र बनाने का बहुत शौक था और वो अपने घरों की दीवारों पर कोयले से चित्र बनाया करते थे। भाग्यवश कोयले से दीवार पर चित्र बनाने के कारण उनके चाचा ने रवि वर्मा की कला को पहचाना और उसे अपने साथ तिरुवनंतपुरम के शाही दरबार में लेकर आ गये, जहां उनको कला की प्रारम्भिक शिक्षा दी गयी। राजा अयिल्यम थिरूनल के महल में राजा रवि वर्मा ने अनेक प्रकार की भारतीय और पाश्चात्य सभ्यता के चित्र देखे। इन चित्रों को देखकर उन्हें यूरोपीय चित्रों में एक गहराई दिखी, जिसे वो भी अपनी चित्रकला में समाहित करना चाहते थे।

राजा रवि वर्मा ने भारतीय धर्म के सभी प्रमुख देवी देवताओं के चित्र अत्यंत कलात्मकता, सुन्दरता, मधुरता एवं सौष्ठव के साथ बनाये हैं। उनके अद्वितीय चित्रकला कौशल के अनुपम उदाहरण विश्वामित्र, मेनका के चित्र, हरीशचंद्र-तारामती , श्रीकृष्ण, बलराम, मोहिन, रुकमागंधा तथा दुष्यंत-शकुंतला, अर्जुन-सुभद्रा, राजा व‍िराट के सामने द्रौपदी इंसाफ मांगती हुई आदि है।

जब 1893 में उनके चित्रों की प्रदर्शनी लगायी गयी थी तब उस चित्र प्रदर्शनी को देखने का का अधिकार केवल धनी मानी लोगों को ही था। बाद में चित्रकला जब जनसामान्य तक पहुंची, तब लोगों को उनकी अद्भुद चित्रकला से परिचित होने का अवसर मिला।

-एजेंसी


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