नाटकीय बंदर बना प्रधान राजा, खुद को प्रचार में कहे महानता ईमानदारी का ‘आजा’

अन्तर्द्वन्द

बंदर मेहनत कम दिखावा ज्यादा करता है, अपने कूड़े से भी कार्य को मावा कहता है

आप आगे बढ़ें उससे पहले बता दूं की इस ‘प्रपन्चतंत्र’ के सभी पात्र काल्पनिक हैं। किसी जीवित व्यक्ति से मेल महज संयोग या फिर काल्पनिक प्रयोग होगा।

-कृष्णकांत-

पूरे जंगल में पोस्टर लगा था। पोस्टर में बंदर का चेहरा छपा था। साथ में लिखा था- ‘नीयत का साफ, दिल का ईमानदार, सोच में सबसे महान।’ यह कोई नहीं पूछता था कि कोई अगर महान है, ईमानदार है तो इस बात का विज्ञापन क्यों करता है? खैर…

बात कुछ साल पहले की है। जंगलवासी प्राणियों ने फैसला किया कि शेर की जगह किसी और को प्रधान सेवक बनाया जाए। यह खबर सुनते ही एक शातिर बंदर सक्रिय हो गया। उसने चालक लोमड़ी और धूर्त स्वान नामक एजेंसियों की मदद से झूठ फैलाया कि इस जंगल तो क्या, इस ब्रम्हांड में बंदर से ज्यादा योग्य कोई नहीं है। खबर तो यहां तक फैली कि बंदर के पास जंगल में आदर्श व्यवस्था लागू करने का बड़ा विकट फार्मूला है। इस बीच बंदर मामा किसी इंसानी बस्ती में गया और एक बच्चे को घायल करके कुछ रोटियां ले आया। ये रोटियां भौकाल बनाने के काम आईं।

आखिरकार सबने मिलकर बंदर को प्रधान सेवक बना दिया। अब शुरू हुआ खेला। बंदर भाई ने अपने क्रोनीज को फायदा पहुंचाना शुरू किया। जिन जिन ने मिलकर बंदर भाई के लिए माहौल बनाया था, उनका मजा था, बाकी जंगल में अराजकता हो गई। बंदर और उसके क्रोनीज की संपत्ति बेतहाशा बढ़ने लगी। इसी बीच जंगल मे सूखा पड़ गया। जंगल के प्राणी मरने लगे लेकिन बंदर और उसके क्रोनीज को किसी चीज की कोई कमी नहीं। इनका खाद्य भंडार और संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ने लगी। उधर निरीह प्राणियों को एक घूंट पानी और एक मुट्ठी घास के लिए लंबी-लंबी लाइन लगानी पड़ती।

कुछ दिन बाद ऐसा हुआ कि जंगल के कुछ बच्चे खेलते-कूदते एक दूसरे इलाके में चले गए। वहां उन्हें कुछ भेड़ियों ने घेर लिया। सारे जंगल के प्राणी जुटकर बंदर के पास पहुंचे। बंदर ने उनकी बात सुनी और पेड़ पर चढ़कर जंगल के नाम संबोधन प्रसारित किया। फिर एक भाषण पीड़ित परिवारों के लिए दिया। फंसे हुए बच्चों के लिए कुछ ट्वीट भी किए।

अब तक बंदर ने तमाम दरबारी और भड़ुए पाल लिए थे, इन सबने मिलकर फैलाया कि अब इस दुनिया में बंदर भाई सबसे ताकतवर आदमी हैं। इस दुनिया में उनकी मर्जी के बग़ैर पत्ता भी नहीं हिलता।

नीचे सारे जंगलवासी परेशान थे और ऊपर बंदर भाई इस डाल से उस डाल कूदते, डाल पकड़कर हिलाते और फिर दूसरी डाल पर कूद जाते।

बंदर भाई पेड़ से नीचे ही नहीं आ रहे थे। एक बकरी और एक गाय ने हल्ला मचाना शुरू किया। सब कहने लगे कि हमारे बच्चे वहां फंसे हैं, उनकी जान को खतरा है और तुम उछलकूद कर रहे हो!

बंदर भाई फिर से मंच पर आए। थोड़ा सा मुंह लटकाकर रोने और आंसू पोंछने का नाटक किया, फिर संभलने का नाटक करते हुए बोले, “मैं नीयत का बुरा नहीं हूं। मैं 24 कैरेट का हूं, पवित्र हूं, विष्णु का अवतार हूं, बुद्ध हूं, विवेकानंद हूं, गांधी हूं, मैं देवता हूं, बहुत ईमानदार हूं। मेरी ईमानदारी पर कोई शक नहीं कर सकता।”

जंगलवासियों ने कहा, “ई सब बकैती छोड़ो, जो बच्चे फंसे हैं उन्हें जल्दी बचाओ।”

बंदर भाई गंभीर आवाज बनाकर बोले, “मेरी दौड़-धूप में कोई कमी हो बताओ, जिस चौराहे पर चाहे बुला लो। इस जंगल में कुछ लोग मेरे खिलाफ साजिश कर रहे हैं, मेरी जान लेना चाहते हैं।”

अब जंगल के वासियों को पता चला कि वे किस मूरख के फेर में फंसे हैं। वे जिसे योग्य शासक समझ बैठे थे, उसे मरते हुए बच्चों या बर्बाद होते राज्य से कोई मतलब ही नहीं है। उसे बस बताना है कि वह बहुत मेहनती और ईमानदार है, भले ही उस मेहनत का नतीजा विध्वंस हो।

खैर, जंगलवासी उदास होकर अपने भाग्य को कोसने लगे और बंदर ने अपने पालतुओं से अपनी तारीफ में पोस्टर लगवाए, कसीदे पढ़वाए और सबको बताने की कोशिश की गई कि बंदर भाई की नीयत बहुत साफ है और वे बहुत ईमानदार हैं। बंदर भाई ने खुद विज्ञापन छपवाए और अपनी फोटो के साथ लिखवाया कि मैं बहुत ईमानदार हूं।

एक दिन अलाव तापते हुए एक बूढ़े शेर ने जंगलवासियों से कहा, “दुनिया में किसी एक महान व्यक्ति का नाम बताइए जिसने खुद को खुद से महान बताया हो? खुद को महान कहने वाला महान कभी नहीं हो सकता। ऐसा काम ठग करते हैं।

-कृष्णकांत-