वाराणसी में डॉ. सिवन ने कहा कि अब स्पेस मिशन में आने वाले खर्चों को कई गुना कम किया जा सकता है। हम रॉकेट की टेस्टिंग पर 400-500 करोड़ रुपए खर्च करते थे, जिसे अब बचाया जा सकेगा।इसके लिए 6D ट्राजेक्टरी सिमुलेशन ‘सितारा’ नाम का एक सॉफ्टवेयर तैयार किया गया है। इसकी मदद से हम कंप्यूटर सिमुलेशन यानी स्क्रीन पर ही रॉकेट का परीक्षण कर रहे हैं। अब परीक्षण स्थल पर जाकर ओरिजिनल रॉकेट को लॉन्च या ट्रायल करने की जरूरत नहीं होगी।
IIT-BHU में इसरो का रीजनल एकेडमिक सेंटर भी है। यहां पर स्पेस मिशन के लिए करीब 15 रिसर्च चल रहे हैं और 10 तरह के रिसर्च वर्क को फंड भी मिलने वाले हैं। इस वजह से यहां पर स्पेस टेक्नोलॉजी में चल रहे काम की जानकारी लेने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO के पूर्व चेयरमैन डॉ. के IIT-BHU पहुंचे थे।
कई लांच व्हीकल यानी रॉकेट का ट्रायल एक साथ अलग-अलग कंप्यूटर पर बिना भारी-भरकम खर्च के कर सकते हैं। कंप्यूटर पर एक लाख बार इसकी टेस्टिंग करें, तो भी कोई परेशानी नहीं होगी। इस सॉफ्टवेयर के जरिए रॉकेट के फ्यूल, इंजन, डायरेक्शन, स्पीड, टारगेट, सैटेलाइट लांचिग आदि सब कुछ की टेस्टिंग का नतीजा वैसा ही आएगा, जैसा फिजिकल टेस्ट करने पर मिलता है। इस सॉफ्टवेयर में जिस रॉकेट को भेजना होता है, उसी के स्पेसिफिकेशन को फीड किया जाता है और उस रॉकेट की डिजाइन तैयार की जाती है।
बहु प्रतीक्षित ह्यूमन स्पेस मिशन ‘गगनयान’ 2024 में लांच होगा
ISRO का बहु प्रतीक्षित ह्यूमन स्पेस मिशन ‘गगनयान’ 2024 में लांच होगा। इस पर डॉ. के सिवन ने कहा कि हम अपने टारगेट को समय से पूरा करेंगे। स्पेसशिप पर टेस्टिंग जारी है। फिलहाल, हम इस तकनीक पर काम कर रहे हैं कि स्पेस के जानलेवा रेडिएशन से एस्ट्रोनॉट को कैसे बचाएं। भारत रेडिएशन प्रोटेक्शन फॉर एस्ट्रोनॉट सिस्टम विकसित कर रहा है। दरअसल, इस सिस्टम को न तो हम किसी देश से मांग सकते हैं और न ही कोई देश इसकी टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर करेगा।
उन्होंने बताया कि बिना इस तकनीक को ईजाद किए हम मानव मिशन पर आगे बढ़ ही नहीं सकते। इस साल के अंत में ISRO का दूसरा मानव रहित मिशन ‘व्योममित्र’ भी स्पेस में भेजा जाएगा। इस यान में हम अंतरिक्ष यात्री के रूप में एक रोबोट को भेजने वाले हैं, जिसे इसरो ने ही विकसित किया है।
-एजेंसी
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