आगरा के बहुचर्चित पनवारी कांड में 34 साल बाद आया फैसला, 36 अभियुक्त दोषी करार, सजा का ऐलान 30 मई को

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आगरा: जिले के चर्चित पनवारी कांड में लगभग 34 साल बाद बुधवार को अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

एससी एसटी कोर्ट के न्यायाधीश पुष्कर उपाध्याय की अदालत ने 36 आरोपियों को दोषी माना और पंद्रह को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। दो दिन बाद 30 मई को सजा का ऐलान होगा। वर्ष 1990 में पनवारी गांव में अनुसूचित जाति के परिवार की बेटी की बरात चढ़ाने को लेकर हिंसा हुई थी। न्याय की इस लड़ाई में पीड़ितों ने 34 साल काट दिए।

इस मामले में भाजपा विधायक चौधरी बाबूलाल भी आरोपी बनाए गए थे, लेकिन उन्हें वर्ष 2022 में एमपी-एमएलए कोर्ट से बरी कर दिया गया था। बाकी आरोपियों पर सुनवाई एससी-एसटी विशेष अदालत में चली।

घटनाक्रम 21 जून, 1990 का है। थाना सिकंदरा क्षेत्र के गांव पनवारी निवासी चोखेलाल जाटव की बेटी मुंद्रा की शादी थी।

सदर के नगला पदमा से रामदीन की बरात आई थी। जाट समाज के लोगों ने बरात चढ़ाने का विरोध किया था। इस कारण बरात नहीं चढ़ सकी। दूसरे दिन पुलिस प्रशासन के अधिकारियों की मौजूदगी में बरात चढ़ाई जा रही थी। तब पांच-छह हजार लोगों की भीड़ ने बरात को चढ़ने से रोका था।

पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए बल प्रयोग किया था। फायरिंग तक करनी पड़ी थी। गोली लगने से सोनी राम जाट की मृत्यु हो गई थी।

अभियुक्तों ने दलितों की बस्ती पर हमला किया था। कई लोगों को मरणासन्न स्थिति में छोड़ गए थे। हालात ऐसे हो गए कि 150 परिवारों पूरी बस्ती खाली करनी पड़ी थी।

ग्रामीणों के पूरे परिवार विस्थापित हो गए। घटना के बाद गांव से लेकर शहर तक हिंसा भड़क गई थी। आसपास के इलाकों के जाटों ने जाटवों के गांवों पर हमला बोल दिया। भरतपुर से भी जाट आगरा पहुंच गए।

दंगा भड़कने से तत्कालीन जिलाधिकारी अमल कुमार वर्मा और एसएसपी कर्मवीर सिंह ने गांव में बैठकें कीं। केंद्रीय मंत्री रहे रामजीलाल सुमन भी दलित बेटी की बारात चढ़वाने के लिए गए, लेकिन सभी लोग नाकाम साबित हुए थे। जाटों ने अधिकारियों और नेताओं के सामने ही उपद्रव मचा दिया। पुलिस को गोली चलाकर गांव से भागना पड़ा था। जाटों ने जाटवों के गांव, मोहल्लों पर हमला बोल दिया था। करीब 10 दिनों तक गांव में कर्फ्यू लगा रहा। दंगाइयों को रोकने के लिए सेना को बुलाना पड़ गया था।

राजीव गांधी भी पीड़ितों से मिलने आए थे

इस जातीय हिंसा की गूंज दिल्ली तक पहुंची थी। तत्कालीन विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी खुद पीड़ितों से मिलने आगरा पहुंचे थे। उनके साथ तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और आगरा के सांसद अजय सिंह भी मौजूद थे, जिन्होंने दोनों पक्षों से बातचीत कर हालात को शांत करने की कोशिश की थी।