दिल्ली की एक अदालत ने आज नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर को आपराधिक मानहानि मामले में दोषी ठहराया। ये मामला 2001 में विनय कुमार सक्सेना ने दर्ज कराया था। वीके सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उपराज्यपाल हैं।
साकेत अदालत के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने मेधा पाटकर को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया।
श्री सक्सेना ने 25 नवंबर 2000 को “देशभक्त का असली चेहरा” शीर्षक वाले एक प्रेस नोट में उन्हें बदनाम करने के लिए मेधा पाटकर के खिलाफ 2001 मामला दर्ज कराया था।
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर के बयानों को ‘मानहानि के समान’ और ‘नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए तैयार किया गया’ करार देते हुए सामाजिक कार्यकर्ता को भारतीय दंड संहिता के तहत आपराधिक मानहानि के अपराध का दोषी ठहराया, जिसके लिए अधिकतम दो साल तक साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
यह था पूरा मामला
बता दें वी.के सक्सेना ने ये मामला नवंबर, 2000 में उस वक्त दायर किया था, जब वह नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज’ के अध्यक्ष थे. उन्होंने उक्त मामला पाटकर द्वारा उनके खिलाफ जारी की गई एक ‘अपमानजनक’ प्रेस विज्ञप्ति के लिए दायर किया था. मजिस्ट्रेट ने 55-पृष्ठ के अपना फैसला सुनाते हुए कहा, प्रतिष्ठा एक व्यक्ति के पास मौजूद सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक होती है, क्योंकि यह व्यक्तिगत और पेशेवर, दोनों संबंधों को प्रभावित करती है और समाज में किसी व्यक्ति की स्थिति को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है.
वी.के सक्सेना को बताया था कायर
उन्होंने कहा- कि सक्सेना को देशभक्त नहीं, बल्कि कायर कहने वाला और हवाला लेन-देन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाने वाला पाटकर का बयान न केवल अपने आप में मानहानि के समान है, बल्कि इसे नकारात्मक धारणा को उकसाने के लिए गढ़ा गया था. मजिस्ट्रेट ने कहा- कि साथ ही यह आरोप कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा है, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है.
अदालत ने कहा कि सक्सेना की गवाही, जिसका अदालत के दो गवाहों ने समर्थन किया, यह दिखाती है कि पाटकर ने उन्हें (सक्सेना) ऐसी गतिविधियों से गलत तरीके से जोड़ा, जो उनके सार्वजनिक रुख के विपरीत है. कोर्ट ने कहा कि पाटकर इन दावों का खंडन करने या यह दिखाने के लिए कोई सबूत पेश करने में विफल रहीं कि उनका उनके बयानों से होने वाले नुकसान का इरादा नहीं था या उन्हें इसका अंदाजा नहीं था.
दिल्ली की अदालत ने कहा, शिकायतकर्ता के परिचितों के बीच उत्पन्न सवाल और संदेह, साथ ही गवाहों द्वारा उजागर की गई धारणा में बदलाव, उनकी (सक्सेना की) प्रतिष्ठा को हुए हानि को रेखांकित करता है. उसने कहा कि पाटकर के कृत्य जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण थे, जिनका उद्देश्य शिकायतकर्ता की अच्छी छवि को धूमिल करना था और वास्तव में इसने जनता की नज़र में उनकी प्रतिष्ठा और साख को काफ़ी नुकसान पहुंचाया.’
अदालत ने अपने समक्ष प्रस्तुत साक्ष्यों पर गौर करते हुए कहा- कि यह उचित संदेह से परे साबित हो चुका है कि पाटकर ने यह जानते हुए भी बयान प्रकाशित किया था कि इससे सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा. कोर्ट ने कहा, इसलिए आरोपी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि) के तहत दंडनीय अपराध किया है. उसे इसके लिए दोषी ठहराया जाता है. अब इस केस में सजा पर दलीलें 30 मई को सुनी जाएगी.
-compiled by up18news