श्वेताम्बर जैन स्थानक महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में हो रहा है आध्यात्मिक चेतना का संचार

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आगरा: श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वाधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चल रही चातुर्मासिक प्रवचनों की श्रृंखला में आज की धर्मसभा आध्यात्मिक ऊर्जा और करुणा के भावों से ओतप्रोत रही। बहुश्रुत पूज्य श्री जय मुनि जी महाराज ने भगवान महावीर की करुणा यात्रा विषय पर गहन उद्बोधन देते हुए कहा कि “महावीर की करुणा की बूंदें असीमित हैं, जबकि हमारी ज़िन्दगी सीमित है। यदि हम इन करुणा की बूंदों को जीवन में उतारें, तो जीवन सार्थक हो सकता है।”

करुणा के विविध आयाम: ज्ञान, ध्यान और दान

पूज्य श्री ने भगवान महावीर के जीवन से प्रेरणा लेते हुए बताया कि दीक्षा से पूर्व उन्होंने 28 वर्षों तक माता-पिता की सेवा की और एक वर्ष बड़े भाई के आग्रह पर रुके। इस अवधि में उन्होंने निरंतर दान किया, जो करुणा का मूर्त रूप है। उन्होंने स्पष्ट किया कि:

• ज्ञान व ध्यान की करुणा आत्म-संयम से स्वयं को जोड़ती है।
• दान की करुणा हमें दूसरों से जोड़ती है।

उन्होंने मोक्ष मार्ग के चार उपायों में दान को प्राथमिकता देते हुए वर्तमान युग में रक्तदान, नेत्रदान, अंगदान और देहदान जैसे आधुनिक दान रूपों की ओर ध्यान दिलाया। साथ ही, उन्होंने सभी से अपील की कि अपनी आय का कम से कम एक प्रतिशत दान कार्यों में लगाएं।

एक प्रेरणादायक प्रसंग साझा करते हुए उन्होंने बताया कि दीक्षा के बाद भी भगवान महावीर ने करुणा बरसाई और एक ब्राह्मण के मांगने पर उन्होंने शरीर पर धारित एकमात्र वस्त्र भी सहर्ष दान कर दिया।

भक्ति में डूबने का संदेश: पूज्य श्री आदीश मुनि जी का उद्बोधन

गुरु हनुमंत, हृदय सम्राट पूज्य श्री आदीश मुनि जी ने ‘सुख पाने के नए सूत्र’ विषय पर बोलते हुए कहा कि “गुरु चरणों में बैठकर प्रवचन सुनना तभी सार्थक है जब हम श्रद्धा भाव से उसका अनुसरण करें।” उन्होंने भक्ति को प्रेम, सेवा और समर्पण का नाम देते हुए कहा कि:

“यदि हम संसार के राग-रंग से दूर होकर प्रभु की भक्ति में लीन हो जाएं, तो जीवन सफल हो सकता है, तनाव कम होगा और पुण्य का सृजन होगा।”

उन्होंने राजा श्रेणिक की भक्ति का उदाहरण देते हुए बताया कि उनकी अटूट श्रद्धा से उनके छह नरक के बंध कट गए। भक्ति में आत्मबल की आवश्यकता है ताकि आत्मा का साक्षात्कार आनंद और संतोष के साथ हो सके।

सम्यक्त्व: आत्म-विकास की कुंजी

पूज्य श्री विजय मुनि जी ने अपने प्रवचन में सम्यक्त्व को आत्म-विकास का मूल बताया। उन्होंने कहा कि:
• अरिहंत देव, निग्रन्थ गुरु और वीतराग वाणी पर श्रद्धा रखनी चाहिए।
• जीवन रूपी सुई में सम्यक्त्व रूपी धागा डालने से जीवन कभी नहीं भटकेगा।
• भव्य जीव यदि सुदेव, सुगुरु और सच्चे धर्म पर विश्वास रखे तो मोक्ष की योग्यता प्राप्त कर सकता है।

जाप, त्याग और तपस्या का संकल्प

धर्मसभा के अंत में पूज्य श्री जय मुनि जी ने आज का जाप “श्री विमलनाथाय नमः” की माला का संकल्प दिलाया। साथ ही, आज के त्याग में गवार की फली, गुलाबजामुन, गोलगप्पे, गाली न देना और खाने में झूठन न छोड़ना शामिल था।

इस दौरान कई श्रावकों ने अपनी तपस्या जारी रखी, जिनमें श्रीमती सुनीता का 17वां, श्रीमती कंचन, श्रीमती संतोष और श्रीमती अनोना का 8वां, श्रीमती नीतू का 4वां और मनोज का तीसरा उपवास जारी है।

देशभर से श्रद्धालुओं की सहभागिता

आज की धर्मसभा में जम्मू, पानीपत, दिल्ली सहित कई शहरों से गुरुभक्तों की उपस्थिति रही, जिन्होंने प्रवचनों से आत्मिक ऊर्जा प्राप्त की और करुणा, भक्ति व सम्यक्त्व के मार्ग पर चलने का संकल्प लिया।