वर्ष 2023 को ‘मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष’ घोषित किया गया है। 70 देशों ने इसे मनाने की सहमति दी है। हाल ही में संसद में मोटे अनाज के व्यंजनों का एक भोज भी आयोजित किया गया था। मोटे अनाज से हम सदियों से वाक़िफ़ हैं, चलिए एक बार फिर इनकी ख़ूबियों के ज़रिए समझते हैं क्योंकि पिछले कुछ समय से हमने इन्हें बिसरा दिया था।
दो दशक पुरानी बात है। सुदूर क्षेत्रों के वनवासियों पर लेख लिखने वाले एक युवक ने वहां के वासियों को कोदो और कुटकी का भोजन करते देखा, तो मुझे बताया था, ‘वे लोग बहुत ग़रीब हैं। मोटा अनाज खाकर जीवन बसर करते हैं।’ और मेरे जवाब पर कि ‘वे लोग बहुत अच्छा भोजन कर रहे हैं’ वो बहुत हैरान हुआ था। शायद उसे यक़ीन भी न आया हो कि मैंने यह बात पूरी गंभीरता से कही थी। इतिहास गवाह है कि हम भारतीय शुरुआत से मोटा अनाज ही खाते रहे हैं। गेहूं व महीन आटों का चलन बाद में हुआ। ग्रामीण क्षेत्रों में तो फिर भी मोटा अनाज ही चलता रहा। यहां गेहूं प्रचलन में और भी बाद में आया।
क्या हैं मोटे अनाज?
हम इनके नामों से बरसों से परिचित हैं, मौसम बदलता है तो बाजरे, मक्के, और ज्वार की रोटी को शौक़-शौक़ में खाते भी हैं, लेकिन इनके गुणों से अपरिचित हैं। इनके अलावा जई, कोदो, कुटकी, रागी और समा आदि भी मोटे अनाज में शामिल हैं।
अनाज में क्या ख़ास?
मोटे अनाज गुणों की खान हैं। इनकी सबसे बड़ी ख़ासियत है इनमें पाया जाने वाला रेशा, जो ख़ूब मात्रा में मौजूद होता है। इस रेशे के घुलनशील और अघुलनशील दोनों ही रूप हमारे शरीर में पाचन तंत्र के लिए वरदान की तरह काम करते हैं। घुलनशील रेशा पेट में क़ुदरती तौर पर मौजूद बैक्टीिरया को सहयोग करके पाचन को बेहतर बनाता है। वहीं अघुलनशील रेशा पाचन तंत्र से मल को इकट्ठा करने और उसकी आसान निकासी में मदद करता है। यह पानी भी ख़ूब सोखता है यानी व्यक्ति को मोटा अनाज खाने के बाद प्यास भी ख़ूब लगती है, जो पाचन तंत्र के लिए बहुत स्वास्थ्यकर है।
इसका मतलब यह हुआ कि महीन अनाज खाने और व्यायाम से दूर रहने के चलते जो कब्ज़ियत और शरीर के फूलने जैसी बिन बुलाई बीमारियां हम झेलते हैं, मोटा अनाज उनका सटीक उपचार है। गेहूं में मिलने वाला प्रोटीन ग्लूटेन इन अनाजों में नहीं होता, सो इनसे पाचन तो अच्छा होगा ही।
और भी गुण हैं इनमें…
कैलोरीज़ और प्रोटीन की अनियमितता वाले कुपोषण के बारे में हम जानते हैं लेकिन सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी एक तरह का कुपोषण उत्पन्न करती है, जिसका आसानी से पता नहीं चलता। इसका अर्थ है आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी जैसे पोषक तत्वों की कमी। उन वयस्कों और बच्चों में यह कमी आम है जो आटा या मैदे का उपयोग करते हैं। मोटे अनाज इन सूक्ष्म तत्वों के अच्छे स्रोत हैं। अगर भोजन में मोटे अनाजों को शामिल करें, तो अनेक लाभ मिलेंगे।
आसान है उगाना…
मोटे अनाजों को घास की तरह उगने वाला अनाज भी कहा जाता है, क्योंकि ये तेज़ी से बढ़ जाते हैं और इनके लिए बहुत अधिक संसाधनों की भी ज़रूरत नहीं होती। इन पौधों में छोटे-छोटे दानों के रूप में मिलता है ये अनाज, जिसका चाहे दानों के रूप में इस्तेमाल हो या आटे के रूप में या चीला बनाने, चाहे खीर या लड्डू बनाने, ये हमारी सेहत के लिए सोने-सा काम करते हैं।
कैसे करें शुरुआत?…
आरंभ करने और आदत डालने के लिए अपने नियमित आटे में आधा मोटा अनाज मिलाकर रोटियां बनाइए। जब आदत पड़ जाए तो मोटे अनाज को तीन-चौथाई कर लीजिए और फिर पूरी तरह से इसी का इस्तेमाल करें।
दूर हो जाएंगे रोग…
महीन आटे जैसे मैदा की हमारे खाद्यों में भरमार है। इनके अधिक उपयोग से हृदय रोग और मधुमेह को आमंत्रण मिलता है। मिला भी है। हम दुनिया की मधुमेह राजधानी बन चुके हैं। मोटे अनाज इस लड़ाई में हमारी मदद कर सकते हैं। अगर नियमित रूप से ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी आदि का उपयोग किया जाए, तो हृदय व पैनक्रियाज़ की सेहत को संभाला जा सकता है। शरीर को नुक़सान पहुंचाने वाली कई वस्तुओं की निकासी के लिए ये बहुत उपयोगी हैं । ये कई प्रकार के कैंसर से बचाव के लिए उपयोगी सिद्ध हुए हैं।
ख़ूबियों से परिचय कीजिए…
बाजरा,ज्वार व रागी
बाजरा लौहलवण से भरपूर होता है इसलिए यह ख़ून की कमी को दूर करने में बहुत सहायक है। ज्वार हड्डियों के लिए अच्छी मात्रा में कैल्शियम, ख़ून के लिए फॉलिक एसिड व कई अन्य उत्तम पोषक तत्व प्रदान करता है। इसी प्रकार से रागी एकमात्र ऐसा अनाज है जिससे कैल्शियम भरपूर मिलता है। और जो लोग दूध नहीं लेते लेकिन इसका सेवन करते हैं, उनमें कैल्शियम की कमी नहीं होती। हालांकि सभी मोटे अनाज उतनी ही मात्रा में प्रोटीन देते हैं जितना कि गेहूं-चावल से मिलता है, यानी कि 100 ग्राम कोई भी मोटा अनाज खाएंगे तो 7-12 ग्राम तक का प्रोटीन हमें मिलेगा। परंतु अंतर ये है कि प्रोटीन जो अमीनो एसिड का बना होता है इसकी गुणवत्ता गेहूं और चावल के प्रोटीन से बेहतर पाई गई है।
मक्का…
मक्के का पीला रंग ये दर्शाता है कि इसमें विटामिन-ए यानी वो विटामिन जो त्वचा और आंखों के लिए अच्छा होता है और बीमारियों से लड़ने की ताक़त देता है, बहुत अधिक होता है।
जौ…
ये बहुत सारे सूक्ष्म पोषक तत्वों का भंडार है। इसमें ख़ासकर मैंगनीज़ और सेलेनियम पाया जाता है जो त्वचा को स्वस्थ रखने में मददगार होता है। यह ब्लड शुगर नियंत्रित करने के लिए आवश्यक होता है। इसी के साथ-साथ क्रोमियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, विटामिन-बी1 जिसे थायमिन कहते हैं और नायसिन का भी अच्छा स्रोत होता है।
मज़बूती बेमिसाल
मोटे अनाजों की खेती करना बड़ा आसान है। इनके पौधों में सूखा सहन करने की क्षमता बहुत होती है। फ़सल पकने की अवधि कम होती है। उर्वरक, खाद की न्यूनतम मांग के कारण लागत कम व रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत होती है। बंजर भूमि व विपरीत मौसम में भी ये अनाज उगाए जा सकते हैं।
– एजेंसी